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Bhagwat Geeta

भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 17
अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् ।विनाशमव्ययस्यास्य न कश्चित्कर्तुमर्हति॥17॥ अविनाशि-अनश्वर; तु–वास्तव में; तत्-उसे; विद्धि-जानो; येन-किसके द्वारा; सर्वम् सम्पूर्ण; इदम् यह;…
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Bhagwat Geeta

भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 16
नासतो विद्यते भावो नाभावो विद्यते सतः।उभयोरपि दृष्टोऽन्तस्त्वनयोस्तत्त्वदर्शिभिः ॥16॥ न–नहीं; असतः-अस्थायी का; विद्यते-वहां है; भावः-सत्ता है; न कभी नहीं; अभावः-अन्त; विद्यते-वहाँ…
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Bhagwat Geeta

भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 15
यं हि न व्यथयन्त्येते पुरुषं पुरुषर्षभ।समदुःखसुखं धीरं सोऽमृतत्वाय कल्पते॥15॥ यम्-जिस; हि-निश्चित रूप से; न कभी नहीं; व्यथयन्ति–दुखी नहीं होते; एते…
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Bhagwat Geeta

भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 14
मात्रास्पर्शास्तु कौन्तेय शीतोष्णसुखदुःखदाः।आगमापायिनोऽनित्यास्तांस्तितिक्षस्व भारत॥14॥ मात्रा-स्पर्श:-इन्द्रिय विषयों के साथ संपर्क; तु–वास्तव में; कौन्तेय-कुन्तीपुत्र, अर्जुन; शीत-जाड़ा; उष्ण-ग्रीष्म; सुख-सुख, दुःख-दुख; दाः-देने वाले; आगम-आना;…
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Hindu Deities

सीता माता का हरण: एक महाकाव्य की कहानी
रामायण भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इस महाकाव्य में कई ऐसी घटनाएँ हैं जो हमारे मन को छू…
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Hindu Deities

काली माँ: शक्ति और परिवर्तन की देवी
काली माँ हिंदू धर्म की सबसे शक्तिशाली और रहस्यमयी देवियों में से एक हैं। वे परिवर्तन, समय और शक्ति की…
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Bhagwat Geeta

भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 13
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।तथा देहान्तरप्राप्तिर्षीरस्तत्र न मुह्यति ॥13॥ देहिनः-देहधारी की; अस्मिन्-इसमें; यथा-जैसे; देहै-शरीर में; कौमारम्-बाल्यावस्था; यौवनम्-यौवन; जरा-वृद्धावस्था; तथा समान…
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Bhagwat Geeta

भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 12
न त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपाः।न चैव न भविष्यामः सर्वे वयमतः परम्॥12॥ न-नहीं; तु-लेकिन; एव-निश्चय ही; अहम्-मे; जातु-किसी…
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भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 11
श्री भगवानुवाच।अशोच्यानन्वशोचस्त्वं प्रज्ञावादांश्च भाषसे ।गतासूनगतासुंश्च नानुशोचन्ति पण्डिताः॥11॥ श्रीभगवान् उवाच-परमप्रभु ने कहा; अशोच्यान्–जो शोक के पात्र नहीं हैं; अन्वशोच:-शोक करते हो;…
Read More » भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 10
तमुवाच हृषीकेशं प्रहसन्निव भारत।सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वचः ॥10॥ तम्-उससे; उवाच-कहा; हृषीकेश:-मन और इन्द्रियों के स्वामी, श्रीकृष्ण ने; प्रहसन-हँसते हुए; इव-मानो; भारत-भरतवंशी…
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