अंजना: हनुमान जी की पुण्यशील माता
हिंदू पौराणिक कथाओं में कुछ ऐसे चरित्र हैं जो अपने आप में एक पूरी कहानी समेटे हुए हैं। इन्हीं में से एक हैं अंजना – महावीर हनुमान जी की माता। उनका जीवन भक्ति, धैर्य और दैवीय कृपा का एक अद्भुत उदाहरण है। आइए, इस असाधारण नारी की कहानी को विस्तार से जानें।
अंजना का पूर्व जीवन
स्वर्गलोक की अप्सरा
अंजना के जीवन की कहानी वास्तव में स्वर्गलोक से शुरू होती है। वहाँ वे पुंजिकस्थला नाम की एक अप्सरा थीं। अप्सराएँ देवलोक की अत्यंत सुंदर नारियाँ होती थीं, जिनका मुख्य कार्य देवताओं का मनोरंजन करना होता था। पुंजिकस्थला भी अपनी असाधारण सुंदरता और नृत्य कौशल के लिए जानी जाती थीं।
शाप की घटना
एक दिन की बात है, पुंजिकस्थला अपनी सहेलियों के साथ वन में घूम रही थीं। वहाँ उन्होंने एक ऋषि को गहन ध्यान में लीन देखा। उनकी मुद्रा इतनी शांत और गंभीर थी कि पुंजिकस्थला को मज़ाक सूझा। उन्होंने सोचा कि क्यों न इस ऋषि का ध्यान भंग किया जाए।
पुंजिकस्थला ने अपनी सखियों के साथ मिलकर ऋषि के आसपास शोर मचाना शुरू कर दिया। वे हँसने लगीं, नाचने लगीं, और तरह-तरह की आवाजें निकालने लगीं। परंतु ऋषि अपने ध्यान में इतने मग्न थे कि उन्हें कुछ सुनाई नहीं दिया।
अंत में, जब पुंजिकस्थला ने ऋषि के सिर पर पानी की बूँदें गिराईं, तभी उनका ध्यान टूटा। ऋषि ने आँखें खोलीं और क्रोध से भर गए। उन्होंने तत्काल पुंजिकस्थला को शाप दे दिया कि वे पृथ्वी पर एक वानर (बंदर जैसे प्राणी) के रूप में जन्म लेंगी।
शाप से मुक्ति का मार्ग
जैसे ही ऋषि ने शाप दिया, पुंजिकस्थला को अपनी गलती का एहसास हुआ। वे ऋषि के चरणों में गिर पड़ीं और क्षमा याचना करने लगीं। ऋषि का क्रोध तो शांत हो गया था, लेकिन एक बार दिया गया शाप वापस नहीं लिया जा सकता था।
फिर भी, ऋषि ने दया करते हुए कहा, “हे पुंजिकस्थला, मैं अपने शाप को वापस तो नहीं ले सकता, लेकिन मैं तुम्हें इससे मुक्त होने का एक मार्ग बता सकता हूँ। जब तुम पृथ्वी पर वानर रूप में जन्म लोगी, तब तुम्हारी संतान भगवान शिव का अवतार होगी। उस बच्चे को जन्म देते ही तुम इस शाप से मुक्त हो जाओगी।”
इस प्रकार, पुंजिकस्थला के पास एक आशा की किरण थी, लेकिन उसके लिए उन्हें एक लंबा और कठिन मार्ग तय करना था।
पृथ्वी पर अंजना का जन्म
वानर कन्या के रूप में जन्म
ऋषि के शाप के अनुसार, पुंजिकस्थला का जन्म पृथ्वी पर एक वानर परिवार में हुआ। उनका नाम अंजना रखा गया। बचपन से ही अंजना में असाधारण गुण दिखाई देने लगे। वे अत्यंत सुंदर थीं और उनमें अद्भुत बुद्धि थी।
केसरी से विवाह
जैसे-जैसे अंजना बड़ी होती गईं, उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई। उनके सौंदर्य और गुणों की चर्चा सुनकर एक शक्तिशाली वानर योद्धा केसरी उनसे विवाह करने के लिए आगे आए। केसरी न केवल बलशाली थे, बल्कि वे एक सज्जन और धर्मपरायण व्यक्ति भी थे।
अंजना और केसरी का विवाह बड़ी धूमधाम से संपन्न हुआ। सभी ने इस जोड़े को आशीर्वाद दिया और उनके सुखी दांपत्य जीवन की कामना की।
अंजना की तपस्या
भगवान शिव की आराधना
विवाह के बाद भी अंजना के मन में एक अजीब सी बेचैनी थी। उन्हें अपने पूर्व जन्म की याद थी और वे जानती थीं कि उन्हें एक विशेष संतान को जन्म देना है। इसलिए उन्होंने भगवान शिव की आराधना शुरू कर दी।
प्रतिदिन, वे सूर्योदय से पहले उठतीं, स्नान करतीं, और फिर एकांत में बैठकर शिव की पूजा करतीं। वे घंटों तक ध्यान में लीन रहतीं और शिव के नाम का जाप करतीं।
कठोर तप
धीरे-धीरे, अंजना की तपस्या और भी कठोर होती गई। वे भोजन त्याग कर केवल फल और कंद-मूल पर जीने लगीं। कभी-कभी तो वे दिनों तक निराहार रहतीं। उनका शरीर कमजोर होने लगा, लेकिन उनकी आत्मा में एक अद्भुत शक्ति का संचार हो रहा था।
केसरी उनकी इस तपस्या से चिंतित थे, लेकिन वे जानते थे कि अंजना एक महान लक्ष्य के लिए यह सब कर रही हैं। इसलिए उन्होंने अंजना का पूरा साथ दिया और उनकी सेवा में लग गए।
शिव की कृपा
अंजना की अटूट भक्ति और कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर एक दिन भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिया। शिव ने कहा, “हे अंजना, तुम्हारी भक्ति ने मुझे प्रसन्न कर दिया है। तुम्हारी इच्छा पूरी होगी। तुम एक ऐसे पुत्र को जन्म दोगी जो मेरा ही अंश होगा। वह अद्भुत शक्तियों का स्वामी होगा और संसार में अपना नाम अमर कर देगा।”
यह सुनकर अंजना की आँखों में आँसू आ गए। उन्होंने शिव को प्रणाम किया और उनका आभार व्यक्त किया।
हनुमान का जन्म
दैवीय हस्तक्षेप
शिव के आशीर्वाद के बाद, एक दिन जब अंजना अपने आश्रम में ध्यानमग्न थीं, तभी वायु देव ने शिव के दिव्य अंश को लेकर उनके पास पहुँचाया। यह अंश अंजना के गर्भ में प्रवेश कर गया।
नौ महीने बाद, एक शुभ मुहूर्त में, अंजना ने एक दिव्य बालक को जन्म दिया। बालक के जन्म के समय आकाश में देवदुंदुभियाँ बजने लगीं और फूलों की वर्षा होने लगी।
बालक के अद्भुत गुण
जन्म के तुरंत बाद ही यह स्पष्ट हो गया कि यह कोई साधारण बालक नहीं है। उसका शरीर सुनहरे रंग का था और उसके शरीर से एक दिव्य तेज निकल रहा था। उसकी आँखें चमकदार थीं और उसके चेहरे पर एक अद्भुत आभा थी।
अंजना और केसरी ने अपने इस अद्भुत पुत्र का नाम हनुमान रखा। हनुमान बचपन से ही असाधारण शक्ति और बुद्धि के धनी थे। वे बहुत जल्दी ही वेदों और शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त कर लिए।
अंजना की शिक्षाएँ
धर्म और कर्तव्य का पाठ
अंजना ने हनुमान को बचपन से ही धर्म और कर्तव्य का महत्व समझाया। उन्होंने अपने पुत्र को सिखाया कि शक्ति का उपयोग हमेशा न्याय और धर्म के लिए करना चाहिए।
एक दिन, जब हनुमान ने अपनी शक्ति का प्रदर्शन करते हुए एक बड़े पेड़ को उखाड़ दिया, तब अंजना ने उन्हें समझाया, “बेटा, शक्ति का अहंकार नहीं करना चाहिए। तुम्हारी शक्ति एक वरदान है, इसका उपयोग दूसरों की सेवा के लिए करो।”
भक्ति का महत्व
अंजना ने हनुमान को भक्ति का महत्व भी समझाया। उन्होंने कहा, “हनुमान, तुम शिव के अंश हो, लेकिन तुम्हारा जीवन राम की सेवा के लिए है। जब भी तुम्हें कोई कठिनाई आए, राम का स्मरण करना। उनकी भक्ति में जो शक्ति है, वह अजेय है।”
इन शिक्षाओं का हनुमान के जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ा। बाद में, जब उन्होंने श्री राम की सेवा की, तब उन्होंने अपनी माता के इन्हीं शब्दों को याद किया।
अंजना का त्याग
पुत्र को कर्तव्य पथ पर भेजना
जब हनुमान युवा हुए, तब अंजना ने उन्हें अपने जीवन के उद्देश्य के बारे में बताया। उन्होंने कहा, “बेटा, तुम्हारा जन्म एक महान उद्देश्य के लिए हुआ है। तुम्हें श्री राम की सेवा करनी है और धर्म की रक्षा करनी है।”
यह कहते हुए अंजना की आँखों में आँसू थे, लेकिन उनके चेहरे पर दृढ़ता थी। उन्होंने हनुमान को आशीर्वाद दिया और उन्हें अपने कर्तव्य पथ पर चलने के लिए प्रेरित किया।
माँ का प्यार और कर्तव्य का द्वंद्व
हनुमान को विदा करते समय अंजना के मन में एक द्वंद्व था। एक ओ
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