Bhagwat Geeta

भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 7

जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः।
शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः ॥7॥


जित-आत्मन:-जिसने मन पर विजय प्राप्त कर ली हो। प्रशान्तस्य–शान्ति; परम-आत्मा-परमात्मा; समाहितः-दृढ़ संकल्प से; शीत-सर्दी; उष्ण-गर्मी में; सुख-सुख, दुःखेषु और दुख में; तथा भी; मान-सम्मान; अपमानयोः-और अपमान।
Hindi translation: वे योगी जिन्होंने मन पर विजय पा ली है वे शीत-ताप, सुख-दुख और मान-अपमान के द्वंद्वों से ऊपर उठ जाते हैं। ऐसे योगी शान्त रहते हैं और भगवान की भक्ति के प्रति उनकी श्रद्धा अटल होती है।

योग और मन की शक्ति: श्रीकृष्ण के उपदेश से सीख

प्रस्तावना

भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने मानव मन की प्रकृति और उसके नियंत्रण के महत्व पर गहन ज्ञान प्रदान किया है। आज हम इस ज्ञान को आधुनिक संदर्भ में समझने का प्रयास करेंगे और देखेंगे कि कैसे यह हमारे दैनिक जीवन में लागू हो सकता है।

मन की प्रकृति: इंद्रियों का खेल

श्रीकृष्ण ने गीता के दूसरे अध्याय के चौदहवें श्लोक में बताया है कि मन इंद्रियों और उनके विषयों के संपर्क से सुख-दुख, गर्मी-सर्दी जैसे अनुभवों को महसूस करता है। यह एक महत्वपूर्ण बिंदु है जो हमें मन की कार्यप्रणाली को समझने में मदद करता है।

इंद्रियों का प्रभाव

हमारी इंद्रियाँ बाहरी दुनिया से जानकारी एकत्र करती हैं और उसे मन तक पहुंचाती हैं। उदाहरण के लिए:

  1. आँखें दृश्यों को देखती हैं
  2. कान ध्वनियों को सुनते हैं
  3. नाक गंधों को सूंघती है
  4. जीभ स्वादों का अनुभव करती है
  5. त्वचा स्पर्श को महसूस करती है

इन इंद्रियों से प्राप्त जानकारी के आधार पर मन प्रतिक्रिया करता है। यह प्रतिक्रिया सुख या दुख के रूप में हो सकती है।

मन का नियंत्रण: योग का मार्ग

श्रीकृष्ण कहते हैं कि जब तक मन पर नियंत्रण नहीं होता, तब तक मनुष्य इंद्रिय सुखों के पीछे भागता रहता है। यह एक चक्र बन जाता है जिससे बाहर निकलना मुश्किल हो जाता है।

योगी का दृष्टिकोण

एक सिद्ध योगी इन क्षणिक अनुभूतियों को केवल शारीरिक प्रतिक्रियाओं के रूप में देखता है। वह इनसे प्रभावित नहीं होता। यह दृष्टिकोण हमें सिखाता है कि:

  1. हमारे अनुभव हमेशा स्थायी नहीं होते
  2. हम अपने अनुभवों से अलग हैं
  3. हम अपनी प्रतिक्रियाओं को चुन सकते हैं

मन के दो क्षेत्र

श्रीकृष्ण ने मन के दो क्षेत्रों का उल्लेख किया है:

  1. माया का क्षेत्र
  2. भगवान का क्षेत्र

यह विभाजन हमें समझाता है कि मन या तो भौतिक दुनिया में उलझा रह सकता है या आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ सकता है।

माया का क्षेत्र

माया का क्षेत्र वह है जहाँ मन भौतिक सुखों और दुःखों में उलझा रहता है। यहाँ मन:

  • क्षणिक सुखों के पीछे भागता है
  • दुःख से बचने की कोशिश करता है
  • द्वंद्वों में फंसा रहता है

भगवान का क्षेत्र

भगवान का क्षेत्र वह है जहाँ मन आध्यात्मिक उन्नति की ओर बढ़ता है। इस क्षेत्र में मन:

  • शांति और संतुलन में रहता है
  • द्वंद्वों से ऊपर उठता है
  • आत्मज्ञान की ओर बढ़ता है

योग का अभ्यास: मन को नियंत्रित करने की कला

श्रीकृष्ण कहते हैं कि एक सिद्ध योगी का मन समाधि में स्थिर हो जाता है। यह एक ऐसी अवस्था है जहाँ मन पूरी तरह से शांत और केंद्रित होता है।

योग के लाभ

योग के नियमित अभ्यास से निम्नलिखित लाभ होते हैं:

  1. मानसिक शांति
  2. बेहतर एकाग्रता
  3. तनाव में कमी
  4. आत्मजागरूकता में वृद्धि
  5. भावनात्मक संतुलन

आधुनिक जीवन में योग का महत्व

आज के तनावपूर्ण जीवन में, श्रीकृष्ण के उपदेश और योग की शिक्षाएँ अत्यंत प्रासंगिक हैं। यहाँ कुछ तरीके हैं जिनसे हम इन सिद्धांतों को अपने दैनिक जीवन में लागू कर सकते हैं:

  1. नियमित ध्यान अभ्यास
  2. प्राणायाम या श्वास व्यायाम
  3. मन की जागरूकता बढ़ाना
  4. सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित करना
  5. सेवा और करुणा का अभ्यास

योग और मानसिक स्वास्थ्य

आधुनिक विज्ञान भी योग के मानसिक स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभावों को मान्यता देता है। कई अध्ययनों ने दिखाया है कि नियमित योगाभ्यास से:

  • अवसाद के लक्षणों में कमी आती है
  • चिंता कम होती है
  • नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है
  • आत्मसम्मान बढ़ता है

योग की विभिन्न शैलियाँ

विभिन्न प्रकार के योग हैं जो मन को नियंत्रित करने में मदद कर सकते हैं:

योग शैलीमुख्य फोकसलाभ
हठ योगशारीरिक मुद्राएँ और श्वासशारीरिक लचीलापन और ताकत
राज योगध्यान और आत्म-अनुशासनमानसिक शांति और आत्मज्ञान
कर्म योगसेवा और निःस्वार्थ कर्मआत्मलेसता और करुणा
भक्ति योगभगवान के प्रति प्रेम और समर्पणभावनात्मक शुद्धि और आनंद
ज्ञान योगआत्म-अध्ययन और चिंतनबौद्धिक समझ और विवेक

निष्कर्ष

श्रीकृष्ण के उपदेश हमें सिखाते हैं कि मन एक शक्तिशाली उपकरण है, लेकिन इसे नियंत्रित करना भी आवश्यक है। योग के माध्यम से, हम अपने मन को शांत और केंद्रित कर सकते हैं, जो हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने में मदद करता है।

आज के तनावपूर्ण समय में, यह ज्ञान पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है। नियमित योगाभ्यास और आत्म-चिंतन से, हम न केवल अपने मानसिक स्वास्थ्य में सुधार कर सकते हैं, बल्कि एक अधिक संतुलित और आनंदमय जीवन भी जी सकते हैं।

याद रखें, योग केवल शारीरिक व्यायाम नहीं है; यह जीवन जीने का एक तरीका है। श्रीकृष्ण के शब्दों को आत्मसात करके और उन्हें अपने दैनिक जीवन में लागू करके, हम वास्तव में अपने मन के स्वामी बन सकते हैं और एक अधिक पूर्ण जीवन की ओर बढ़ सकते हैं।

अंत में, हम कह सकते हैं कि श्रीकृष्ण के उपदेश न केवल एक धार्मिक शिक्षा हैं, बल्कि एक व्यावहारिक जीवन दर्शन भी हैं जो आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने हजारों साल पहले थे। उनके ज्ञान को अपनाकर, हम अपने जीवन में सच्ची शांति और संतोष पा सकते हैं।

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