Bhagwat Geeta

  • भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 12

    काङ्क्षन्तः कर्मणां सिद्धिं यजन्त इह देवताः ।क्षिप्रं हि मानुषे लोके सिद्धिर्भवति कर्मजा ॥12॥काड्.क्षन्तः-इच्छा करते हुए; कर्मणाम्-भौतिक कर्म; सिद्धिम् सफलता; जयन्ते-पूजा;…

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  • भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 11

    ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम् ।मम वर्त्मानुवर्तन्ते मनुष्याः पार्थ सर्वशः ॥11॥ ये-जो; यथा-जैसे भी; माम्-मेरी; प्रपद्यन्ते–शरण ग्रहण करते हैं;…

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  • भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 10

    वीतरागभयक्रोधा मन्मया मामुपाश्रिताः ।बहवो ज्ञानतपसा पूता मद्भावमागताः ॥10॥वीत-से मुक्त; राग-आसक्ति; भय-भय; क्रोधा:-क्रोध; मत्-मया-मुझमें पूर्णतया तल्लीन; माम्-मुझमें; उपाश्रिताः-पूर्णतया आश्रित; बहवः-अनेक; ज्ञान-ज्ञान;…

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  • भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 9

    जन्म कर्म च मे दिव्यमेवं यो वेत्ति तत्त्वतः ।त्यक्त्वा देहं पुनर्जन्म नैति मामेति सोऽर्जुन ॥9॥जन्म-जन्म; कर्म-कर्म; च-और; मे मेरे; दिव्यम्-दिव्य;…

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  • भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 8

    परित्राणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्।धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे ॥8॥ परित्रणाय-रक्षा के लिए; साधूनाम्-भक्तों का; विनाशाय-संहार के लिए; च-और; दुष्कृताम्-दुष्टों के;…

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  • भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 7

    यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत ।अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम् ॥7॥यदा-यदा-जब-जब भी; हि-निश्चय ही; धर्मस्य-धर्म की; ग्लानिः-पतन; भवति होती है; भारत-भरतवंशी,…

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  • भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 6

    अजोऽपि सन्नव्ययात्मा भूतानामीश्वरोऽपि सन्।प्रकृति स्वामधिष्ठाय सम्भवाम्यात्ममायया ॥6॥अजः-अजन्मा; अपि-तथापिः सन्-होते हुए; अव्यय-आत्मा-अविनाशी प्रकृति का; भूतानाम्-सभी जीवों का; ईश्वरः-भगवान; अपि-यद्यपि; सन्–होने पर;…

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  • भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 5

    श्रीभगवानुवाच।बहूनि मे व्यतीतानि जन्मानि तव चार्जुन ।तान्यहं वेद सर्वाणि न त्वं वेत्थ परन्तप ॥5॥श्री-भगवान् उवाच-परम् प्रभु ने कहा; बहूनि–अनेक; मे–मेरे;…

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  • भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 4

    अर्जुन उवाच।अपरं भवतो जन्म परं जन्म विवस्वतः ।कथमेतद्विजानीयां त्वमादौ प्रोक्तवानिति ॥4॥ अर्जुन उवाच-अर्जुन ने कहा; अपरम्-बाद में; भवतः-आपका; जन्म-जन्म; परम्-पहले;…

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  • भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 3

    स एवायं मया तेऽद्य योगः प्रोक्तः पुरातनः।भक्तोऽसि मे सखा चेति रहस्यं ह्येतदुत्तमम् ॥3॥स:-वही; एव–निःसंदेह; अयम्-यह; मया मेरे द्वारा; ते तुम्हारे;…

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