Bhagwat Geeta

भगवद गीता: अध्याय 3, श्लोक 17

यस्वात्मरतिरेव स्यादात्मतृप्तश्च मानवः ।
आत्मन्येव च सन्तुष्टस्तस्य कार्यं न विद्यते ॥17॥

यः-जो; तु-लेकिन; आत्म-रतिः-अपनी आत्मा में ही रमण करना; एव-निश्चय ही; स्यात्-रहता है; आत्म-तृप्तः-आत्म संतुष्टि; च-तथा; मानव:-मनुष्य; आत्मनि-अपनी आत्मा में; एव-निश्चय ही; च-और; सन्तुष्ट:-सन्तुष्ट; तस्य-उसका; कार्यम्-कर्त्तव्य; न-नहीं; विद्यते-रहता।

Hindi translation: लेकिन जो मनुष्य आत्मानंद में स्थित रहते हैं तथा जो प्रबुद्ध और पूर्णतया आत्म संतुष्ट होते हैं, उनके लिए कोई नियत कर्त्तव्य नहीं होता।

आत्मज्ञान और कामनाओं का त्याग: जीवन की सच्ची समृद्धि की कुंजी

प्रस्तावना

मानव जीवन की यात्रा में, हम अक्सर खुद को विभिन्न इच्छाओं और कामनाओं से घिरा हुआ पाते हैं। ये कामनाएँ हमें सुख और संतुष्टि का वादा करती हैं, लेकिन वास्तव में वे हमें बंधन में डाल देती हैं। इस ब्लॉग में, हम इस गहन विषय की पड़ताल करेंगे कि कैसे कामनाओं का त्याग और आत्मज्ञान की प्राप्ति हमें सच्चे आनंद और आत्मलीनता की ओर ले जा सकते हैं।

कामनाओं का स्वरूप और उनका प्रभाव

कामनाओं का उद्गम

कामनाएँ मनुष्य के मन में कैसे जन्म लेती हैं? यह समझना महत्वपूर्ण है कि जब हम अपने आप को केवल शरीर मानते हैं, तब हम भौतिक इच्छाओं के जाल में फँस जाते हैं। संत तुलसीदास ने इस स्थिति को बहुत सुंदर ढंग से व्यक्त किया है:

जिब जिब ते हरि ते बिलगानो तब ते देह गेह निज मान्यो।
माया बस स्वरूप बिसरायो तेहि भ्रम ते दारुण दुःख पायो।

इन पंक्तियों का अर्थ है कि जब जीवात्मा भगवान से दूर हो जाती है, तब माया का प्रभाव उस पर पड़ता है। इस भ्रम के कारण, हम अपने वास्तविक स्वरूप को भूलकर शरीर को ही अपना अस्तित्व मान लेते हैं, जिससे हमें अपार दुःख का सामना करना पड़ता है।

कामनाओं का दुष्प्रभाव

श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण स्पष्ट करते हैं कि सांसारिक कामनाएँ ही हमारे बंधन का मूल कारण हैं। वे कहते हैं कि ये कामनाएँ हमें निरंतर यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि “यह होना चाहिए, और यह नहीं होना चाहिए।” इस प्रकार, हम अपने मन की शांति खो देते हैं और निरंतर अशांति में जीते हैं।

आत्मज्ञान का महत्व

आत्मा की अमरता

ज्ञानी पुरुष यह समझते हैं कि आत्मा का कोई भौतिक स्वरूप नहीं है। आत्मा दिव्य और अविनाशी है। यह ज्ञान हमें यह समझने में मदद करता है कि संसार के नश्वर पदार्थ कभी भी अविनाशी आत्मा की तृष्णा को शांत नहीं कर सकते।

आत्मज्ञान से मिलने वाला आनंद

जब कोई व्यक्ति आत्मज्ञान प्राप्त कर लेता है, तो वह अपनी चेतना को भगवान के साथ एकीकृत कर लेता है। इस स्थिति में, वह अपने भीतर भगवान के असीम आनंद की अनुभूति करता है। यह आनंद किसी भी सांसारिक सुख से कहीं अधिक गहरा और स्थायी होता है।

कर्म और आत्मज्ञान

नियत कर्म का महत्व

सांसारिक जीवन में लिप्त लोगों के लिए, नियत कर्म का पालन करना आवश्यक होता है। यह उनके आध्यात्मिक विकास के लिए एक साधन के रूप में कार्य करता है।

आत्मज्ञानी और कर्म

लेकिन जो लोग आत्मज्ञान प्राप्त कर चुके हैं, उनके लिए ये नियत कर्म अनावश्यक हो जाते हैं। यह ऐसा ही है जैसे कोई छात्र स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद विश्वविद्यालय के नियमों से मुक्त हो जाता है।

वेदों का उद्देश्य और आत्मज्ञान

वेदों का लक्ष्य

वेदों का मुख्य उद्देश्य जीवात्मा को भगवान के साथ एकनिष्ठ करने में सहायता करना है। वे एक मार्गदर्शक की भूमिका निभाते हैं, जो आत्मा को उसके लक्ष्य तक पहुँचाने में मदद करता है।

आत्मज्ञान प्राप्ति के बाद

एक बार जब कोई व्यक्ति भगवद्प्राप्ति कर लेता है, तो वेदों के नियम उस पर लागू नहीं होते। यह इसलिए है क्योंकि वह व्यक्ति अब वेदों के अधिकार क्षेत्र से परे हो जाता है। यह ऐसा ही है जैसे विवाह के बाद पंडित का काम समाप्त हो जाता है।

आध्यात्मिक उन्नति और भगवद्प्राप्ति

सांसारिक कामनाओं का त्याग

यह महत्वपूर्ण है कि हम समझें कि जब श्रीकृष्ण कामनाओं के त्याग की बात करते हैं, तो उनका तात्पर्य केवल सांसारिक कामनाओं से है। वे आध्यात्मिक उन्नति की अभिलाषा या भगवद्प्राप्ति की इच्छा का त्याग करने की बात नहीं करते।

आध्यात्मिक यात्रा का महत्व

आध्यात्मिक उन्नति और भगवद्प्राप्ति की इच्छा वास्तव में हमारी आत्मा को उसके वास्तविक स्वरूप की ओर ले जाती है। यह एक ऐसी यात्रा है जो हमें सच्चे आनंद और शांति की ओर ले जाती है।

निष्कर्ष

अंत में, यह समझना महत्वपूर्ण है कि सांसारिक कामनाओं का त्याग और आत्मज्ञान की प्राप्ति जीवन की सच्ची समृद्धि की कुंजी है। यह एक ऐसी यात्रा है जो हमें अपने वास्तविक स्वरूप की ओर ले जाती है और हमें असीम आनंद और शांति प्रदान करती है। हालांकि यह मार्ग चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन यह निश्चित रूप से सार्थक और फलदायी है।

तालिका: कामनाओं का त्याग बनाम आत्मज्ञान

कामनाओं का त्यागआत्मज्ञान
सांसारिक इच्छाओं से मुक्तिआत्मा के वास्तविक स्वरूप का बोध
मानसिक शांतिआंतरिक आनंद
बंधनों से मुक्तिभगवान के साथ एकत्व
दुःख से मुक्तिपरम सुख की प्राप्ति
माया के प्रभाव से मुक्तिसत्य का साक्षात्कार

इस तालिका से स्पष्ट होता है कि कामनाओं का त्याग और आत्मज्ञान की प्राप्ति एक दूसरे के पूरक हैं। जहाँ कामनाओं का त्याग हमें नकारात्मक प्रभावों से मुक्त करता है, वहीं आत्मज्ञान हमें सकारात्मक अनुभूतियों की ओर ले जाता है।

अंत में, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि यह यात्रा एक दिन में पूरी नहीं होती। यह एक निरंतर प्रक्रिया है जिसमें धैर्य, दृढ़ संकल्प और आत्मचिंतन की आवश्यकता होती है। लेकिन जो इस मार्ग पर चलते हैं, वे अंततः जीवन के सच्चे उद्देश्य को प्राप्त करते हैं और परम आनंद का अनुभव करते हैं।

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