Bhagwat Geeta

भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 70

आपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं समुद्रमापः प्रविशन्ति यद्वत् ।
तद्वत्कामा यं प्रविशन्ति सर्वे स शान्तिमाजोति न कामकामी ॥70॥


आपूर्यमाणम्-सभी ओर से जलमग्न; अचल-प्रतिष्ठम्-विक्षुब्ध न होना; समुद्रम् समुद्र में; आपः-जलः प्रविशन्ति–प्रवेश करती हैं; यद्वत्-जिस प्रकार; तद्वत्-उसी प्रकार; काम-कामनाएँ यम्-जिसमें; प्रविशन्ति–प्रवेश करती हैं; सर्वे सभी; सः-वह व्यक्ति; शन्तिम्-शान्ति; आप्नोति–प्राप्त करता है; न-नहीं; कामकामी-कामनाओं को तुष्ट करने वाला।

Hindi translation: जिस प्रकार से समुद्र उसमें निरन्तर मिलने वाली नदियों के जल के प्रवाह से विक्षुब्ध नहीं होता उसी प्रकार से ज्ञानी अपने चारों ओर इन्द्रियों के विषयों के आवेग के पश्चात भी शांत रहता है, न कि उस मनुष्य की भांति जो कामनाओं को तुष्ट करने के प्रयास में लगा रहता है।

समुद्र की तरह: आत्मज्ञान का महासागर

प्रस्तावना

समुद्र, अपनी विशालता और गहराई में, मानव जीवन के लिए एक अद्भुत प्रतीक है। जैसे समुद्र अनगिनत नदियों का जल स्वीकार करता है, फिर भी अपनी स्थिरता नहीं खोता, वैसे ही एक आत्मज्ञानी व्यक्ति जीवन के उतार-चढ़ाव में भी अपनी आंतरिक शांति बनाए रखता है। आइए इस गहन विषय को विस्तार से समझें।

समुद्र का स्वभाव: एक अद्भुत उदाहरण

निरंतर प्रवाह और स्थिरता

समुद्र की सबसे आश्चर्यजनक विशेषता है उसकी अटल स्थिरता। चाहे कितनी भी नदियाँ उसमें मिलें, वह न तो उफनता है और न ही खाली होता है। यह स्थिरता हमें सिखाती है कि जीवन में संतुलन कैसे बनाए रखा जाए।

अपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं: श्रीकृष्ण का ज्ञान

श्रीकृष्ण ने गीता में “अपूर्यमाणमचलप्रतिष्ठं” शब्द का प्रयोग किया, जिसका अर्थ है “सभी ओर से जलमग्न, फिर भी अचल”। यह शब्द समुद्र की अद्भुत क्षमता को दर्शाता है, जो हमें जीवन में स्थिरता का पाठ सिखाता है।

आत्मज्ञानी का जीवन: समुद्र की तरह

इंद्रियों के विषय और आत्मज्ञान

एक आत्मज्ञानी व्यक्ति, समुद्र की तरह, जीवन के विभिन्न अनुभवों को स्वीकार करता है, लेकिन उनसे प्रभावित नहीं होता। चाहे वह सुख हो या दुख, लाभ हो या हानि, वह अपनी आंतरिक शांति बनाए रखता है।

शांति और स्थिरता: आत्मज्ञान का लक्षण

जैसे समुद्र हर परिस्थिति में शांत रहता है, वैसे ही एक आत्मज्ञानी व्यक्ति जीवन की हर परिस्थिति में अपनी मानसिक शांति बनाए रखता है। यह स्थिति उसे वास्तविक आनंद और संतोष प्रदान करती है।

आत्मज्ञान की यात्रा: समुद्र से सीख

1. स्वीकार करना सीखें

जैसे समुद्र सभी नदियों को स्वीकार करता है, वैसे ही हमें जीवन के सभी अनुभवों को स्वीकार करना सीखना चाहिए। यह स्वीकृति हमें मानसिक शांति प्रदान करती है।

2. संतुलन बनाए रखें

समुद्र कभी अतिप्लावित नहीं होता और न ही खाली होता है। इसी तरह, हमें भी जीवन में संतुलन बनाए रखना चाहिए – न तो अत्यधिक खुशी में डूबना चाहिए और न ही दुख में।

3. गहराई विकसित करें

समुद्र की गहराई उसे स्थिरता प्रदान करती है। इसी तरह, हमें भी अपने विचारों और भावनाओं की गहराई विकसित करनी चाहिए, जो हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने में मदद करेगी।

आत्मज्ञान के लाभ: एक तुलनात्मक दृष्टिकोण

आइए, आत्मज्ञान के लाभों को समुद्र की विशेषताओं के साथ तुलना करके समझें:

समुद्र की विशेषताआत्मज्ञान का लाभ
निरंतर स्थिरतामानसिक शांति
सभी नदियों को स्वीकार करनासभी अनुभवों को स्वीकार करना
न अतिप्लावित होना, न खाली होनासंतुलित जीवनशैली
गहराईआत्मिक गहनता
विशालताव्यापक दृष्टिकोण

आत्मज्ञान की प्राप्ति: व्यावहारिक सुझाव

1. ध्यान और योग का अभ्यास

नियमित ध्यान और योग का अभ्यास आपको अपने आंतरिक स्वयं से जुड़ने में मदद करेगा। यह आपकी मानसिक शांति और स्थिरता को बढ़ाएगा।

2. स्व-चिंतन का महत्व

प्रतिदिन कुछ समय स्व-चिंतन के लिए निकालें। अपने विचारों, भावनाओं और क्रियाओं पर गहराई से विचार करें। यह आपको बेहतर आत्म-जागरूकता प्रदान करेगा।

3. ज्ञान का अर्जन

विभिन्न दार्शनिक और आध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन करें। यह आपके ज्ञान को बढ़ाएगा और आपको जीवन के गहन प्रश्नों पर विचार करने में मदद करेगा।

4. सेवा और करुणा का अभ्यास

दूसरों की निःस्वार्थ सेवा करना और करुणा का अभ्यास करना आपको अपने अहंकार से मुक्त होने में मदद करेगा। यह आत्मज्ञान की यात्रा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

चुनौतियाँ और उनका समाधान

आत्मज्ञान की यात्रा सरल नहीं होती। कई चुनौतियाँ आती हैं, जैसे:

  1. अहंकार का प्रभाव: अहंकार हमें वास्तविक आत्मज्ञान से दूर रखता है।
  • समाधान: नम्रता का अभ्यास करें और अपने कार्यों पर निरंतर चिंतन करें।
  1. भौतिक आकर्षण: संसार के भौतिक आकर्षण हमें भटका सकते हैं।
  • समाधान: संतोष और सादगी का जीवन जीएं। याद रखें कि वास्तविक सुख आंतरिक होता है।
  1. अस्थिर मन: मन की चंचलता आत्म-चिंतन में बाधा डाल सकती है।
  • समाधान: नियमित ध्यान और एकाग्रता के अभ्यास से मन को शांत और स्थिर करें।

आत्मज्ञान और समाज

आत्मज्ञान केवल व्यक्तिगत विकास तक सीमित नहीं है। यह समाज पर भी गहरा प्रभाव डालता है:

  1. शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व: आत्मज्ञानी व्यक्ति दूसरों के साथ सद्भाव से रहना सीखता है, जो एक शांतिपूर्ण समाज की नींव है।
  2. नैतिक मूल्यों का विकास: आत्मज्ञान नैतिक मूल्यों को मजबूत करता है, जो एक स्वस्थ समाज के लिए आवश्यक है।
  3. सामाजिक उत्तरदायित्व: एक आत्मज्ञानी व्यक्ति अपने सामाजिक उत्तरदायित्वों के प्रति अधिक जागरूक होता है।

निष्कर्ष

समुद्र की तरह, आत्मज्ञान हमें जीवन की हर परिस्थिति में स्थिर और शांत रहना सिखाता है। यह एक ऐसी यात्रा है जो हमें अपने वास्तविक स्वरूप की ओर ले जाती है। जैसे समुद्र अपनी विशालता में सभी नदियों को समाहित करता है, वैसे ही आत्मज्ञान हमें जीवन के सभी अनुभवों को स्वीकार करने और उनसे सीखने की शक्ति देता है।

आत्मज्ञान की यह यात्रा न केवल व्यक्तिगत शांति और संतोष प्रदान करती है, बल्कि एक बेहतर समाज के निर्माण में भी योगदान देती है। यह हमें सिखाती है कि वास्तविक शक्ति बाहरी परिस्थितियों को नियंत्रित करने में नहीं, बल्कि उन्हें स्वीकार करने और उनके बीच अपनी आंतरिक शांति बनाए रखने में है।

अंत में, याद रखें कि आत्मज्ञान एक लक्ष्य नहीं, बल्कि एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। जैसे समुद्र कभी रुकता नहीं, वैसे ही आत्मज्ञान की यात्रा भी निरंतर चलती रहती है। इस यात्रा में हर कदम, हर अनुभव हमें अपने सच्चे स्वरूप के करीब लाता है।

आइए, समुद्र से प्रेरणा लेकर, अपने जीवन को आत्मज्ञान के प्रकाश से आलोकित करें और एक ऐसा जीवन जीएं जो न केवल हमारे लिए, बल्कि पूरे समाज के लिए लाभदायक हो। क्योंकि जब हम अपने भीतर के समुद्र की गहराई को समझ लेते हैं, तब हम वास्तव में जीवन के हर पहलू में शांति और संतुष्टि का अनुभव कर सकते हैं।

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