Bhagwat Geeta

भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 14

प्रशान्तात्मा विगतभीब्रह्मचारिव्रते स्थितः।
मनः संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः ॥14॥


प्रशान्त-शान्त; आत्मा-मन; विगत-भी:-भय रहित; ब्रह्मचारि-व्रते-ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा; स्थित:-स्थित; मन:-मन को; संयम्य-नियंत्रित करना; मत्-चित्तः-मन को मुझ में केन्द्रित करना; युक्तः-तल्लीन; आसीत-बैठना; मत्-परः-मुझे परम लक्ष्य मानना।

Hindi translation:
इस प्रकार शांत, भयरहित और अविचलित मन से ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा में निष्ठ होकर उस प्रबुद्ध योगी को मन से मेरा चिन्तन करना और केवल मुझे ही अपना परम लक्ष्य बनाना चाहिए।

ब्रह्मचर्य का महत्व: आध्यात्मिक साधना में एक अनिवार्य अंग

प्रस्तावना

आध्यात्मिक साधना के मार्ग पर चलने वाले साधकों के लिए ब्रह्मचर्य एक महत्वपूर्ण और अनिवार्य अंग है। भारतीय दर्शन और संस्कृति में ब्रह्मचर्य को न केवल शारीरिक, बल्कि मानसिक और आध्यात्मिक विकास का एक प्रमुख साधन माना गया है। इस लेख में हम ब्रह्मचर्य के विभिन्न पहलुओं, इसके महत्व, और इसके पालन से होने वाले लाभों पर विस्तार से चर्चा करेंगे।

ब्रह्मचर्य की परिभाषा और महत्व

ब्रह्मचर्य क्या है?

ब्रह्मचर्य शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है – ‘ब्रह्म’ जो परम सत्य या परमात्मा को दर्शाता है, और ‘चर्य’ जिसका अर्थ है आचरण या व्यवहार। इस प्रकार, ब्रह्मचर्य का शाब्दिक अर्थ है परमात्मा में निवास करना या परमात्मा के मार्ग पर चलना।

श्रीकृष्ण का दृष्टिकोण

श्रीकृष्ण, जो हिंदू धर्म में भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं, ब्रह्मचर्य के महत्व पर बल देते हैं। वे कहते हैं कि आध्यात्मिक साधना में सफलता प्राप्त करने के लिए ब्रह्मचर्य का पालन अत्यंत आवश्यक है। श्रीकृष्ण के अनुसार, ब्रह्मचर्य केवल शारीरिक संयम तक सीमित नहीं है, बल्कि यह मन, वाणी और कर्म – तीनों स्तरों पर पालन किया जाना चाहिए।

ब्रह्मचर्य का वैज्ञानिक दृष्टिकोण

प्राकृतिक जगत में ब्रह्मचर्य

प्रकृति में भी हम ब्रह्मचर्य के महत्व को देख सकते हैं। अधिकांश पशु जातियों में प्रजनन की प्रक्रिया केवल निश्चित मौसमों में होती है। यह दर्शाता है कि प्रकृति ने स्वयं ही जीवों में यौन क्रिया पर एक प्राकृतिक नियंत्रण स्थापित किया है।

मनुष्य और ब्रह्मचर्य

मनुष्य, जो अपनी बुद्धि के कारण अन्य प्राणियों से श्रेष्ठ माना जाता है, के पास यौन क्रिया में लिप्त होने की स्वतंत्रता अधिक है। यह स्वतंत्रता कभी-कभी प्रजनन की प्राकृतिक प्रक्रिया को केवल आनंद का साधन बना देती है, जो कि ब्रह्मचर्य के सिद्धांतों के विपरीत है।

वैदिक ग्रंथों में ब्रह्मचर्य

महर्षि पतंजलि का योगसूत्र

महर्षि पतंजलि, जिन्हें योग दर्शन का प्रणेता माना जाता है, ने अपने योगसूत्र में ब्रह्मचर्य के महत्व पर प्रकाश डाला है। उन्होंने कहा है:

“ब्रह्मचर्यप्रतिष्ठायां वीर्यलाभः” (योगसूत्र-2.38)

इसका अर्थ है कि ब्रह्मचर्य का पालन करने से व्यक्ति को असाधारण शक्ति और ओज की प्राप्ति होती है।

आयुर्वेद और ब्रह्मचर्य

धनवंतरि का दृष्टिकोण

भारतीय चिकित्सा पद्धति आयुर्वेद में भी ब्रह्मचर्य को स्वास्थ्य के लिए अत्यंत लाभदायक माना गया है। आयुर्वेद के प्रमुख आचार्य धनवंतरि ने अपने एक शिष्य के प्रश्न के उत्तर में कहा:

“वीर्य के शुक्राणु की शक्ति वास्तव में आत्मा है। स्वास्थ्य का रहस्य प्राणाधार शक्ति के संरक्षण में निहित है। जो इस महत्वपूर्ण और अनमोल शक्ति को व्यर्थ करता है, उसका शारीरिक, मानसिक, नैतिक और आध्यात्मिक विकास नहीं हो सकता।”

वीर्य और रक्त का संबंध

आयुर्वेद के अनुसार, रक्त और वीर्य के बीच एक गहरा संबंध है:

रक्त की मात्रावीर्य की मात्रा
40 बूंद1 बूंद

इस अनुपात से यह स्पष्ट होता है कि वीर्य का निर्माण एक जटिल और ऊर्जा-खपत वाली प्रक्रिया है। इसलिए, वीर्य का संरक्षण स्वास्थ्य के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।

ब्रह्मचर्य के लाभ

शारीरिक लाभ

  1. शारीरिक ऊर्जा में वृद्धि
  2. रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार
  3. दीर्घायु
  4. त्वचा पर प्राकृतिक चमक

मानसिक लाभ

  1. स्मरण शक्ति में वृद्धि
  2. एकाग्रता में सुधार
  3. मानसिक शांति
  4. तनाव में कमी

आध्यात्मिक लाभ

  1. आत्मज्ञान की प्राप्ति में सहायक
  2. कुंडलिनी जागरण में सहायक
  3. ध्यान की गहराई में वृद्धि
  4. आध्यात्मिक अनुभूतियों की तीव्रता में वृद्धि

ब्रह्मचर्य का व्यापक अर्थ

ब्रह्मचर्य केवल शारीरिक संयम तक सीमित नहीं है। अग्नि पुराण में कामुकता से संबंधित आठ प्रकार की गतिविधियों का वर्णन किया गया है, जिन्हें नियंत्रित करना ब्रह्मचर्य का हिस्सा है:

  1. इसके बारे में सोचना
  2. इसके बारे में चर्चा करना
  3. इस विषय पर उपहास करना
  4. इसको देखना
  5. इसकी रुचि उत्पन्न करना
  6. किसी को ऐसा करने के लिए आकर्षित करना
  7. किसी को इसमें रुचि लेने के लिए उत्तेजित करना
  8. इसमें लिप्त रहना

इस प्रकार, ब्रह्मचर्य का पालन करने के लिए न केवल शारीरिक संभोग से दूर रहना आवश्यक है, बल्कि हस्तमैथुन, समलैंगिक गतिविधियों और अन्य प्रकार के यौनाचार से भी दूर रहना चाहिए।

ब्रह्मचर्य का पालन: कुछ व्यावहारिक सुझाव

  1. संयमित आहार: सात्विक और पौष्टिक भोजन का सेवन करें। तामसिक और राजसिक आहार से बचें।
  2. नियमित व्यायाम: शारीरिक व्यायाम और योगासन ऊर्जा को सकारात्मक दिशा में मोड़ने में सहायक होते हैं।
  3. ध्यान और प्राणायाम: नियमित ध्यान और प्राणायाम मन को शांत और नियंत्रित रखने में मदद करते हैं।
  4. सत्संग: अच्छे लोगों की संगति में रहें और आध्यात्मिक विषयों पर चर्चा करें।
  5. सकारात्मक विचार: मन को सदैव सकारात्मक और रचनात्मक विचारों से भरा रखें।
  6. समय का सदुपयोग: खाली समय में रचनात्मक गतिविधियों में संलग्न रहें।
  7. आत्म-चिंतन: प्रतिदिन कुछ समय अपने विचारों और कर्मों पर चिंतन करें।

निष्कर्ष

ब्रह्मचर्य आध्यात्मिक साधना का एक अनिवार्य अंग है। यह न केवल शारीरिक स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है, बल्कि मानसिक शांति और आध्यात्मिक उन्नति के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। श्रीकृष्ण के अनुसार, साधना का लक्ष्य केवल भगवान का ध्यान करना है, और ब्रह्मचर्य इस लक्ष्य की प्राप्ति में सहायक है।

हालांकि, यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ब्रह्मचर्य का पालन एक कठिन साधना है और इसके लिए दृढ़ संकल्प, धैर्य और लगातार प्रयास की आवश्यकता होती है। प्रारंभ में कठिनाइयाँ आ सकती हैं, लेकिन धीरे-धीरे अभ्यास से यह एक स्वाभाविक जीवन शैली बन जाती है।

अंत में, यह समझना महत्वपूर्ण है कि ब्रह्मचर्य का उद्देश्य जीवन से आनंद को दूर करना नहीं है, बल्कि उच्च स्तर के आनंद और आत्मिक संतुष्टि की प्राप्ति है। यह व्यक्ति को अपनी अंतर्निहित शक्तियों को पहचानने और उनका सदुपयोग करने में सक्षम बनाता है, जिससे वह न केवल अपने जीवन को बेहतर बनाता है, बल्कि समाज और विश्व के कल्याण में भी योगदान देता है।

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