भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 28
अव्यक्तादीनि भूतानि व्यक्तमध्यानि भारत।
अव्यक्तनिधनान्येव तत्र का परिदेवना ॥28॥
अव्यक्त-आदीनि-जन्म से पूर्व अप्रकट; भूतानि-सभी जीव; व्यक्त–प्रकट; मध्यानि-मध्य में; भारत-भरतवंशी, अर्जुन; अव्यक्त–अप्रकट; निधानानि–मृत्यु होने पर; एव–वास्तव में; तत्र-अतः; का-क्या; परिदेवना-शोक।
Hindi translation: हे भरतवंशी! समस्त जीव जन्म से पूर्व अव्यक्त रहते हैं, जन्म होने पर व्यक्त हो जाते हैं और मृत्यु होने पर पुनः अव्यक्त हो जाते हैं। अतः ऐसे में शोक व्यक्त करने की क्या आवश्यकता है।
आत्मा और शरीर: शोक का निवारण
भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय में श्रीकृष्ण ने आत्मा और शरीर के संबंध में गहन ज्ञान प्रदान किया है। इस ज्ञान के माध्यम से वे अर्जुन को शोक से मुक्त करने का प्रयास करते हैं। आइए इस विषय पर विस्तार से चर्चा करें।
श्रीकृष्ण का उपदेश: शोक का निरसन
श्रीकृष्ण ने अध्याय 2 के श्लोक 20 और 27 में क्रमशः आत्मा और शरीर के लिए शोक करने के कारणों का निवारण किया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि न तो आत्मा के लिए और न ही शरीर के लिए शोक करना उचित है।
नारद मुनि का समान उपदेश
श्रीमद्भागवतम् में नारद मुनि ने भी युधिष्ठिर को इसी प्रकार का उपदेश दिया है:
यन्मन्यसे ध्रुवं लोकमध्रुवं वा न चोभयम् ।
सर्वथा न हि शोच्यास्ते स्नेहादन्यत्र मोहजात्॥
(श्रीमद्भागवतम्-1.13.43)
इसका अर्थ है:
“चाहे तुम स्वयं को अविनाशी आत्मा मानो, नश्वर शरीर मानो, या फिर आत्मा और शरीर का अकल्पनीय मिश्रण मानो, किसी भी स्थिति में शोक करना उचित नहीं है। शोक का मूल कारण केवल आसक्ति है, जो मिथ्या मोह से उत्पन्न होती है।”
जीवात्मा के तीन शरीर
भौतिक जगत में प्रत्येक जीवात्मा तीन प्रकार के शरीरों से युक्त होती है:
1. स्थूल शरीर
स्थूल शरीर प्रकृति के पाँच मूल तत्त्वों से निर्मित होता है:
- भूमि
- जल
- अग्नि
- वायु
- आकाश
2. सूक्ष्म शरीर
सूक्ष्म शरीर अठारह तत्त्वों से बनता है:
- पाँच प्राण वायु
- पाँच कर्मेन्द्रियाँ
- पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ
- मन
- बुद्धि
- अहंकार
3. कारण शरीर
कारण शरीर पूर्वजन्मों के संचित कर्मों और संस्कारों से निर्मित होता है। यह अनंत पूर्वजन्मों के कर्मों का परिणाम है।
आत्मा की यात्रा
मृत्यु के समय
- आत्मा स्थूल शरीर को त्याग देती है।
- सूक्ष्म और कारण शरीर आत्मा के साथ रहते हैं।
नए जन्म की प्रक्रिया
- भगवान आत्मा को नया स्थूल शरीर प्रदान करते हैं।
- यह नया शरीर सूक्ष्म और कारण शरीर के अनुरूप होता है।
- आत्मा को उपयुक्त माता के गर्भ में प्रवेश कराया जाता है।
परिवर्ती चरण
- स्थूल शरीर त्यागने और नया शरीर प्राप्त करने के बीच का समय।
- यह अवधि कुछ क्षण से लेकर कई वर्षों तक हो सकती है।
आत्मा की अविनाशिता
अवस्था | आत्मा की स्थिति |
---|---|
जन्म से पूर्व | अव्यक्त (सूक्ष्म और कारण शरीर के साथ) |
जीवन काल | व्यक्त (स्थूल शरीर में) |
मृत्यु के पश्चात | पुनः अव्यक्त |
इस प्रकार, आत्मा का अस्तित्व निरंतर बना रहता है। यह केवल मध्य में, जीवन काल के दौरान, प्रकट होती है।
निष्कर्ष: शोक का निरर्थकता
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट है कि:
- आत्मा अविनाशी है।
- शरीर परिवर्तनशील है, लेकिन आत्मा नित्य है।
- मृत्यु केवल एक परिवर्तन है, समाप्ति नहीं।
अतः, मृत्यु के लिए शोकग्रस्त होने का कोई तार्किक कारण नहीं है। श्रीकृष्ण और नारद मुनि जैसे महान आध्यात्मिक गुरुओं का यही संदेश है कि हमें इस सत्य को समझकर शोक से मुक्त होना चाहिए।
शोक मुख्यतः आसक्ति और मोह से उत्पन्न होता है। जब हम आत्मा की शाश्वतता और शरीर की अस्थायी प्रकृति को समझ लेते हैं, तब हम जीवन और मृत्यु के चक्र को स्वाभाविक रूप से स्वीकार कर पाते हैं।
यह ज्ञान न केवल हमें दुःख से मुक्त करता है, बल्कि जीवन के प्रति एक गहन समझ और आध्यात्मिक दृष्टिकोण भी प्रदान करता है। इस प्रकार, भगवद्गीता और अन्य पवित्र ग्रंथों में निहित यह ज्ञान हमारे जीवन को अधिक सार्थक और शांतिपूर्ण बनाने में सहायक होता है।
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