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भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 1

सञ्जय उवाच।
तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम्।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदनः॥1॥

संजयः उवाच;-संजय ने कहा; तम्-उसे, अर्जुन को; कृपया-करुणा के साथ; आविष्टम–अभिभूत; अश्रु-पूर्ण-आसुओं से भरे; आकुल-निराश; ईक्षणम्-नेत्र; विषीदन्तम्-शोकाकुल; इदम्-ये; वाक्यम्-शब्द; उवाच-कहा;

Hindi translation : संजय ने कहा-करुणा से अभिभूत, मन से शोकाकुल और अश्रुओं से भरे नेत्रों वाले अर्जुन को देख कर श्रीकृष्ण ने निम्नवर्णित शब्द कहे।

गीता का अमर संदेश: अर्जुन की द्विविधा और कृष्ण का मार्गदर्शन

प्रस्तावना

महाभारत के युद्ध के मैदान पर, जब दो विशाल सेनाएं आमने-सामने खड़ी थीं, तब एक योद्धा के मन में उठे संशय ने पूरे मानव जाति के लिए एक अमूल्य ज्ञान का द्वार खोल दिया। यह योद्धा था अर्जुन, और उनके संशय का समाधान करने वाले थे स्वयं श्रीकृष्ण। इस संवाद से जन्मी श्रीमद्भगवद्गीता न केवल हिंदू धर्म का एक महत्वपूर्ण ग्रंथ है, बल्कि यह मानव जीवन के मूलभूत प्रश्नों का उत्तर देने वाला एक दार्शनिक मार्गदर्शक भी है।

अर्जुन की द्विविधा: मानवीय भावनाओं का प्रतिबिंब

करुणा और कर्तव्य का द्वंद्व

अर्जुन की स्थिति हर उस व्यक्ति की स्थिति है, जो जीवन में कभी न कभी कर्तव्य और भावनाओं के बीच फंस जाता है। युद्धभूमि में खड़े अर्जुन के सामने एक ओर उनके गुरु, पितामह, और अन्य प्रियजन थे, तो दूसरी ओर उनका क्षत्रिय धर्म।

“कृपया परीतात्मा विषीदन्निदमब्रवीत्”

इस पंक्ति में ‘कृपया’ शब्द अर्जुन की मनःस्थिति को बखूबी दर्शाता है। यहाँ दो प्रकार की करुणा का उल्लेख किया जा सकता है:

  1. दैवीय करुणा: यह वह करुणा है जो ईश्वर और संत भटकी हुई आत्माओं के प्रति महसूस करते हैं।
  2. मानवीय करुणा: यह वह करुणा है जो हम दूसरों के दुःख को देखकर महसूस करते हैं।

अर्जुन इस समय मानवीय करुणा से ग्रस्त हैं। उन्हें अपने सगे-संबंधियों से युद्ध करने में संकोच हो रहा है।

अर्जुन का विलाप: एक मानवीय प्रतिक्रिया

अर्जुन का विलाप एक सामान्य मानवीय प्रतिक्रिया है। वे कहते हैं:

“न काङ्क्षे विजयं कृष्ण न च राज्यं सुखानि च।
किं नो राज्येन गोविन्द किं भोगैर्जीवितेन वा॥”

अर्थात्, “हे कृष्ण, मुझे न तो विजय चाहिए, न राज्य और न ही सुख। हे गोविंद, हमें ऐसे राज्य से क्या लाभ, या ऐसे जीवन और भोगों से क्या लाभ?”

यह वाक्य दर्शाता है कि अर्जुन किस प्रकार अपने कर्तव्य और भावनाओं के बीच फंसे हुए हैं।

श्रीकृष्ण का मार्गदर्शन: ज्ञान का प्रकाश

कर्म योग का सिद्धांत

श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्म योग का महत्व समझाते हैं। वे कहते हैं:

“कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥”

अर्थात्, “तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल में कभी नहीं। इसलिए कर्मफल के हेतु मत बनो, और न ही कर्म न करने में तुम्हारी आसक्ति हो।”

यह सिद्धांत हमें सिखाता है कि हमें अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए, बिना फल की चिंता किए।

आत्मा की अमरता

श्रीकृष्ण अर्जुन को आत्मा की अमरता का ज्ञान देते हैं:

“न जायते म्रियते वा कदाचि-
न्नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥”

अर्थात्, “आत्मा कभी जन्म नहीं लेती और न ही मरती है। यह न तो कभी अस्तित्व में आई है और न ही कभी अस्तित्वहीन होगी। यह जन्मरहित, नित्य, शाश्वत और पुरातन है। शरीर के मारे जाने पर भी इसका नाश नहीं होता।”

यह ज्ञान अर्जुन को यह समझने में मदद करता है कि मृत्यु केवल शरीर का अंत है, आत्मा का नहीं।

गीता के मुख्य सिद्धांत

1. निष्काम कर्म

गीता का एक प्रमुख सिद्धांत है निष्काम कर्म, यानी बिना फल की इच्छा के कर्म करना। यह सिद्धांत हमें सिखाता है कि हमें अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए, चाहे परिणाम कुछ भी हो।

2. भक्ति योग

भक्ति योग का मार्ग ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण और प्रेम का मार्ग है। श्रीकृष्ण कहते हैं:

“मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु।
मामेवैष्यसि युक्त्वैवमात्मानं मत्परायणः॥”

अर्थात्, “सदा मुझमें मन लगाओ, मेरे भक्त बनो, मेरी पूजा करो, मुझे नमस्कार करो। इस प्रकार मुझमें पूर्णतया लीन होकर तुम निश्चय ही मुझे प्राप्त होगे।”

3. ज्ञान योग

ज्ञान योग आत्मज्ञान और परमात्मा के ज्ञान का मार्ग है। यह हमें सिखाता है कि सच्चा ज्ञान ही मोक्ष का मार्ग है।

4. धर्म का पालन

गीता हमें सिखाती है कि हमें अपने धर्म (कर्तव्य) का पालन करना चाहिए। श्रीकृष्ण कहते हैं:

“स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः”

अर्थात्, “अपने धर्म में मृत्यु श्रेयस्कर है, दूसरे का धर्म भयावह होता है।”

गीता के सिद्धांतों का वर्तमान जीवन में प्रयोग

आज के समय में गीता के सिद्धांत उतने ही प्रासंगिक हैं जितने वे हजारों साल पहले थे। आइए देखें कैसे हम इन सिद्धांतों को अपने दैनिक जीवन में लागू कर सकते हैं:

सिद्धांतदैनिक जीवन में प्रयोग
निष्काम कर्मअपने कार्य को पूरी ईमानदारी और समर्पण से करें, बिना परिणाम की चिंता किए
भक्ति योगजीवन में प्रेम और करुणा का भाव रखें
ज्ञान योगनिरंतर सीखने और आत्म-चिंतन की प्रक्रिया में रहें
धर्म का पालनअपने कर्तव्यों का पालन करें और नैतिक मूल्यों पर टिके रहें

निष्कर्ष

गीता का संदेश समय की सीमाओं से परे है। यह हमें सिखाती है कि जीवन में संतुलन कैसे बनाए रखें – कर्तव्य और भावनाओं के बीच, आध्यात्मिकता और भौतिकता के बीच। अर्जुन की तरह, हम सभी जीवन में कई बार ऐसी स्थितियों का सामना करते हैं जहां हमें कठिन निर्णय लेने होते हैं। ऐसे समय में गीता का ज्ञान हमारा मार्गदर्शन करता है।

गीता हमें याद दिलाती है कि हम सभी एक बृहत्तर योजना का हिस्सा हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम अपने कर्मों को पूरी निष्ठा से करें, बिना फल की चिंता किए। यह हमें सिखाती है कि सच्चा ज्ञान और आत्म-बोध ही जीवन का लक्ष्य है।

अंत में, गीता का संदेश है – जीवन एक यात्रा है, और इस यात्रा में हमें अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए, प्रेम और करुणा के साथ जीना चाहिए, और निरंतर आत्म-उन्नति की ओर बढ़ना चाहिए। यही जीवन का सार है, और यही गीता का अमर संदेश है।

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