Site icon Sanatan Roots

भगवद गीता: अध्याय 1, श्लोक 45-46

&NewLine;<p><strong>अहो बत महत्पापं कर्तुं व्यवसिता वयम्।<br>यद्राज्यसुखलोभेन हन्तुं स्वजनमुद्यताः॥45॥<br>यदि मामप्रतीकारमशस्त्रं शस्त्रपाणयः।<br>धार्तराष्ट्रा रणे हन्युस्तन्मे क्षेमतरं भवेत् ॥46॥<&sol;strong><br><br>अहो-ओह&semi; बत-कितना&semi; महत्-महान&semi; पापम्-पाप कर्म&semi; कर्तुम् करने के लिए&semi; व्यवसिता-निश्चय किया है&semi; वयम्-हमने&semi; यत्-क्योंकि&semi; राज्य-सुख-लोभेने-राजसी सुख की इच्छा से&semi; हन्तुम् मारने के लिए&semi; स्वजनम्-अपने सम्बन्धियों को&semi; उद्यता&colon;-तत्पर। यदि-यदि&semi; माम्-मुझको&semi; अप्रतीकारम्-प्रतिरोध न करने पर&semi; अशस्त्रम्-बिना शास्त्र के&semi; शस्त्र-पाणयः-वे जिन्होंने हाथों में शस्त्र धारण किए हुए हैं&semi; धार्तराष्ट्राः-धृतराष्ट्र के पुत्र&semi; रणे-युद्धभूमि में&semi; हन्यु&colon;-मार देते है&semi; तत्-वह&semi; मे–मेरे लिए&semi; क्षेम-तरम् श्रेयस्कर&semi; भवेत् होगा।<br><br><strong>Hindi translation&colon;<&sol;strong> ओह&excl; कितने आश्चर्य की बात है कि हम मानसिक रूप से इस महा पापजन्य कर्म करने के लिए उद्यत हैं। राजसुख भोगने की इच्छा के प्रयोजन से हम अपने वंशजों का वध करना चाहते हैं। यदि धृतराष्ट्र के शस्त्र युक्त पुत्र मुझ निहत्थे को रणभूमि में प्रतिरोध किए बिना भी मार देते हैं तब यह मेरे लिए श्रेयस्कर होगा।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-म-ह-और-कर-तव-य-क-द-व-द-व-अर-ज-न-क-मन-स-थ-त-क-व-श-ल-षण">मोह और कर्तव्य का द्वंद्व&colon; अर्जुन की मनःस्थिति का विश्लेषण<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-प-रस-त-वन">प्रस्तावना<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>मनुष्य की प्रकृति है कि वह अपनी गलतियों को स्वीकार करने में हिचकिचाता है। इसी प्रकार&comma; महाभारत के महान योद्धा अर्जुन भी अपने मोह और कर्तव्य के बीच फंस गए थे। आइए इस विषय पर गहराई से चर्चा करें और समझें कि कैसे भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को इस द्वंद्व से बाहर निकाला।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-अर-ज-न-क-म-ह-एक-म-नव-य-द-व-ध">अर्जुन का मोह&colon; एक मानवीय दुविधा<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>अर्जुन की स्थिति हर मनुष्य की तरह थी&comma; जो अपने प्रियजनों के प्रति मोह में फंसा हुआ था। उन्होंने अपने परिवार और गुरुजनों को युद्धभूमि में देखा और उनके मन में संघर्ष शुरू हो गया।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-अर-ज-न-क-तर-क-म-ह-क-प-रत-ब-ब">अर्जुन के तर्क&colon; मोह का प्रतिबिंब<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-भ-वन-त-मक-तर-क"> भावनात्मक तर्क<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>अर्जुन ने कई भावनात्मक तर्क दिए जो उनके मोह को दर्शाते थे&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>कुल का विनाश<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>धर्म का नाश<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>स्त्रियों का अधर्म में प्रवेश<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>वर्णसंकरता का खतरा<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-न-त-क-द-व-ध"> नैतिक दुविधा<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>अर्जुन ने नैतिक आधार पर भी अपने विचार रखे&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ul class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>युद्ध में पाप का भागी बनना<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>गुरुजनों की हत्या का अपराध<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>राज्य के लिए परिवार का त्याग<&sol;li>&NewLine;<&sol;ul>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-श-र-क-ष-ण-क-द-ष-ट-क-ण-ज-ञ-न-क-प-रक-श">श्रीकृष्ण का दृष्टिकोण&colon; ज्ञान का प्रकाश<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के तर्कों को सुना और उन्हें समझाया कि उनके विचार वास्तव में मोह से उत्पन्न हुए हैं। उन्होंने निम्नलिखित बिंदुओं पर जोर दिया&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>आत्मा की अमरता<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>कर्म का महत्व<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>धर्म का पालन<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>स्वधर्म का निर्वाह<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-कर-म-य-ग-क-स-द-ध-त"> कर्म योग का सिद्धांत<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्म योग का महत्व समझाया&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ul class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>निष्काम कर्म की अवधारणा<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>फल की चिंता किए बिना कर्तव्य पालन<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>योग&colon; कर्म में कुशलता<&sol;li>&NewLine;<&sol;ul>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-ज-ञ-न-य-ग-क-महत-व">ज्ञान योग का महत्व<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>भगवान ने ज्ञान योग पर भी प्रकाश डाला&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ul class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>आत्मा और शरीर का भेद<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>माया का प्रभाव<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>ब्रह्म ज्ञान की प्राप्ति<&sol;li>&NewLine;<&sol;ul>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-अर-ज-न-क-म-ह-क-व-श-ल-षण-एक-त-ल-क">अर्जुन के मोह का विश्लेषण&colon; एक तालिका<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<figure class&equals;"wp-block-table"><table><thead><tr><th>मोह के कारण<&sol;th><th>श्रीकृष्ण का समाधान<&sol;th><&sol;tr><&sol;thead><tbody><tr><td>परिवार प्रेम<&sol;td><td>आत्मा की अमरता का ज्ञान<&sol;td><&sol;tr><tr><td>कुल धर्म का भय<&sol;td><td>स्वधर्म पालन का महत्व<&sol;td><&sol;tr><tr><td>पाप का भय<&sol;td><td>निष्काम कर्म का सिद्धांत<&sol;td><&sol;tr><tr><td>भविष्य की चिंता<&sol;td><td>वर्तमान में कर्तव्य पालन<&sol;td><&sol;tr><&sol;tbody><&sol;table><&sol;figure>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-न-ष-कर-ष-म-ह-स-म-क-त-क-ओर">निष्कर्ष&colon; मोह से मुक्ति की ओर<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>अंत में&comma; अर्जुन ने श्रीकृष्ण के उपदेशों को समझा और अपने मोह से मुक्त हुए। उन्होंने अपने कर्तव्य को पहचाना और युद्ध के लिए तैयार हो गए। यह कहानी हमें सिखाती है कि कैसे हम अपने जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना कर सकते हैं और अपने कर्तव्य पथ पर दृढ़ रह सकते हैं।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>इस प्रकार&comma; गीता का संदेश न केवल अर्जुन के लिए&comma; बल्कि हर मनुष्य के लिए प्रासंगिक है&comma; जो जीवन के विभिन्न मोड़ों पर अपने कर्तव्य और भावनाओं के बीच संघर्ष करता है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<hr class&equals;"wp-block-separator has-alpha-channel-opacity" &sol;>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>मानव मन की जटिलताओं को समझना और उनसे पार पाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है। अर्जुन की मनःस्थिति का विश्लेषण करते हुए&comma; हम अपने दैनिक जीवन में भी इसी प्रकार के संघर्षों को देख सकते हैं। आइए&comma; इस विषय को और गहराई से समझें।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-म-ह-क-मन-व-ज-ञ-न-क-पहल"> मोह का मनोवैज्ञानिक पहलू<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>मोह एक ऐसी मानसिक स्थिति है जो हमें वस्तुनिष्ठ सोच से दूर ले जाती है। अर्जुन के मामले में&comma; यह मोह उनके परिवार और गुरुजनों के प्रति था। मनोवैज्ञानिक दृष्टि से&comma; यह एक सामान्य मानवीय प्रतिक्रिया है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>भावनात्मक लगाव&colon; मनुष्य स्वभाव से ही अपने करीबी लोगों से जुड़ा होता है।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>सुरक्षा की भावना&colon; परिवार और समाज हमें सुरक्षा का एहसास देते हैं।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>पहचान का संकट&colon; अपनों के खिलाफ खड़े होने पर व्यक्ति की पहचान पर सवाल उठते हैं।<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-कर-तव-य-क-पर-भ-ष-और-महत-व"> कर्तव्य की परिभाषा और महत्व<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>कर्तव्य का अर्थ है वह कार्य जो हमें करना चाहिए&comma; चाहे वह कितना भी कठिन क्यों न हो। अर्जुन के लिए&comma; उनका कर्तव्य युद्ध करना था।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ul class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>समाज के प्रति दायित्व<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>व्यक्तिगत नैतिकता<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>धर्म और परंपरा का पालन<&sol;li>&NewLine;<&sol;ul>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-म-ह-और-कर-तव-य-क-स-त-लन-एक-आध-न-क-पर-प-र-क-ष-य">मोह और कर्तव्य का संतुलन&colon; एक आधुनिक परिप्रेक्ष्य<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>आज के समय में भी&comma; हम अक्सर मोह और कर्तव्य के बीच संघर्ष करते हैं। उदाहरण के लिए&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>करियर vs परिवार<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>व्यक्तिगत सुख vs सामाजिक उत्तरदायित्व<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>आर्थिक लाभ vs नैतिक मूल्य<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>इन परिस्थितियों में&comma; गीता का संदेश हमारा मार्गदर्शन कर सकता है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-श-र-क-ष-ण-क-उपद-श-क-वर-तम-न-प-र-स-ग-कत"> श्रीकृष्ण के उपदेश की वर्तमान प्रासंगिकता<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने वे अर्जुन के समय में थे।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>निष्काम कर्म&colon; बिना फल की चिंता किए अपना कार्य करना।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>स्थितप्रज्ञता&colon; संतुलित मानसिक स्थिति बनाए रखना।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>योग&colon; कर्म में कुशलता और मन की एकाग्रता।<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-आध-न-क-ज-वन-म-ग-त-क-स-द-ध-त-क-अन-प-रय-ग"> आधुनिक जीवन में गीता के सिद्धांतों का अनुप्रयोग<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>गीता के सिद्धांतों को हम अपने दैनिक जीवन में कैसे लागू कर सकते हैं&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ul class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>कार्यस्थल पर&colon; अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन करना।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>परिवार में&colon; भावनाओं और जिम्मेदारियों के बीच संतुलन बनाना।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>समाज में&colon; सामाजिक दायित्वों का निर्वाह करना।<&sol;li>&NewLine;<&sol;ul>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-आत-म-च-तन-क-महत-व">आत्म-चिंतन का महत्व<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>अर्जुन की तरह&comma; हमें भी अपने विचारों और कार्यों पर चिंतन करने की आवश्यकता है। यह आत्म-चिंतन हमें अपने मोह और पूर्वाग्रहों को पहचानने में मदद करता है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>स्व-जागरूकता&colon; अपनी भावनाओं और प्रेरणाओं को समझना।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>निष्पक्ष मूल्यांकन&colon; अपने विचारों और कार्यों का तटस्थ विश्लेषण।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>सुधार की प्रक्रिया&colon; गलतियों से सीखना और लगातार विकास करना।<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-म-ह-स-म-क-त-क-य-त-र"> मोह से मुक्ति की यात्रा<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>मोह से मुक्त होना एक क्रमिक प्रक्रिया है। यह यात्रा निम्नलिखित चरणों से गुजरती है&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>पहचान&colon; अपने मोह को स्वीकार करना।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>विश्लेषण&colon; मोह के कारणों की खोज करना।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>ज्ञान प्राप्ति&colon; सही दृष्टिकोण विकसित करना।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>अभ्यास&colon; नए दृष्टिकोण को जीवन में उतारना।<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-आध-य-त-म-क-व-क-स-क-म-र-ग">आध्यात्मिक विकास का मार्ग<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>गीता हमें आध्यात्मिक विकास का मार्ग दिखाती है&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ul class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>ध्यान और योग का अभ्यास<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>शास्त्रों का अध्ययन<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>सत्संग और गुरु की शरण<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>सेवा भाव का विकास<&sol;li>&NewLine;<&sol;ul>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-न-ष-कर-ष-स-त-ल-त-ज-वन-क-ओर">निष्कर्ष&colon; संतुलित जीवन की ओर<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>अंत में&comma; हम कह सकते हैं कि अर्जुन की मनःस्थिति का विश्लेषण हमें अपने जीवन में संतुलन लाने की प्रेरणा देता है। मोह और कर्तव्य के बीच सामंजस्य स्थापित करना एक कला है&comma; जिसे गीता के माध्यम से सीखा जा सकता है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>भावनाओं को स्वीकार करें&comma; लेकिन उनके गुलाम न बनें।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>कर्तव्य का पालन करें&comma; लेकिन कठोरता से नहीं।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>ज्ञान प्राप्त करें और उसे जीवन में उतारें।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>निरंतर आत्म-विकास की ओर अग्रसर रहें।<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>इस प्रकार&comma; गीता का संदेश न केवल एक धार्मिक ग्रंथ के रूप में&comma; बल्कि एक जीवन दर्शन के रूप में भी महत्वपूर्ण है। यह हमें सिखाता है कि कैसे जीवन की विभिन्न चुनौतियों का सामना करते हुए&comma; हम अपने कर्तव्य पथ पर दृढ़ रह सकते हैं और साथ ही अपने मानवीय पक्ष को भी संतुलित रख सकते हैं।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>अर्जुन की मनःस्थिति का यह विश्लेषण हमें अपने जीवन में आने वाली समस्याओं को एक नए दृष्टिकोण से देखने की प्रेरणा देता है। यह हमें याद दिलाता है कि हर चुनौती एक अवसर है &&num;8211&semi; अपने आप को बेहतर समझने का&comma; अपने विचारों को परिष्कृत करने का&comma; और अंततः एक अधिक संतुलित और साર्थक जीवन जीने का।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>इस प्रकार&comma; महाभारत का यह प्रसंग न केवल एक ऐति<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<div class&equals;"wp-block-buttons is-content-justification-space-between is-layout-flex wp-container-core-buttons-is-layout-3d213aab wp-block-buttons-is-layout-flex">&NewLine;<div class&equals;"wp-block-button"><a class&equals;"wp-block-button&lowbar;&lowbar;link wp-element-button" href&equals;"https&colon;&sol;&sol;sanatanroots&period;com&sol;&percnt;e0&percnt;a4&percnt;ad&percnt;e0&percnt;a4&percnt;97&percnt;e0&percnt;a4&percnt;b5&percnt;e0&percnt;a4&percnt;a6-&percnt;e0&percnt;a4&percnt;97&percnt;e0&percnt;a5&percnt;80&percnt;e0&percnt;a4&percnt;a4&percnt;e0&percnt;a4&percnt;be-&percnt;e0&percnt;a4&percnt;85&percnt;e0&percnt;a4&percnt;a7&percnt;e0&percnt;a5&percnt;8d&percnt;e0&percnt;a4&percnt;af&percnt;e0&percnt;a4&percnt;be&percnt;e0&percnt;a4&percnt;af-1-&percnt;e0&percnt;a4&percnt;b6&percnt;e0&percnt;a5&percnt;8d&percnt;e0&percnt;a4&percnt;b2&percnt;e0&percnt;a5&percnt;8b&percnt;e0&percnt;a4&percnt;95-44&sol;">Previous<&sol;a><&sol;div>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<div class&equals;"wp-block-button"><a class&equals;"wp-block-button&lowbar;&lowbar;link wp-element-button">Next<&sol;a><&sol;div>&NewLine;<&sol;div>&NewLine;

Exit mobile version