भगवद गीता: अध्याय 5, श्लोक 18

विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि ।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः ॥18॥
विद्या-दिव्य ज्ञान; विनय-विनम्रता से; सम्पन्ने-से युक्त; ब्राह्मणे-ब्राह्मण; गवि-गाय में; हस्तिनि हाथी में; शुनि–कुत्ते में; च–तथा; एव–निश्चय ही; श्वपाके-कुत्ते का मांस भक्षण करने वाले, चाण्डाल में; च-और; पण्डिताः-विद्ववान; समदर्शिनः-समदृष्टि।
Hindi translation: सच्चे ज्ञानी महापुरुष एक ब्राह्मण, गाय, हाथी, कुत्ते और चाण्डाल को अपने दिव्य ज्ञान के चक्षुओं द्वारा समदृष्टि से देखते हैं।
दिव्य ज्ञान की दृष्टि: समानता का मार्ग
ज्ञान चक्षु से देखना: एक नया दृष्टिकोण
जीवन में हम अक्सर चीजों को अपनी सीमित दृष्टि से देखते हैं। लेकिन क्या होगा अगर हम अपनी आंखों को ज्ञान के प्रकाश से प्रकाशित कर लें? यह ब्लॉग हमें उस दिव्य दृष्टि की ओर ले जाएगा, जो हमें सभी प्राणियों में समानता देखने की शक्ति देती है।
प्रज्ञा चक्षु: ज्ञान की आंखें
‘प्रज्ञा चक्षु’ या ‘ज्ञान चक्षु’ एक ऐसी अवधारणा है जो हमें सिखाती है कि कैसे चीजों को गहराई से देखा जाए। यह केवल बाहरी रूप को नहीं, बल्कि उसके पीछे छिपे सार को देखने की कला है। श्रीकृष्ण ने इसे ‘विद्या सम्पन्ने’ कहा है, जिसका अर्थ है ज्ञान से परिपूर्ण।
विद्या और विनय का संगम
श्रीकृष्ण ने ‘विद्या सम्पन्ने’ के साथ ‘विनय सम्पन्ने’ शब्द का भी प्रयोग किया है। यह दर्शाता है कि सच्चा ज्ञान विनम्रता से युक्त होता है। आइए इन दोनों गुणों की तुलना करें:
गुण | लक्षण | परिणाम |
---|---|---|
विद्या (ज्ञान) | गहन समझ, विवेक | सत्य की पहचान |
विनय (विनम्रता) | नम्रता, सरलता | अहंकार का अभाव |
जब ये दोनों गुण मिलते हैं, तो व्यक्ति में एक अद्भुत संतुलन आता है। वह न केवल ज्ञानी होता है, बल्कि उस ज्ञान को सही तरीके से उपयोग करने की समझ भी रखता है।
दिव्य ज्ञान बनाम पुस्तकीय ज्ञान
दिव्य ज्ञान और पुस्तकीय ज्ञान में एक महत्वपूर्ण अंतर है:
- दिव्य ज्ञान:
- मानवीय चेतना से युक्त
- जीवन के प्रति गहरी समझ
- करुणा और प्रेम से भरा
2. पुस्तकीय ज्ञान:
- विद्वत्ता के अभिमान से युक्त
- सिर्फ तथ्यों और आंकड़ों पर आधारित
- अक्सर संवेदनहीन और शुष्क
दिव्य ज्ञान हमें सिर्फ जानकारी नहीं देता, बल्कि उस जानकारी को जीवन में उतारने की प्रेरणा भी देता है।
दिव्य दृष्टि: सभी में समानता
आत्मा की एकता
श्रीकृष्ण ने बताया कि दिव्य ज्ञान से युक्त व्यक्ति सभी प्राणियों को एक समान देखता है। यह दृष्टि हमें सिखाती है कि:
- सभी प्राणी भगवान का अंश हैं
- प्रत्येक जीव में एक ही आत्मा निवास करती है
- बाहरी भेद केवल शारीरिक हैं, आंतरिक सत्य एक है
विविधता में एकता
श्रीकृष्ण ने कुछ उदाहरण दिए जो दर्शाते हैं कि कैसे हम बाहरी रूप से भिन्न प्राणियों को देखते हैं:
- ब्राह्मण और चाण्डाल:
- ब्राह्मण: धार्मिक अनुष्ठान करने वाले, सम्मानित
- चाण्डाल: निम्न जाति माना जाने वाला, अक्सर तिरस्कृत
2. गाय और कुत्ता:
- गाय: दूध देने वाली, उपयोगी
- कुत्ता: पालतू जानवर, कम उपयोगी माना जाता है
3. हाथी और अन्य पशु:
- हाथी: उत्सवों में प्रयोग होता है
- अन्य पशु: उत्सवों में कम महत्व
समदर्शिता: सबको एक समान देखना
दिव्य ज्ञान हमें सिखाता है कि इन सभी भेदों के पीछे एक ही सत्य छिपा है। यह दृष्टिकोण हमें सिखाता है:
- सभी प्राणियों में समान आत्मा का निवास
- बाहरी भेदों से ऊपर उठकर देखने की कला
- प्रत्येक जीव के प्रति करुणा और प्रेम का भाव
वर्ण व्यवस्था: एक नया दृष्टिकोण
वेदों का सच्चा अर्थ
वेद किसी भी जाति या वर्ग को श्रेष्ठ या निम्न नहीं मानते। वे सिखाते हैं:
- सभी मनुष्य समान हैं
- कर्म से व्यक्ति की श्रेष्ठता निर्धारित होती है, जन्म से नहीं
- प्रत्येक व्यक्ति में दिव्यता का वास है
विभिन्न वर्णों की भूमिकाएँ
वैदिक दर्शन में चार वर्णों का उल्लेख है, लेकिन ये जन्म पर नहीं, बल्कि गुण और कर्म पर आधारित हैं:
- ब्राह्मण:
- कार्य: धार्मिक और आध्यात्मिक शिक्षा
- गुण: ज्ञान, तपस्या, सरलता
2. क्षत्रिय:
- कार्य: समाज का संरक्षण और प्रशासन
- गुण: शौर्य, नेतृत्व क्षमता, न्याय प्रियता
3. वैश्य:
- कार्य: व्यापार और कृषि
- गुण: उद्यमशीलता, कुशल प्रबंधन
4. शूद्र:
- कार्य: सेवा और श्रम
- गुण: कर्मठता, निष्ठा, समर्पण
समानता का सिद्धांत
दिव्य ज्ञान हमें सिखाता है कि इन सभी वर्णों के पीछे एक ही सत्य है:
- सभी भगवान का अंश हैं
- प्रत्येक व्यक्ति की भूमिका समाज के लिए महत्वपूर्ण है
- किसी भी कार्य को छोटा या बड़ा नहीं माना जा सकता
दिव्य ज्ञान का व्यावहारिक उपयोग
दैनिक जीवन में समदर्शिता
- परिवार में:
- सभी सदस्यों को समान महत्व देना
- बच्चों और बुजुर्गों के प्रति समान प्रेम और सम्मान
2. कार्यस्थल पर:
- सभी सहकर्मियों को समान दृष्टि से देखना
- किसी भी कार्य को छोटा न समझना
3. समाज में:
- जाति, धर्म, वर्ग के भेदभाव से ऊपर उठना
- सभी के साथ समान व्यवहार करना
आध्यात्मिक विकास में समदर्शिता का महत्व
- आत्म-ज्ञान:
- स्वयं को पहचानने में मदद
- अहंकार से मुक्ति
2. करुणा का विकास:
- सभी प्राणियों के प्रति दया का भाव
- सेवा भाव का उदय
3. मोक्ष का मार्ग:
- द्वैत भाव से मुक्ति
- परमात्मा से एकत्व की अनुभूति
निष्कर्ष: एक नई दृष्टि की ओर
दिव्य ज्ञान हमें एक नई दृष्टि देता है, जो हमें सिखाती है:
- सभी प्राणियों में एक ही आत्मा का वास है
- बाहरी भेद मायावी हैं, आंतरिक सत्य एक है
- प्रत्येक जीव में दिव्यता छिपी है
यह दृष्टि हमें न केवल एक बेहतर इंसान बनाती है, बल्कि हमें आध्यात्मिक उन्नति के पथ पर भी आगे बढ़ाती है। जब हम सभी को समान दृष्टि से देखना सीख जाते हैं, तब हम वास्तव में ज्ञान के उस स्तर पर पहुंच जाते हैं जहां हम सच्चे अर्थों में ‘प्रज्ञा चक्षु’ या ‘ज्ञान चक्षु’ से देखना सीख जाते हैं।
अंत में, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि दिव्य ज्ञान केवल एक अवधारणा नहीं है, बल्कि एक जीवन शैली है। यह हमें सिखाता है कि कैसे हर पल, हर स्थिति में समदर्शी बनें। जब हम इस दृष्टि को अपनाते हैं, तो हम न केवल अपने जीवन को बदलते हैं, बल्कि पूरे समाज और विश्व को एक बेहतर स्थान बनाने में योगदान देते हैं।
याद रखें, जैसा कि श्रीकृष्ण ने कहा है:
“विद्याविनयसम्पन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनि।
शुनि चैव श्वपाके च पण्डिताः समदर्शिनः॥”
अर्थात: जो लोग ज्ञान और विनम्रता से सम्पन्न हैं, वे एक विद्वान ब्राह्मण, एक गाय, एक हाथी, एक कुत्ते और एक चाण्डाल (कुत्ते का मांस खाने वाला) को समान दृष्टि से देखते हैं।
इस प्रकार, दिव्य ज्ञान हमें सिखाता है कि सच्चा ज्ञान वह है जो हमें सबमें समानता देखने की शक्ति देता है। यह हमें एक ऐसी दुनिया की ओर ले जाता है जहां प्रेम, करुणा और एकता का राज्य हो। आइए, हम सब मिलकर इस दिव्य दृष्टि को अपनाएं और एक बेहतर कल की ओर कदम बढ़ाये ।
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