Bhagwat Geeta

भगवद गीता: अध्याय 1, श्लोक 28

अर्जुन उवाच। दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्ण युयुत्सुं समुपस्थितम्।
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति ॥28॥

अर्जुन:-उवाच-अर्जुन ने कहा; दृष्ट्वा-देख कर; इमम् इन सबको; स्वजनम् वंशजों को; कृष्ण-कृष्ण; युयुत्सुम-युद्ध लड़ने की इच्छा रखने वाले; समुपस्थितम्-उपस्थित; सीदन्ति–काँप रहे हैं; मम-मेरे; गात्रणि-होंठ; मुखम्-मुँह; च-भी; परिशुष्यति-सूख रहा है।

Hindi translation : अर्जुन ने कहा! हे कृष्ण! युद्ध करने की इच्छा से एक दूसरे का वध करने के लिए यहाँ अपने वंशजों को देखकर मेरे शरीर के अंग कांप रहे हैं और मेरा मुंह सूख रहा है।

आसक्ति और मोह: आध्यात्मिक विकास की बाधाएं

आसक्ति और मोह मानव जीवन के दो ऐसे पहलू हैं जो हमारे आध्यात्मिक विकास में बाधा बन सकते हैं। इस ब्लॉग में हम इन दोनों अवधारणाओं को गहराई से समझेंगे और यह जानेंगे कि कैसे इनसे मुक्त होकर हम अपने आध्यात्मिक लक्ष्य की ओर अग्रसर हो सकते हैं।

आसक्ति: एक द्विधारी तलवार

आसक्ति एक ऐसी मनोभावना है जो दो रूपों में प्रकट हो सकती है – लौकिक और आध्यात्मिक।

लौकिक आसक्ति

लौकिक आसक्ति वह है जो हमें सांसारिक वस्तुओं, व्यक्तियों या परिस्थितियों से जोड़ती है। यह आसक्ति हमें भौतिक जगत में बांधे रखती है और हमारी चेतना को सीमित करती है।

लौकिक आसक्ति के प्रभाव:
  1. मानसिक तनाव
  2. निर्णय क्षमता का ह्रास
  3. आध्यात्मिक प्रगति में बाधा
  4. जीवन के प्रति संकीर्ण दृष्टिकोण
आध्यात्मिक आसक्ति

दूसरी ओर, आध्यात्मिक आसक्ति वह है जो हमें परम सत्य की ओर ले जाती है। यह आसक्ति हमारी चेतना को विस्तृत करती है और हमें आत्मज्ञान की ओर ले जाती है।

आध्यात्मिक आसक्ति के लाभ:
  1. मानसिक शांति
  2. उच्च चेतना का विकास
  3. जीवन के प्रति व्यापक दृष्टिकोण
  4. आत्मज्ञान की प्राप्ति

मोह: सांसारिक बंधन

मोह एक ऐसी भावना है जो हमें अपने परिवार, मित्रों या अन्य सांसारिक संबंधों से जोड़ती है। यह भावना मूलतः अज्ञान पर आधारित होती है, जहां हम अपने आप को केवल शरीर मान लेते हैं।

मोह के कारण

  1. अज्ञानता
  2. अहंकार
  3. भय
  4. असुरक्षा की भावना

मोह के परिणाम

मोह के कारण हम अपने आध्यात्मिक लक्ष्य से भटक जाते हैं और सांसारिक बंधनों में फंस जाते हैं। इसके कुछ प्रमुख परिणाम हैं:

  1. दुःख और पीड़ा
  2. अनावश्यक चिंता
  3. आत्मज्ञान की कमी
  4. जीवन के सच्चे उद्देश्य से दूरी

आसक्ति और मोह से मुक्ति

आसक्ति और मोह से मुक्त होना आध्यात्मिक विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है। यहां कुछ उपाय दिए गए हैं जो इस दिशा में सहायक हो सकते हैं:

  1. आत्मचिंतन
  2. ध्यान और योग
  3. सत्संग
  4. ज्ञान का अर्जन
  5. निष्काम कर्म

परमात्मा के प्रति प्रेम: सच्ची आसक्ति

जब हम अपनी आत्मा के स्तर पर परमात्मा से जुड़ते हैं, तो यह एक ऐसी आसक्ति है जो हमारी चेतना को उच्च स्तर पर ले जाती है। यह प्रेम सर्वव्यापी और असीम होता है।

परमात्मा के प्रति प्रेम के लक्षण:

  1. निःस्वार्थ भाव
  2. सर्वभूतहित की भावना
  3. आंतरिक शांति
  4. ज्ञान का प्रकाश

अर्जुन का उदाहरण: मोह से मुक्ति की यात्रा

महाभारत में अर्जुन का उदाहरण हमें सिखाता है कि कैसे मोह हमें अपने कर्तव्य से विचलित कर सकता है। अर्जुन की यात्रा हमें दिखाती है कि कैसे ज्ञान के माध्यम से हम मोह से मुक्त हो सकते हैं।

अर्जुन की मनःस्थिति का विश्लेषण:

मोह की अवस्थाज्ञान प्राप्ति के बाद
भ्रमस्पष्टता
कर्तव्य से विमुखताकर्तव्य का पालन
शोकआत्मविश्वास
अकर्मण्यताकर्मठता

निष्कर्ष

आसक्ति और मोह मानव जीवन के अभिन्न अंग हैं, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि हम इनके स्वरूप को समझें और इन्हें नियंत्रित करें। लौकिक आसक्ति और मोह हमें सांसारिक बंधनों में जकड़ते हैं, जबकि आध्यात्मिक आसक्ति हमें उच्च चेतना की ओर ले जाती है।

परमात्मा के प्रति प्रेम एक ऐसी आसक्ति है जो हमारी आत्मा को परम सत्य से जोड़ती है। यह प्रेम हमें संकीर्णता से मुक्त करता है और हमारी चेतना को विस्तृत करता है। जैसे-जैसे हम आत्मज्ञान की ओर बढ़ते हैं, हम पाते हैं कि सच्चा आनंद और शांति भीतर ही निहित है।

अंत में, यह समझना महत्वपूर्ण है कि आसक्ति और मोह से मुक्ति एक निरंतर प्रक्रिया है। यह एक ऐसी यात्रा है जिसमें धैर्य, दृढ़ता और आत्मचिंतन की आवश्यकता होती है। जैसे-जैसे हम इस पथ पर आगे बढ़ते हैं, हम पाते हैं कि जीवन का सच्चा उद्देश्य आत्मज्ञान और परमात्मा से एकाकारता है।

इस प्रकार, आसक्ति और मोह की समझ हमें न केवल अपने व्यक्तिगत जीवन में बल्कि समाज और विश्व के प्रति हमारे दृष्टिकोण में भी परिवर्तन लाने में सहायक होती है। यह समझ हमें एक ऐसे जीवन की ओर ले जाती है जो सच्चे अर्थों में पूर्ण और साર्थक है।

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