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भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 6

&NewLine;<pre id&equals;"tw-target-text" class&equals;"wp-block-preformatted"><strong>न चैतद्विद्मः कतरन्नो गरीयो यद्वा जयेम यदि वा नो जयेयुः।&NewLine;यानेव हत्वा न जिजीविषाम स्तेऽवस्थिताः प्रमुखे धार्तराष्ट्राः ॥6॥<&sol;strong>&NewLine;&NewLine;न–नहीं&semi; च-और&semi; एतत्-यह&semi; विद्यः-हम जानते हैं&semi; कतरत्-जो&semi; न&colon;-हमारे लिए&semi; गरीयः-श्रेयस्कर&semi; यत्वा-क्या&semi; जयेम-वे विजयी हो&semi; यदि यदि&semi; वा-या&semi; न&colon;-हमें&semi; जयेयुः-विजयी हो&semi; यान्-जिनको&semi; एव-निश्चय ही&semi; हत्वा मारने के बाद&semi; न कभी नहीं&semi; जिजीविषामः-हम जीवित रहना चाहेंगे&semi; ते वे सब&semi; अवस्थिताः-खड़े हैं&semi; प्रमुखे-हमारे सामने&semi; धार्तराष्ट्राः-धृतराष्ट्र के पुत्र।&NewLine;&NewLine;<strong>Hindi translation&colon;<&sol;strong> हम यह भी नहीं जानते कि इस युद्ध का परिणाम हमारे लिए किस प्रकार से श्रेयस्कर होगा। उन पर विजय पाकर या उनसे पराजित होकर। यद्यपि उन्होंने धृतराष्ट्र का पक्ष लिया है और अब वे युद्धभूमि में हमारे सम्मुख खड़े हैं तथापि उनको मारकर हमारी जीवित रहने की कोई इच्छा नहीं होगी।&NewLine;<&sol;pre>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-मह-भ-रत-क-मह-न-य-द-ध-भ-ष-म-प-त-मह">महाभारत का महान योद्धा&colon; भीष्म पितामह<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>महाभारत के महान पात्रों में से एक&comma; भीष्म पितामह की कहानी धर्म&comma; कर्तव्य और भक्ति का एक अद्भुत संगम है। आइए इस महान योद्धा और विद्वान के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर एक नज़र डालें।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-भ-ष-म-क-पर-चय-एक-अस-ध-रण-व-यक-त-त-व">भीष्म का परिचय&colon; एक असाधारण व्यक्तित्व<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>भीष्म पितामह&comma; जिन्हें देवव्रत के नाम से भी जाना जाता है&comma; महाभारत के सबसे प्रभावशाली और जटिल पात्रों में से एक हैं। उनका जीवन कई विरोधाभासों से भरा था&comma; जो उन्हें एक अत्यंत दिलचस्प और बहुआयामी व्यक्तित्व बनाता है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-भ-ष-म-क-व-श-षत-ए">भीष्म की विशेषताएँ&colon;<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>श्रीकृष्ण के परम भक्त<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>इंद्रियों पर असाधारण नियंत्रण<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>उदारता और शौर्य की प्रतिमूर्ति<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>सत्यवादी महापुरुष<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>भीष्म को श्रीमद्भागवतम् में &&num;8216&semi;बारह महापुरुषों&&num;8217&semi; या &&num;8216&semi;महाजनों&&num;8217&semi; में गिना जाता है&comma; जो उनके असाधारण चरित्र और ज्ञान का प्रमाण है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-भ-ष-म-क-धर-मस-कट-कर-तव-य-बन-म-न-त-कत">भीष्म का धर्मसंकट&colon; कर्तव्य बनाम नैतिकता<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>महाभारत युद्ध में भीष्म की भूमिका उनके जीवन के सबसे बड़े धर्मसंकटों में से एक थी। एक ओर उनका कर्तव्य उन्हें कौरवों का समर्थन करने के लिए बाध्य करता था&comma; जबकि दूसरी ओर उनका नैतिक बोध उन्हें पांडवों के पक्ष में खड़ा होने के लिए प्रेरित करता था।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-भ-ष-म-क-द-व-ध">भीष्म का दुविधा&colon;<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ul class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li><strong>कौरवों का समर्थन<&sol;strong>&colon; राज्य के प्रति कर्तव्य<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li><strong>पांडवों की सहानुभूति<&sol;strong>&colon; धर्म और न्याय के प्रति निष्ठा<&sol;li>&NewLine;<&sol;ul>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>इस दुविधा के बावजूद&comma; भीष्म ने अपने कर्तव्य का पालन करने का निर्णय लिया&comma; लेकिन साथ ही उन्होंने युधिष्ठिर को आशीर्वाद दिया कि वे युद्ध में विजयी होंगे।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-भ-ष-म-और-श-र-क-ष-ण-एक-अद-भ-त-स-ब-ध">भीष्म और श्रीकृष्ण&colon; एक अद्भुत संबंध<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>भीष्म और श्रीकृष्ण के बीच का संबंध महाभारत के सबसे रोचक पहलुओं में से एक है। भीष्म श्रीकृष्ण के परम भक्त थे&comma; और उनकी भक्ति रसिक भाव की थी।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-भ-ष-म-क-श-र-क-ष-ण-भक-त-क-उद-हरण">भीष्म की श्रीकृष्ण भक्ति के उदाहरण&colon;<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>वृंदावन लीलाओं का निरंतर चिंतन<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>युद्धभूमि में श्रीकृष्ण के दिव्य रूप का दर्शन<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>अंतिम क्षणों में श्रीकृष्ण के रूप का ध्यान<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-मह-भ-रत-य-द-ध-म-भ-ष-म-क-भ-म-क">महाभारत युद्ध में भीष्म की भूमिका<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>युद्ध के दौरान भीष्म एक महान योद्धा के रूप में सामने आए। उनकी रणनीति और शौर्य ने कौरव सेना को मजबूत नेतृत्व प्रदान किया।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-भ-ष-म-क-य-द-ध-प-रदर-शन">भीष्म का युद्ध प्रदर्शन&colon;<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ul class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>अर्जुन के रथ को नष्ट करना<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>श्रीकृष्ण को शस्त्र उठाने के लिए विवश करना<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>दस दिनों तक अजेय रहना<&sol;li>&NewLine;<&sol;ul>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-भ-ष-म-क-अ-त-म-स-कल-प-और-त-य-ग">भीष्म का अंतिम संकल्प और त्याग<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>युद्ध के अंतिम चरण में&comma; भीष्म ने एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया। उन्होंने या तो अर्जुन का वध करने या श्रीकृष्ण को शस्त्र उठाने के लिए मजबूर करने का संकल्प लिया।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-भ-ष-म-क-स-कल-प-स-त-स-रद-स-क-अन-स-र">भीष्म का संकल्प &lpar;संत सूरदास के अनुसार&rpar;&colon;<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<pre class&equals;"wp-block-code"><code>आजु जो हरिहिं न शस्त्र गहाऊँ &NewLine;तो लाजहुँ गंगा जननी को&comma; शान्तनु सुत न कहाऊँ<&sol;code><&sol;pre>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>इस संकल्प के परिणामस्वरूप&comma; श्रीकृष्ण ने अपना वचन तोड़ा और रथ का पहिया उठाकर अर्जुन की रक्षा की।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-ब-णशय-य-पर-भ-ष-म-अ-त-म-क-षण-और-आत-मत-य-ग">बाणशय्या पर भीष्म&colon; अंतिम क्षण और आत्मत्याग<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>युद्ध के बाद&comma; भीष्म बाणों की शय्या पर लेटे हुए थे। इस समय उन्होंने श्रीकृष्ण के दिव्य रूप का ध्यान किया और अपने अंतिम क्षणों में भी उनकी स्तुति की।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-भ-ष-म-क-अ-त-म-प-र-र-थन-श-र-मद-भ-गवतम-स">भीष्म की अंतिम प्रार्थना &lpar;श्रीमद्भागवतम् से&rpar;&colon;<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<pre class&equals;"wp-block-code"><code>युधि तुरगरजोविधूम्रविष्वक्कचलुलितश्रमवार्यलङ्कतास्ये।&NewLine;मम निशितशरैर्विभिद्यमानत्वचि विलसत्कवचेऽस्तु कृष्ण आत्मा।।<&sol;code><&sol;pre>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>इस प्रार्थना में भीष्म ने श्रीकृष्ण के युद्धभूमि में दिखने वाले रूप का वर्णन किया और अपने मन&comma; शरीर और आत्मा को उन्हें समर्पित करने की इच्छा व्यक्त की।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-भ-ष-म-स-स-ख-आध-न-क-ज-वन-म-प-र-स-ग-कत">भीष्म से सीख&colon; आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>भीष्म के जीवन से हम कई महत्वपूर्ण सबक सीख सकते हैं जो आज भी प्रासंगिक हैं&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li><strong>कर्तव्य का महत्व<&sol;strong>&colon; भले ही परिस्थितियाँ कठिन हों&comma; अपने कर्तव्य का पालन करना<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li><strong>नैतिक मूल्यों का संरक्षण<&sol;strong>&colon; कर्तव्य के साथ-साथ नैतिक मूल्यों को भी बनाए रखना<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li><strong>आत्म-नियंत्रण<&sol;strong>&colon; इंद्रियों पर नियंत्रण रखना और आत्म-अनुशासन का पालन करना<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li><strong>ज्ञान और विवेक<&sol;strong>&colon; जीवन भर सीखते रहना और विवेक का उपयोग करना<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li><strong>भक्ति का महत्व<&sol;strong>&colon; आध्यात्मिक जीवन में भक्ति की भूमिका को समझना<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-न-ष-कर-ष-एक-मह-न-आत-म-क-स-मरण">निष्कर्ष&colon; एक महान आत्मा का स्मरण<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>भीष्म पितामह का जीवन हमें सिखाता है कि जीवन की जटिलताओं के बीच भी कैसे अपने सिद्धांतों पर दृढ़ रहा जा सकता है। उनका चरित्र हमें याद दिलाता है कि कर्तव्य&comma; धर्म&comma; और भक्ति के बीच संतुलन बनाना कितना महत्वपूर्ण है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>भीष्म की कहानी हमें प्रेरित करती है कि हम अपने जीवन में&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ul class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>अपने कर्तव्यों का पालन करें<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>नैतिक मूल्यों को बनाए रखें<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>आध्यात्मिक विकास पर ध्यान दें<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>ज्ञान और विवेक का मार्ग अपनाएं<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>कठिन परिस्थितियों में भी दृढ़ रहें<&sol;li>&NewLine;<&sol;ul>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>अंत में&comma; भीष्म पितामह का जीवन हमें याद दिलाता है कि महानता केवल उपलब्धियों में नहीं&comma; बल्कि हमारे चरित्र की शक्ति और हमारे सिद्धांतों के प्रति हमारी निष्ठा में निहित है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<div class&equals;"wp-block-buttons is-content-justification-space-between is-layout-flex wp-container-core-buttons-is-layout-3d213aab wp-block-buttons-is-layout-flex">&NewLine;<div class&equals;"wp-block-button"><a class&equals;"wp-block-button&lowbar;&lowbar;link wp-element-button" href&equals;"https&colon;&sol;&sol;sanatanroots&period;com&sol;bhagavad-gita-chapter-2-verse-5&sol;">Previous <&sol;a><&sol;div>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<div class&equals;"wp-block-button"><a class&equals;"wp-block-button&lowbar;&lowbar;link wp-element-button" href&equals;"https&colon;&sol;&sol;sanatanroots&period;com&sol;&percnt;e0&percnt;a4&percnt;ad&percnt;e0&percnt;a4&percnt;97&percnt;e0&percnt;a4&percnt;b5&percnt;e0&percnt;a4&percnt;a6-&percnt;e0&percnt;a4&percnt;97&percnt;e0&percnt;a5&percnt;80&percnt;e0&percnt;a4&percnt;a4&percnt;e0&percnt;a4&percnt;be-&percnt;e0&percnt;a4&percnt;85&percnt;e0&percnt;a4&percnt;a7&percnt;e0&percnt;a5&percnt;8d&percnt;e0&percnt;a4&percnt;af&percnt;e0&percnt;a4&percnt;be&percnt;e0&percnt;a4&percnt;af-2-&percnt;e0&percnt;a4&percnt;b6&percnt;e0&percnt;a5&percnt;8d&percnt;e0&percnt;a4&percnt;b2&percnt;e0&percnt;a5&percnt;8b&percnt;e0&percnt;a4&percnt;95-7&sol;">Next<&sol;a><&sol;div>&NewLine;<&sol;div>&NewLine;

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