Bhagwat Geeta

भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 58

यदा संहरते चायं कूर्मोऽङ्गानीव सर्वशः।
इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥58॥

यदा-जब; संहरते-संकुचित कर लेता है; च-भी; अयम् यह; कर्म:-कछुआ; अड्गानि–अंग; इव-वैसे ही; सर्वशः-पूरी तरह; इन्द्रियाणि-इन्द्रियाँ इन्द्रिय-अर्थभ्यः-इन्द्रियविषयों से; तस्य-उसकी; प्रज्ञा-दिव्य चेतना; प्रतिष्ठिता-स्थित।

Hindi translation: जो मनुष्य अपनी इन्द्रियों को उनके विषय भोगों से खींच लेने के लिए उसी प्रकार से योग्य होता है, जैसे एक कछुआ अपने अंगो को संकुचित करके उन्हें खोल के भीतर कर लेता है, वह दिव्य ज्ञान में स्थिर हो जाता है।

मुझे आपके द्वारा दिए गए विषय पर एक व्यापक और मौलिक ब्लॉग लिखने में प्रसन्नता होगी। मैं इसे शीर्षक, उपशीर्षक और उपयुक्त विभाजन के साथ प्रस्तुत करूंगा। यहां प्रस्तुत है:

इंद्रियों पर नियंत्रण: आध्यात्मिक जीवन की कुंजी

प्रस्तावना

मानव जीवन में इंद्रियों का महत्वपूर्ण स्थान है। ये हमें बाहरी दुनिया से जोड़ती हैं और अनुभवों का द्वार खोलती हैं। लेकिन क्या इन इंद्रियों की तृप्ति ही हमारे जीवन का लक्ष्य है? क्या इनकी अनियंत्रित इच्छाओं की पूर्ति से हमें वास्तविक सुख मिल सकता है? आइए इस गहन विषय पर विस्तार से चर्चा करें।

इंद्रियों की प्रकृति और उनकी तृप्ति का भ्रम

इंद्रियों की असीमित लालसा

इंद्रियां अपनी प्रकृति से ही असंतुष्ट होती हैं। उनकी इच्छाएं कभी समाप्त नहीं होतीं। जैसे-जैसे हम उनकी तृप्ति करते जाते हैं, वे और अधिक मांग करने लगती हैं। यह एक अंतहीन चक्र है जो मनुष्य को भटकाता रहता है।

अग्नि में घी का दृष्टांत

भगवद्गीता में एक सुंदर उपमा दी गई है:

इंद्रियों की तुष्टि करने के लिए उसके विषयों से संबंधित इच्छित पदार्थों की आपूर्ति करते हुए इंद्रियों को शांत करने का प्रयास ठीक वैसा ही है जैसे जलती आग में घी की आहुति डालकर उसे बुझाने का प्रयास करना।

यह उपमा बताती है कि जैसे आग में घी डालने से वह और भड़क उठती है, उसी प्रकार इंद्रियों को विषय देने से उनकी तृष्णा और बढ़ जाती है।

श्रीमद्भागवतम् का संदेश

श्रीमद्भागवतम् में भी इसी विचार को और स्पष्ट किया गया है:

न जातु कामः कामानामुपभोगेन शाम्यति । 
हविषा कृष्णवर्मेव भूय एवाभिवर्धते ।।

अर्थात्, जैसे आग में घी डालने से वह शांत नहीं होती बल्कि और भड़क उठती है, उसी प्रकार इंद्रियों की तृप्ति करने से वे शांत नहीं होतीं, बल्कि उनकी मांग और बढ़ जाती है।

इच्छाओं की प्रकृति: एक गहन विश्लेषण

खाज का उदाहरण

इच्छाओं की प्रकृति को समझने के लिए खाज का उदाहरण बहुत उपयुक्त है:

  1. खाज कष्टदायक होती है और खुजलाने की तीव्र इच्छा जगाती है।
  2. खुजलाने से तात्कालिक राहत मिलती है।
  3. लेकिन कुछ ही देर में खाज और अधिक बढ़ जाती है।
  4. यदि खाज को कुछ समय तक सहन किया जाए, तो वह धीरे-धीरे कम हो जाती है।

यही सिद्धांत इच्छाओं पर भी लागू होता है। जब हम इच्छाओं को नियंत्रित करना सीखते हैं, तब वे धीरे-धीरे कम होने लगती हैं।

मृग-तृष्णा का भ्रम

इंद्रियों द्वारा उत्पन्न सुख की तुलना मृग-तृष्णा से की जा सकती है। जैसे मरुस्थल में प्यासा हिरण दूर दिखाई देने वाले जल की ओर भागता है, जो वास्तव में एक भ्रम होता है, उसी प्रकार इंद्रियजन्य सुख भी भ्रामक होता है।

आध्यात्मिक दृष्टिकोण: इंद्रियों पर नियंत्रण

कछुए का उदाहरण

प्राचीन भारतीय ग्रंथों में कछुए का उदाहरण देकर इंद्रियों पर नियंत्रण का महत्व समझाया गया है:

  1. संकट के समय कछुआ अपने अंगों को खोल के अंदर समेट लेता है।
  2. खतरा टलने पर वह फिर से अपने अंगों को बाहर निकालता है।
  3. इसी प्रकार, प्रबुद्ध व्यक्ति अपनी इंद्रियों को नियंत्रित कर सकता है।

आत्म-नियंत्रण का महत्व

आत्म-नियंत्रण एक महत्वपूर्ण गुण है जो व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाता है। यह निम्नलिखित लाभ प्रदान करता है:

  1. मानसिक शांति
  2. बेहतर निर्णय क्षमता
  3. आत्म-जागरूकता में वृद्धि
  4. जीवन के उच्च लक्ष्यों की प्राप्ति

व्यावहारिक सुझाव: इंद्रियों पर नियंत्रण कैसे पाएं

  1. ध्यान और योग: नियमित ध्यान और योगाभ्यास से मन को शांत करने में मदद मिलती है।
  2. संतुलित जीवनशैली: संतुलित आहार और नियमित व्यायाम से शरीर और मन दोनों स्वस्थ रहते हैं।
  3. सत्संग: अच्छे लोगों की संगति से सकारात्मक विचार आते हैं और इंद्रियों पर नियंत्रण पाने में मदद मिलती है।
  4. आत्म-चिंतन: रोजाना कुछ समय अपने विचारों और कर्मों पर चिंतन करें।
  5. सेवा भाव: दूसरों की निःस्वार्थ सेवा करने से अहंकार कम होता है और इंद्रियों पर नियंत्रण बढ़ता है।

निष्कर्ष

इंद्रियों पर नियंत्रण पाना एक कला है जो धैर्य और अभ्यास से सीखी जा सकती है। यह न केवल व्यक्तिगत जीवन में सुख-शांति लाती है, बल्कि समाज के लिए भी लाभदायक है। जब हम अपनी इंद्रियों के दास नहीं, बल्कि स्वामी बन जाते हैं, तब हम जीवन के उच्च लक्ष्यों को प्राप्त करने की ओर अग्रसर होते हैं।

इस प्रकार, इंद्रियों पर नियंत्रण न केवल एक आध्यात्मिक अभ्यास है, बल्कि एक ऐसा जीवन कौशल है जो हमें अधिक संतुलित, शांत और प्रसन्न जीवन जीने में मदद करता है। यह हमें वास्तविक सुख की ओर ले जाता है, जो क्षणिक इंद्रिय सुख से कहीं अधिक गहरा और स्थायी होता है।

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