भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 13
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्षीरस्तत्र न मुह्यति ॥13॥
देहिनः-देहधारी की; अस्मिन्-इसमें; यथा-जैसे; देहै-शरीर में; कौमारम्-बाल्यावस्था; यौवनम्-यौवन; जरा-वृद्धावस्था; तथा समान रूप से; देह-अन्तर-दूसरा शरीर; प्राप्तिः -प्राप्त होती है; धीर:-बुद्धिमान व्यक्ति; तत्र-इस संबंध मे; न-मुह्यति–मोहित नहीं होते।
Hindi translation: जैसे देहधारी आत्मा इस शरीर में बाल्यावस्था से तरुणावस्था और वृद्धावस्था की ओर निरन्तर अग्रसर होती है, वैसे ही मृत्यु के समय आत्मा दूसरे शरीर में चली जाती है। बुद्धिमान मनुष्य ऐसे परिवर्तन से मोहित नहीं होते।
पुनर्जन्म: एक सार्वभौमिक अवधारणा
प्रस्तावना
पुनर्जन्म की अवधारणा मानव चिंतन और दर्शन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रही है। यह विचार न केवल भारतीय दर्शन में गहराई से जड़ा हुआ है, बल्कि विश्व के कई अन्य संस्कृतियों और धर्मों में भी पाया जाता है। इस लेख में हम पुनर्जन्म के सिद्धांत को विभिन्न दृष्टिकोणों से समझने का प्रयास करेंगे।
श्रीकृष्ण का दृष्टिकोण
आत्मा की अमरता
श्रीकृष्ण भगवद्गीता में आत्मा की अमरता और पुनर्जन्म के सिद्धांत को स्पष्ट करते हैं। वे कहते हैं:
देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा।
तथा देहान्तरप्राप्तिर्धीरस्तत्र न मुह्यति॥
अर्थात, जैसे एक व्यक्ति के जीवन में बचपन, युवावस्था और वृद्धावस्था आती है, वैसे ही मृत्यु के बाद आत्मा एक नए शरीर में प्रवेश करती है।
शरीर का परिवर्तन
श्रीकृष्ण बताते हैं कि हमारा शरीर निरंतर परिवर्तनशील है:
- बाल्यावस्था से वृद्धावस्था तक शरीर बदलता रहता है।
- वैज्ञानिक अनुसंधान भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि हमारी शरीर की कोशिकाएँ लगातार नवीनीकृत होती रहती हैं।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
कोशिकीय परिवर्तन
आधुनिक विज्ञान ने शरीर के निरंतर परिवर्तन को प्रमाणित किया है:
- लगभग हर 7 वर्षों में शरीर की सभी कोशिकाएँ बदल जाती हैं।
- प्रत्येक श्वास के साथ ऑक्सीजन के अणु कोशिकाओं में प्रवेश करते हैं और कार्बन डाइऑक्साइड के रूप में बाहर निकलते हैं।
- एक वर्ष में शरीर के लगभग 98% अणु बदल जाते हैं।
आत्मा की निरंतरता
इतने परिवर्तनों के बावजूद हम अपनी पहचान बनाए रखते हैं, जो आत्मा की निरंतरता का संकेत देता है।
विश्व के विभिन्न धर्मों में पुनर्जन्म
भारतीय धर्म
- हिंदू धर्म
- जैन धर्म
- सिख धर्म
- बौद्ध धर्म
पाश्चात्य दर्शन
- पाइथागोरस
- प्लेटो
- सुकरात
अन्य धार्मिक परंपराएँ
- ओरफिसिज्म
- हरमिटिसिज्म
- नियोप्लेटोनिज्म
- मैनीकिनिज्म
- नोस्टिसिज्म
अब्राहमिक धर्मों में पुनर्जन्म
यहूदी धर्म
- काब्बालाह में ‘गिलगुल नेशमोट’ की अवधारणा
- जोसेफस के लेखन में पुनर्जन्म के संकेत
ईसाई धर्म
- प्राचीन ईसाई समुदायों में पुनर्जन्म की मान्यता
- नाईकिया की धर्म सभा (325 ई.) में पुनर्जन्म पर चर्चा
- जीसस के कथन में जॉन के पूर्वजन्म का उल्लेख
इस्लाम
- सूफी परंपरा में पुनर्जन्म के विचार
- मौलाना रूमी की कविता में पुनर्जन्म का वर्णन
आदिवासी संस्कृतियों में पुनर्जन्म
- साइबेरिया
- पश्चिम अफ्रीका
- उत्तरी अमेरिका
- ऑस्ट्रेलिया
आधुनिक काल में पुनर्जन्म की अवधारणा
दार्शनिक विचारधाराएँ
- स्पिरिटुअलिज्म
- थियोसोफी
- रोजिक्रूशियन
- न्यू एज मूवमेंट
वैज्ञानिक अध्ययन
- डॉ. इयान स्टीवेंसन का कार्य
- डॉ. जिम टकर का अनुसंधान
पुनर्जन्म: एक तार्किक समाधान
पुनर्जन्म का सिद्धांत जीवन की कई जटिलताओं को समझने में मदद करता है:
- दुःख और अव्यवस्था के कारणों की व्याख्या
- जीवन की असमानताओं का स्पष्टीकरण
- नैतिक और आध्यात्मिक विकास की संभावना
प्रसिद्ध व्यक्तियों के विचार
दार्शनिक
- गोथे
- फिचते
- शैलिंग
- लैसिंग
- ह्यूम
- स्पेन्सर
- मैक्स मूलर
कवि
- ब्राउनिंग
- रोसेटी
- टेनिसन
- वर्डस्वर्थ
निष्कर्ष
पुनर्जन्म का सिद्धांत मानव चिंतन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। यह न केवल भारतीय दर्शन का मूल तत्व है, बल्कि विश्व के कई अन्य संस्कृतियों और धर्मों में भी पाया जाता है। आधुनिक विज्ञान और दर्शन भी इस विचार को एक नए दृष्टिकोण से देख रहे हैं। पुनर्जन्म की अवधारणा जीवन की जटिलताओं को समझने और उनका सामना करने में मदद करती है, साथ ही यह आत्मा की अमरता और निरंतर विकास की संभावना को भी प्रस्तुत करती है।
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