Bhagwat Geeta

  • भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 36

    असंयतात्मना योगो दुष्प्राप इति मे मतिः ।वश्यात्मना तु यतता शक्योऽवाप्तुमुपायतः ॥36॥ असंयत-आत्मना-निरंकुश मनवाला; योग:-योग; दुष्प्रापः-प्राप्त करना कठिन; इति–इस प्रकार; मे-मेरा;…

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  • भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 35

    श्रीभगवानुवाच।असंशयं महाबाहो मनो दुर्निग्रहं चलम् ।अभ्यासेन तु कौन्तेय वैराग्येण च गृह्यते ॥35॥ श्रीभगवान् उवाच-भगवान ने कहा; असंशयम् निस्सन्देह; महाबाहो-बलिष्ठ भुजाओं…

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  • भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 34

    चञ्चलं हि मनः कृष्ण प्रमाथि बलव ढम् ।तस्याहं निग्रहं मन्ये वायोरिव सुदुष्करम् ॥34॥चञ्चलम्-बैचेन; हि-निश्चय ही; मनः-मन; कृष्ण-श्रीकृष्ण प्रमाथि–अशान्त; बल-वत्-बलवान्; दृढम्…

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  • भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 33

    अर्जन उवाच।योऽयं योगस्त्वया प्रोक्तः साम्येन मधुसूदन।एतस्याहं न पश्यामि चञ्चलत्वात्स्थितिं स्थिराम् ॥33॥ अर्जुन उवाच-अर्जुन ने कहा; य:-जिस; अयम्-यह; योग:-योग की पद्धति;…

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  • भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 32

    आत्मौपम्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन ।सुखं वा यदि वा दुःखं स योगी परमो मतः ॥32॥आत्म-औपम्येन-अपने समान; सर्वत्र सभी जगह; समम्-समान…

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  • भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 31

    सर्वभूतस्थितं यो मां भजत्येकत्वमास्थितः।सर्वथा वर्तमानोऽपि स योगी मयि वर्तते ॥31॥सर्व-भूत-सभी जीवों में स्थित; यः-जो; माम्-मुझको; भजति–आराधना करता है; एकत्वम्-एकीकृत; अस्थितः-विकसित;…

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  • भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 30

    यो मां पश्यति सर्वत्र सर्वं च मयि पश्यति ।तस्याहं न प्रणश्यामि स च मे न प्रणश्यति ॥30॥यः-जो; माम्-मुझे; पश्यति-देखता है;…

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  • भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 29

    सर्वभूतस्थमात्मानं सर्वभूतानि चात्मनि ।ईक्षते योगयुक्तात्मा सर्वत्र समदर्शनः ॥29॥सर्व-भूत-स्थम्-सभी प्राणियों में स्थित; आत्मानम्-परमात्मा; सर्व-सभी; भूतानि-जीवों को; च–भी; आत्मनि–भगवान में; ईक्षते-देखता है;…

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  • भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 28

    युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी विगतकल्मषः ।सुखेन ब्रह्मसंस्पर्शमत्यन्तं सुखमश्नुते ॥28॥ युञ्जन्–स्वयं को भगवान में एकीकृत करना; एवम्-इस प्रकार; सदा-सदैव; आत्मानम्-आत्मा; योगी-योगी; विगत-मुक्त…

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  • भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 27

    प्रशान्तमनसं ह्येनं योगिनं सुखमुत्तमम्।उपैति शान्तरजसं ब्रह्मभूतकल्मषम् ॥27॥===== प्रशान्त-शान्तिप्रियः मनसम्–मन; हि-निश्चय ही; एनम् यह; योगिनम्-योगी; सुखम्-उत्तमम्-परम आनन्द; उपैति-प्राप्त करता है; शान्त-रजसम्–जिसकी…

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