भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 15
युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी नियतमानसः ।
शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति ॥15॥
युज्जन्–मन को भगवान में तल्लीन करना; एवम्-इस प्रकार से; सदा-निरन्तर; आत्मानम्-मन; योगी-योगी; नियत-मानसः-संयमित मन वाला; शान्तिम्-शान्ति; निर्वाण-भौतिक बन्धनों से मुक्ति; परमाम्-परमानंद; मत्-संस्थाम्-मुझमें स्थित होना; अधिगच्छति-प्राप्त करना।
Hindi translation: इस प्रकार मन को संयमित रखने वाला योगी मन को निरन्तर मुझमें तल्लीन कर निर्वाण प्राप्त करता है और मुझे में स्थित होकर परम शांति पाता है।
ध्यान की विभिन्न पद्धतियाँ और भगवान पर केंद्रित साधना का महत्व
प्रस्तावना
आध्यात्मिक जगत में ध्यान एक महत्वपूर्ण साधना है। यह मन को शांत करने, एकाग्रता बढ़ाने और आत्मज्ञान प्राप्त करने का एक प्रभावी माध्यम है। संसार में ध्यान की अनेक पद्धतियाँ प्रचलित हैं, जो विभिन्न धार्मिक और दार्शनिक परंपराओं से उत्पन्न हुई हैं। इस लेख में हम इन विभिन्न ध्यान पद्धतियों का संक्षिप्त परिचय देंगे और फिर श्रीकृष्ण के उपदेशों के आधार पर यह समझने का प्रयास करेंगे कि सबसे प्रभावी ध्यान पद्धति क्या हो सकती है।
विभिन्न ध्यान पद्धतियाँ
1. जैन ध्यान पद्धति
जैन धर्म में ध्यान को आत्मशुद्धि और मोक्ष प्राप्ति का एक महत्वपूर्ण साधन माना जाता है। जैन ध्यान की मुख्य विशेषताएँ हैं:
- आत्म-निरीक्षण
- कायोत्सर्ग (शरीर की चेतना से मुक्ति)
- प्रेक्षा ध्यान (गहन अवलोकन)
2. बौद्ध ध्यान पद्धति
बौद्ध धर्म में ध्यान को ‘भावना’ कहा जाता है। इसके दो मुख्य प्रकार हैं:
- समथ भावना (शांति ध्यान)
- विपस्सना भावना (अंतर्दृष्टि ध्यान)
बौद्ध ध्यान का मुख्य उद्देश्य दुःख से मुक्ति और निर्वाण की प्राप्ति है।
3. तांत्रिक ध्यान पद्धति
तंत्र में ध्यान को शक्ति के जागरण और कुंडलिनी के उत्थान से जोड़कर देखा जाता है। इसमें शामिल हैं:
- चक्र ध्यान
- मंत्र जप
- यंत्र ध्यान
4. ताओवादी ध्यान पद्धति
चीन की इस प्राचीन परंपरा में ध्यान का उद्देश्य प्रकृति के साथ सामंजस्य स्थापित करना है। इसमें शामिल हैं:
- ची गोंग
- ताई ची
- आंतरिक एल्केमी ध्यान
5. वैदिक ध्यान पद्धति
वैदिक परंपरा में ध्यान को ब्रह्म के साथ एकात्मता प्राप्त करने का साधन माना जाता है। इसमें शामिल हैं:
- मंत्र ध्यान
- योग ध्यान
- ब्रह्म ध्यान
श्रीकृष्ण का दृष्टिकोण: भगवान-केंद्रित साधना
श्रीकृष्ण, जो भगवद्गीता में अर्जुन को उपदेश देते हैं, ध्यान के विषय में एक सरल किंतु गहन दृष्टिकोण प्रस्तुत करते हैं। उनके अनुसार:
साधना का लक्ष्य
श्रीकृष्ण कहते हैं कि साधना का लक्ष्य स्वयं भगवान और केवल भगवान होना चाहिए। यह दृष्टिकोण साधना को एक स्पष्ट दिशा प्रदान करता है।
मन की शुद्धता का महत्व
साधना का उद्देश्य केवल एकाग्रता बढ़ाना नहीं, बल्कि मन को शुद्ध करना भी है। श्रीकृष्ण के अनुसार, मन की शुद्धता तभी संभव है जब हम इसे सभी शुद्ध तत्त्वों पर स्थिर करें, जो कि स्वयं भगवान हैं।
गुणातीत अवस्था
भगवद्गीता के 14वें अध्याय के 26वें श्लोक में वर्णित है कि भगवान प्रकृति के तीनों गुणों (सत्व, रज, तम) से परे हैं। जब कोई व्यक्ति अपने मन को भगवान में स्थिर करता है, तब वह भी इन गुणों से ऊपर उठकर गुणातीत हो जाता है।
भगवान-केंद्रित साधना के विभिन्न रूप
श्रीकृष्ण के उपदेशों के आधार पर, हम भगवान-केंद्रित साधना के कई रूपों को अपना सकते हैं:
1. नाम स्मरण
भगवान के नाम का जप या स्मरण एक सरल और प्रभावी साधना है। यह कहीं भी और किसी भी समय किया जा सकता है।
ब्रह्म राम तें नामु बड़ बड़दायक बड़दानि।
“आत्मा के लाभ के प्रयोजनार्थ भगवान का नाम स्वयं भगवान से बड़ा है।” – रामचरितमानस
2. रूपध्यान साधना
भगवान के रूप का ध्यान मन को स्वाभाविक रूप से आकर्षित करता है। यह साधना सरल और प्रभावी होती है।
3. गुण चिंतन
भगवान के गुणों का चिंतन मन को और अधिक उत्साहित करता है। इसमें शामिल हो सकते हैं:
- भगवान का सौंदर्य
- उनका दिव्य ज्ञान
- उनका प्रेम और करुणा
- उनकी कृपा
4. मानसी सेवा
मन से भगवान की सेवा करना ‘मानसी सेवा’ कहलाता है। इसमें शामिल हो सकते हैं:
- भगवान को भोग लगाना
- उनकी सेवा करना
- उनका गुणगान करना
- उन्हें स्नान कराना
- उनके लिए भोजन पकाना
5. लीला स्मरण
भगवान की लीलाओं का स्मरण और चिंतन भी एक प्रभावी साधना है।
भगवान-केंद्रित साधना के लाभ
श्रीकृष्ण के अनुसार, भगवान-केंद्रित साधना के निम्नलिखित मुख्य लाभ हैं:
- माया के बंधनों से मुक्ति: यह साधना साधक को संसार के मोह-माया से मुक्त करती है।
- भगवद्प्राप्ति की अनुभूति: साधक को भगवान की उपस्थिति का अनुभव होता है।
- चिरस्थायी परम आनंद: यह साधना साधक को अंतिम और स्थायी आनंद प्रदान करती है।
विभिन्न साधना पद्धतियों की तुलना
निम्नलिखित तालिका विभिन्न साधना पद्धतियों और भगवान-केंद्रित साधना की तुलना प्रस्तुत करती है:
साधना पद्धति | मुख्य लक्ष्य | तकनीक | लाभ |
---|---|---|---|
जैन ध्यान | आत्मशुद्धि, मोक्ष प्राप्ति | आत्म-निरीक्षण, कायोत्सर्ग | मन की शांति, आत्मज्ञान |
बौद्ध ध्यान | दुःख से मुक्ति, निर्वाण | समथ भावना, विपस्सना | मानसिक स्थिरता, अंतर्दृष्टि |
तांत्रिक ध्यान | शक्ति जागरण, कुंडलिनी उत्थान | चक्र ध्यान, मंत्र जप | ऊर्जा वृद्धि, आध्यात्मिक अनुभूतियाँ |
ताओवादी ध्यान | प्रकृति के साथ सामंजस्य | ची गोंग, ताई ची | शारीरिक-मानसिक संतुलन |
वैदिक ध्यान | ब्रह्म के साथ एकात्मता | मंत्र ध्यान, योग | आत्मसाक्षात्कार |
भगवान-केंद्रित साधना | भगवद्प्राप्ति | नाम स्मरण, रूपध्यान, मानसी सेवा | माया से मुक्ति, परम आनंद |
निष्कर्ष
संसार में ध्यान की अनेक पद्धतियाँ प्रचलित हैं, और प्रत्येक का अपना महत्व और लाभ है। हालाँकि, श्रीकृष्ण के उपदेशों के अनुसार, सबसे प्रभावी साधना वह है जो सीधे भगवान पर केंद्रित हो। यह साधना न केवल मन को एकाग्र करती है, बल्कि इसे शुद्ध भी करती है।
भगवान-केंद्रित साधना के विभिन्न रूप – जैसे नाम स्मरण, रूपध्यान, गुण चिंतन, मानसी सेवा, और लीला स्मरण – साधक को भगवान के साथ गहरा संबंध स्थापित करने में मदद करते हैं। यह साधना साधक को माया के बंधनों से मुक्त करती है, भगवद्प्राप्ति की अनुभूति प्रदान करती है, और उसे चिरस्थायी परम आनंद की प्राप्ति कराती है।
अंत में, यह समझना महत्वपूर्ण है कि साधना एक व्यक्तिगत यात्रा है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी रुचि, स्वभाव और परिस्थितियों के अनुसार अपनी साधना पद्धति चुननी चाहिए। फिर भी, श्रीकृष्ण के उपदेशों को ध्यान में रखते हुए, भगवान को साधना के केंद्र में रखना सबसे प्रभावी और फलदायी हो सकता है।
साधना में सफलता के लिए निरंतर अभ्यास, धैर्य और समर्पण की आवश्यकता होती है। जैसे-जैसे साधक अपनी साधना में आगे बढ़ता है, वह अपने अंदर और बाहर भगवान की उपस्थिति का अनुभव करना शुरू कर देता है, जो उसे जीवन के हर पहलू में शांति, आनंद और संतुष्टि प्रदान करती है।
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