भगवद गीता: अध्याय 5, श्लोक 17

तबुद्धयस्तदात्मानस्तन्निष्ठास्तत्परायणाः ।
गच्छन्त्यपुनरावृत्तिं ज्ञाननिषूतकल्मषाः ॥17॥
तत्-बुद्धयः-वह जिनकी बुद्धि भगवान की ओर निर्देशित है; तत्-आत्मानः-वे जिनका अंत:करण केवल भगवान में तल्लीन होता है; तत्-निष्ठाः-वे जिनकी बुद्धि भगवान में दृढ़ विश्वास करती है; तत्-परायणाः-भगवान को अपना लक्ष्य और आश्रय बनाने का प्रयास करना; गच्छन्ति–जाते हैं; अपुन:-आवृत्तिम्-वापस नहीं आते; ज्ञान-ज्ञान द्वारा निर्धूत निवारण होना; कल्मषाः-पाप।
Hindi translation: वे जिनकी बुद्धि भगवान में स्थिर हो जाती है और जो भगवान में सच्ची श्रद्धा रखकर उन्हें परम लक्ष्य मानकर उनमें पूर्णतया तल्लीन हो जाते हैं, वे मनुष्य शीघ्र ऐसी अवस्था में पहुँच जाते हैं जहाँ से फिर कभी वापस नहीं आते और उनके सभी पाप ज्ञान के प्रकाश से मिट जाते हैं।
भक्ति और ज्ञान का महत्व: एक आध्यात्मिक यात्रा
अज्ञान से ज्ञान की ओर: मुक्ति का मार्ग
जीवन एक यात्रा है, जिसमें हम अज्ञान से ज्ञान की ओर बढ़ते हैं। यह यात्रा कभी-कभी कठिन हो सकती है, लेकिन यह हमारे आध्यात्मिक विकास के लिए आवश्यक है। इस लेख में, हम इस यात्रा के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करेंगे और समझेंगे कि कैसे भक्ति और ज्ञान हमें मुक्ति की ओर ले जाते हैं।
अज्ञानता का बंधन
अज्ञानता एक ऐसी स्थिति है जो हमें संसार के चक्र में फंसाए रखती है। यह हमें जीवन और मृत्यु के अंतहीन चक्र में घुमाती रहती है, जिससे हम दुख और कष्ट का अनुभव करते हैं। अज्ञानता के कारण:
- हम अपने वास्तविक स्वरूप को नहीं पहचान पाते
- हम भौतिक संसार के मोह में फंस जाते हैं
- हम अपने कर्मों के बंधन में बंध जाते हैं
- हम आत्मा और परमात्मा के संबंध को नहीं समझ पाते
ज्ञान का प्रकाश
जैसे-जैसे हम ज्ञान प्राप्त करते हैं, हमारी आंखें खुलने लगती हैं। ज्ञान एक ऐसा प्रकाश है जो अज्ञान के अंधकार को दूर करता है। यह हमें:
- अपने वास्तविक स्वरूप की पहचान कराता है
- भौतिक संसार के मोह से मुक्त करता है
- कर्मों के बंधन से छुटकारा दिलाता है
- आत्मा और परमात्मा के संबंध को समझने में मदद करता है
भक्ति का महत्व
भक्ति और ज्ञान का संगम
भक्ति और ज्ञान एक-दूसरे के पूरक हैं। जब ज्ञान भक्ति से युक्त होता है, तो वह और अधिक शक्तिशाली बन जाता है। भक्ति:
- ज्ञान को गहराई प्रदान करती है
- ज्ञान को व्यावहारिक रूप देती है
- ज्ञान को भावनात्मक आधार देती है
- ज्ञान को परमात्मा से जोड़ती है
भगवद्भक्ति के चार स्तंभ
भगवद्गीता में वर्णित चार महत्वपूर्ण शब्द हैं जो पूर्ण भगवद्भक्ति का मार्ग दिखाते हैं:
संस्कृत शब्द | अर्थ | महत्व |
---|---|---|
तद्बुद्धयः | बुद्धि को भगवान की ओर निर्दिष्ट करना | विचारों को केंद्रित करना |
तदात्मानः | मन और बुद्धि को पूर्णतया भगवान में तल्लीन करना | समर्पण |
तन्निष्ठाः | बुद्धि का भगवान में दृढ़ निश्चय होना | दृढ़ता |
तत्परायणाः | भगवान को परम लक्ष्य और आश्रय बनाना | लक्ष्य निर्धारण |
वास्तविक ज्ञान का लक्षण
वास्तविक ज्ञान वह है जो हमें भगवान के प्रेम की ओर ले जाए। यह ज्ञान:
- हमारे हृदय को शुद्ध करता है
- हमारी बुद्धि को प्रकाशित करता है
- हमें सेवा भाव से भर देता है
- हमें सर्वव्यापी ईश्वर के दर्शन कराता है
आध्यात्मिक यात्रा के चरण
1. जागृति
आध्यात्मिक यात्रा का पहला चरण जागृति है। इस चरण में:
- हम अपने वर्तमान स्थिति के प्रति सचेत होते हैं
- हमें यह एहसास होता है कि कुछ गहरा और अर्थपूर्ण है जिसकी खोज करनी है
- हम अपने जीवन के उद्देश्य पर प्रश्न उठाना शुरू करते हैं
2. खोज
जागृति के बाद खोज का चरण आता है। इस दौरान:
- हम विभिन्न आध्यात्मिक मार्गों और शिक्षाओं का अध्ययन करते हैं
- हम गुरु या आध्यात्मिक मार्गदर्शक की तलाश करते हैं
- हम अपने आंतरिक स्वयं की खोज शुरू करते हैं
3. अभ्यास
खोज के बाद अभ्यास का चरण आता है। इसमें शामिल है:
- नियमित ध्यान और प्रार्थना
- शास्त्रों का अध्ययन
- सेवा और परोपकार के कार्य
- अपने विचारों और कर्मों पर नियंत्रण
4. अनुभूति
अभ्यास के फलस्वरूप अनुभूति आती है। इस चरण में:
- हम आत्मा और परमात्मा के एकत्व का अनुभव करते हैं
- हमें सर्वव्यापी ईश्वर के दर्शन होते हैं
- हम अपने वास्तविक स्वरूप को पहचानते हैं
- हम माया के बंधन से मुक्त हो जाते हैं
निष्कर्ष: ज्ञान और भक्ति का समन्वय
अंत में, हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि ज्ञान और भक्ति एक-दूसरे के पूरक हैं। जैसा कि हमने देखा:
- अज्ञान हमें बंधन में रखता है, जबकि ज्ञान हमें मुक्ति की ओर ले जाता है।
- भक्ति ज्ञान को गहराई और भावनात्मक आधार प्रदान करती है।
- वास्तविक ज्ञान हमें भगवान के प्रेम की ओर ले जाता है।
- आध्यात्मिक यात्रा जागृति से शुरू होकर अनुभूति तक पहुंचती है।
इस प्रकार, ज्ञान और भक्ति के समन्वय से ही हम अपने जीवन के उच्चतम लक्ष्य – मोक्ष या आत्मसाक्षात्कार को प्राप्त कर सकते हैं। यह एक ऐसी यात्रा है जो हमें न केवल स्वयं को समझने में मदद करती है, बल्कि संपूर्ण सृष्टि के साथ हमारे संबंध को भी प्रकट करती है।
याद रखें, यह यात्रा एक सतत प्रक्रिया है। हर दिन, हर क्षण हमें अपने विचारों, कर्मों और भावनाओं पर ध्यान देना चाहिए। जैसे-जैसे हम इस मार्ग पर आगे बढ़ते हैं, हम पाते हैं कि जीवन अधिक अर्थपूर्ण, शांतिपूर्ण और आनंदमय बन जाता है।
अंत में, भगवद्गीता का यह श्लोक हमें याद दिलाता है:
“तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।
उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः॥” (4.34)
अर्थात्: उस ज्ञान को तू तत्वदर्शी ज्ञानियों के पास जाकर समझ। उनको दण्डवत् प्रणाम करके, उनकी सेवा करके और कपट छोड़कर सरलतापूर्वक प्रश्न पूछकर समझ। वे ज्ञानी महात्मा तुझे उस ज्ञान का उपदेश देंगे।
इस प्रकार, ज्ञान और भक्ति के मार्ग पर चलते हुए, हम अपने जीवन को साकार करते हैं और अपने चारों ओर के संसार को भी प्रकाशित करते हैं।
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