Bhagwat Geeta

भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 11

श्री भगवानुवाच।
अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे ।
गतासूनगतासुंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः॥11॥

श्रीभगवान् उवाच-परमप्रभु ने कहा; अशोच्यान्–जो शोक के पात्र नहीं हैं; अन्वशोच:-शोक करते हो; त्वम्-तुम; प्रज्ञावादान्-बुद्धिमता के वचन; च-भी; भाष से-कहते हो; गता असून-मरे हुए; अगता असून-जीवित; च-भी; न कभी नहीं; अनुशोचन्ति-शोक करते हैं; पण्डिताः-बुद्धिमान लोग।

Hindi translation: परम भगवान ने कहा-तुम विद्वतापूर्ण वचन कहकर भी उनके लिए शोक कर रहे हो जो शोक के पात्र नहीं हैं। बुद्धिमान पुरुष न तो जीवित प्राणी के लिए शोक करते हैं और न ही मृत के लिए।

शीर्षक: श्रीकृष्ण का दिव्य संदेश: जीवन और मृत्यु की समझ

प्रस्तावना

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिए गए उपदेश गीता के मूल में हैं। यह उपदेश न केवल अर्जुन के लिए, बल्कि समस्त मानवजाति के लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश स्तंभ है। आइए इस गहन ज्ञान को विस्तार से समझें।

श्रीकृष्ण का दृष्टिकोण

अज्ञान बनाम ज्ञान

श्रीकृष्ण अर्जुन के शोक को अज्ञान का परिणाम मानते हैं। वे स्पष्ट करते हैं कि जो वास्तव में ज्ञानी है, वह न तो जीवित के लिए शोक करता है और न ही मृत के लिए। यह एक गहन दार्शनिक दृष्टिकोण है जो जीवन और मृत्यु की प्रकृति को समझने पर आधारित है।

भ्रम का खंडन

श्रीकृष्ण अर्जुन के तर्कों का खंडन करते हुए उन्हें यह समझाते हैं कि उनका शोक भ्रामक है। वे कहते हैं:

“यद्यपि तुम यह अनुभव करते हो कि तुम पांडित्यपूर्ण बातें कर रहे हो, किन्तु वास्तव में तुम अज्ञानता के कारण इस प्रकार की अनुचित वार्ता और व्यवहार कर रहे हो।”

ज्ञानी का लक्षण

शोक से परे

श्रीकृष्ण बताते हैं कि एक ज्ञानी व्यक्ति किसी भी परिस्थिति में शोक नहीं करता। वे कहते हैं:

“पंडित अर्थात जो बुद्धिमान हैं, वे न तो कभी किसी जीवित प्राणी के लिए और न ही मृत के लिए शोक करते हैं।”

भीष्म पितामह का उदाहरण

श्रीकृष्ण भीष्म पितामह का उदाहरण देते हैं जो जीवन और मृत्यु के रहस्य को समझते थे। वे कहते हैं:

“वह एक ऐसे मनीषी थे जो जीवन और मृत्यु के रहस्य को पूरी तरह से समझते थे और परिस्थितियों की द्वैतता से ऊपर उठे हुए थे।”

कर्तव्य का महत्व

निष्काम कर्म

श्रीकृष्ण यह भी समझाते हैं कि एक ज्ञानी व्यक्ति परिणाम की चिंता किए बिना अपने कर्तव्य का पालन करता है। वे कहते हैं:

“जो भगवान के प्रति शरणागत हैं, वे परिणाम की चिंता किए बिना प्रत्येक परिस्थितियों में केवल अपने कर्तव्य का पालन करते हैं।”

आत्मज्ञान का महत्व

आत्मा की अमरता

श्रीकृष्ण अर्जुन को आत्मा की अमरता के बारे में समझाते हैं। वे कहते हैं कि आत्मा न तो जन्म लेती है और न ही मरती है। यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है जो जीवन और मृत्यु के प्रति हमारे दृष्टिकोण को बदल सकता है।

भय से मुक्ति

जब हम आत्मा की अमरता को समझ लेते हैं, तो मृत्यु का भय समाप्त हो जाता है। यह समझ हमें जीवन में निडर होकर अपने कर्तव्यों का पालन करने की शक्ति देती है।

कर्म योग का सिद्धांत

निष्काम कर्म का महत्व

श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्म योग का सिद्धांत समझाते हैं। वे कहते हैं कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए, लेकिन उनके फल की इच्छा नहीं करनी चाहिए। यह एक महत्वपूर्ण जीवन दर्शन है जो हमें मानसिक शांति प्रदान करता है।

स्थितप्रज्ञ की अवधारणा

श्रीकृष्ण स्थितप्रज्ञ की अवधारणा का वर्णन करते हैं। एक स्थितप्रज्ञ व्यक्ति वह है जो सुख-दुख, लाभ-हानि में समान भाव रखता है। यह एक उच्च स्तर की आध्यात्मिक अवस्था है जिसे प्राप्त करना हर साधक का लक्ष्य होना चाहिए।

युद्ध का नैतिक पक्ष

धर्म युद्ध की अवधारणा

श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि कुरुक्षेत्र का युद्ध एक धर्म युद्ध है। वे कहते हैं कि अधर्म के विरुद्ध लड़ना क्षत्रिय का धर्म है। यह एक महत्वपूर्ण नैतिक सिद्धांत है जो बुराई के खिलाफ खड़े होने की आवश्यकता पर जोर देता है।

व्यक्तिगत संबंधों से ऊपर कर्तव्य

श्रीकृष्ण अर्जुन को यह भी समझाते हैं कि कर्तव्य व्यक्तिगत संबंधों से ऊपर होता है। वे कहते हैं कि युद्ध में अपने रिश्तेदारों के खिलाफ लड़ना भी अर्जुन का कर्तव्य है। यह एक कठिन लेकिन महत्वपूर्ण सबक है जो व्यक्तिगत भावनाओं पर कर्तव्य की प्राथमिकता को दर्शाता है।

आध्यात्मिक ज्ञान का महत्व

मोह से मुक्ति

श्रीकृष्ण बताते हैं कि आध्यात्मिक ज्ञान हमें मोह से मुक्त करता है। वे कहते हैं:

“जब तुम इस सनातन ज्ञान को समझ लोगे, तब तुम मोह के बंधन से मुक्त हो जाओगे।”

आत्मज्ञान की प्राप्ति

श्रीकृष्ण आत्मज्ञान की प्राप्ति पर जोर देते हैं। वे कहते हैं कि आत्मज्ञान ही सच्चा ज्ञान है और यही मोक्ष का मार्ग है।

निष्कर्ष

श्रीकृष्ण का यह उपदेश जीवन के गहन रहस्यों को उजागर करता है। वे हमें सिखाते हैं कि जीवन और मृत्यु के चक्र से ऊपर उठकर, अपने कर्तव्यों का पालन करना ही सच्चा ज्ञान है। यह उपदेश न केवल अर्जुन के लिए, बल्कि हर उस व्यक्ति के लिए प्रासंगिक है जो जीवन के उद्देश्य और अर्थ की तलाश में है।

श्रीकृष्ण के उपदेश का सार

क्रमसिद्धांतविवरण
1आत्मा की अमरताआत्मा न जन्म लेती है, न मरती है
2कर्म योगफल की इच्छा किए बिना कर्तव्य का पालन
3स्थितप्रज्ञसुख-दुख में समभाव रखने वाला
4धर्म युद्धअधर्म के विरुद्ध लड़ना क्षत्रिय का धर्म
5आध्यात्मिक ज्ञानमोह से मुक्ति का मार्ग

श्रीकृष्ण का यह उपदेश हमें जीवन के प्रति एक नया दृष्टिकोण देता है। यह हमें सिखाता है कि कैसे शोक, भय और मोह से ऊपर उठकर, अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए, आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ा जा सकता है। यह ज्ञान न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए, बल्कि एक बेहतर समाज के निर्माण के लिए भी महत्वपूर्ण है।

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