Bhagwat Geeta

भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 10

वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः ।
बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः ॥10॥


वीत-से मुक्त; राग-आसक्ति; भय-भय; क्रोधा:-क्रोध; मत्-मया-मुझमें पूर्णतया तल्लीन; माम्-मुझमें; उपाश्रिताः-पूर्णतया आश्रित; बहवः-अनेक; ज्ञान-ज्ञान; तपसा-ज्ञान में तपकर; पूताः-शुद्ध होना; मत्-भवम् मेरा दिव्य प्रेम; आगताः–प्राप्त करता है।

Hindi translation:
आसक्ति, भय और क्रोध से मुक्त होकर पूर्ण रूप से मुझमें तल्लीन होकर मेरी शरण ग्रहण कर भूतकाल में अनेक लोग मेरे ज्ञान से पवित्र हो चुके हैं और इस प्रकार से उन्होंने मेरा दिव्य प्रेम प्राप्त किया है।

भक्ति योग: आत्मशुद्धि का मार्ग

परिचय

भारतीय दर्शन और आध्यात्मिक परंपरा में भक्ति योग का एक विशेष स्थान है। यह वह मार्ग है जो हमें ईश्वर के साथ एकाकार होने की ओर ले जाता है। इस ब्लॉग पोस्ट में हम भक्ति योग के माध्यम से आत्मशुद्धि के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करेंगे।

भक्ति योग का महत्व

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि जो उनके जन्म और लीलाओं की दिव्य प्रकृति को समझते हैं, वे उन्हें प्राप्त कर लेते हैं। यह भक्ति योग का सार है – ईश्वर के प्रति पूर्ण समर्पण और प्रेम।

श्रद्धा और भक्ति का महत्व

श्रद्धा और भक्ति के माध्यम से, अनेक लोगों ने अपने अंतःकरण को शुद्ध किया है और परम लक्ष्य को प्राप्त किया है। यह एक ऐसा मार्ग है जो सभी के लिए खुला है, चाहे वे किसी भी पृष्ठभूमि से हों।

श्री अरविंदो ने कहा है, “तुम्हें अपने हृदय रूपी मंदिर को शुद्ध रखना चाहिए यदि तुम इसमें किसी मूर्ति को रखना चाहते हो।”

मन की शुद्धि का मार्ग

आसक्ति, भय और क्रोध का त्याग

मन को शुद्ध करने के लिए, हमें आसक्ति, भय और क्रोध को त्यागना होगा। ये तीनों मानसिक विकार एक दूसरे से जुड़े हुए हैं:

  1. आसक्ति: सांसारिक वस्तुओं में लगाव
  2. भय: आसक्ति के विषयों के खोने का डर
  3. क्रोध: आसक्ति के विषयों की प्राप्ति में बाधा आने पर उत्पन्न होता है

प्रकृति के तीन गुण

संसार तीन प्राकृतिक गुणों से निर्मित है:

गुणविशेषताएँ
सत्वशुद्धता, ज्ञान, प्रकाश
रजसक्रिया, उत्तेजना, आसक्ति
तमसअज्ञान, आलस्य, निद्रा

जब हम किसी सांसारिक विषय में अनुरक्त होते हैं, तो हमारा मन इन गुणों से प्रभावित होता है। इसके विपरीत, जब हम अपने मन को भगवान में केंद्रित करते हैं, जो इन गुणों से परे हैं, तो हमारा मन शुद्ध होता है।

भक्ति द्वारा मन की शुद्धि

भगवान में अनुरक्ति

मन को शुद्ध करने का सबसे प्रभावी उपाय है इसे संसार से विरक्त करना और परम भगवान में अनुरक्त करना। यह प्रक्रिया मन को काम-वासना, क्रोध, लोभ, शत्रुता और मोह के विकारों से मुक्त करती है।

रामायण में कहा गया है:

प्रेम भगति जल बिनु रघुराई।
अभिअन्तर मल कबहुँन जाई ।।

अर्थात्, “भगवान की भक्ति बिना, मन का मैल नहीं धुल सकता”

महान विद्वानों के विचार

  1. शंकराचार्य: ज्ञान योग के महान प्रवर्तक शंकराचार्य ने कहा है: “शुद्धयति हि नान्तरात्मा कृष्णपदाम्भोज भक्तिमृते।” (प्रबोध सुधाकर) अर्थात्, “भगवान श्रीकृष्ण के चरण कमलों की भक्ति में लीन हुए बिना मन शुद्ध नहीं होगा”
  2. बाइबिल: बाइबिल में भी इसी भाव को व्यक्त किया गया है: “शुद्ध हृदय वाले भाग्यशाली हैं जिसमें वह भगवान को देख सकते हैं।” (मैथ्यू 5.8)

भगवान की निष्पक्षता

कुछ लोग सोच सकते हैं कि भगवान कृष्ण केवल उन्हीं पर कृपा करते हैं जो अपने मन को उनमें लीन करते हैं। लेकिन यह सच नहीं है। भगवान सभी के प्रति समान हैं। वे किसी के साथ पक्षपात नहीं करते।

भगवान की कृपा का स्वरूप

भगवान की कृपा सूर्य के प्रकाश की तरह है – यह सभी पर समान रूप से पड़ती है। लेकिन जैसे कमल का फूल सूर्य के प्रकाश में खिलता है और कीचड़ सूखकर कठोर हो जाता है, वैसे ही भक्त भगवान की कृपा से आध्यात्मिक रूप से विकसित होते हैं, जबकि अहंकारी व्यक्ति उसी कृपा से और अधिक कठोर हो जाते हैं।

भक्ति योग का व्यावहारिक अभ्यास

1. नाम जप

भगवान के नाम का जप एक शक्तिशाली साधना है। यह मन को एकाग्र करने और भगवान से जुड़ने में मदद करता है।

2. कीर्तन

सामूहिक रूप से भजन गाना और भगवान की महिमा का गुणगान करना भक्ति का एक महत्वपूर्ण अंग है।

3. सेवा

निःस्वार्थ सेवा भक्ति का एक महत्वपूर्ण रूप है। यह हमें अहंकार से मुक्त करने में मदद करती है।

4. अध्ययन

पवित्र ग्रंथों का अध्ययन और चिंतन हमें आध्यात्मिक ज्ञान प्रदान करता है और भक्ति में गहराई लाता है।

5. समर्पण

अपने सभी कर्मों को भगवान को समर्पित करना भक्ति योग का सार है।

निष्कर्ष

भक्ति योग आत्मशुद्धि का एक शक्तिशाली मार्ग है। यह हमें संसार की आसक्तियों से मुक्त करता है और हमारे मन को शुद्ध करता है। भगवान की निस्वार्थ प्रेम और समर्पण के माध्यम से, हम अपने वास्तविक स्वरूप को पहचान सकते हैं और परम सत्य का अनुभव कर सकते हैं।

भक्ति योग का मार्ग सभी के लिए खुला है। यह किसी विशेष वर्ग, जाति या समुदाय तक सीमित नहीं है। जो भी श्रद्धा और प्रेम के साथ भगवान की ओर मुड़ता है, वह इस मार्ग पर चल सकता है।

अंत में, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि भक्ति योग एक जीवन शैली है, न कि कोई औपचारिक अनुष्ठान। यह हमारे दैनिक जीवन के हर पहलू को प्रभावित करता है, हमें अधिक करुणामय, शांत और आनंदित बनाता है। जैसे-जैसे हम इस मार्ग पर आगे बढ़ते हैं, हम पाते हैं कि हमारा जीवन अधिक सार्थक और संतुष्ट हो जाता है।

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