Bhagwat Geeta
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भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 15
युञ्जन्नेवं सदात्मानं योगी नियतमानसः ।शान्तिं निर्वाणपरमां मत्संस्थामधिगच्छति ॥15॥युज्जन्–मन को भगवान में तल्लीन करना; एवम्-इस प्रकार से; सदा-निरन्तर; आत्मानम्-मन; योगी-योगी; नियत-मानसः-संयमित…
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भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 14
प्रशान्तात्मा विगतभीब्रह्मचारिव्रते स्थितः।मनः संयम्य मच्चित्तो युक्त आसीत मत्परः ॥14॥प्रशान्त-शान्त; आत्मा-मन; विगत-भी:-भय रहित; ब्रह्मचारि-व्रते-ब्रह्मचर्य की प्रतिज्ञा; स्थित:-स्थित; मन:-मन को; संयम्य-नियंत्रित करना;…
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भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 12-13
तत्रैकाग्रं मनः कृत्वा यतचित्तेन्द्रियक्रियः ।उपविश्यासने युञ्जयाद्योगमात्मविशुद्धये ॥12॥समं कायशिरोग्रीवं धारयन्नचलं स्थिरः ।सम्प्रेक्ष्य नासिकाग्रं स्वं दिशश्चानवलोकयन् ॥13॥तत्रै-वहाँ; एकाग्रम्-एक बिन्दु पर केन्द्रित; मनः-मन;…
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भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 11
शुचौ देशे प्रतिष्ठाप्य स्थिरमासनमात्मनः ।नात्युच्छ्रितं नातिनीचं चैलाजिनकुशोत्तरम् ॥11॥शुचौ-स्वच्छ; देशे-स्थान; प्रतिष्ठाप्य-स्थापित करके; स्थिरम्-स्थिर; आसनम् आसन; आत्मनः-जीव का; न-नहीं; अति-अधिक; उच्छ्रितम्-ऊँचा; न-न;…
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भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 10
योगी युञ्जीत सततमात्मानं रहसि स्थितः।एकाकी यतचित्तात्मा निराशीरपरिग्रहः ॥10॥योगी-योगी; युञ्जीत–साधना में लीन रहना; सततम्-निरन्तर; आत्मानम्-स्वयं; रहसि-एकान्त वास में; स्थित-रहकर; एकाकी-अकेला; यत-चित्त-आत्मा-नियंत्रित…
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भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 9
सुहृन्मित्रायुदासीनमध्यस्थद्वेष्यबन्धुषु।साधुष्वपि च पापेषु समबुद्धिर्विशिष्यते ॥9॥सु-हत्-शुभ चिन्तक के प्रति; मित्र-मित्र; अरि-शत्रु; उदासीन-तटस्थ व्यक्ति; मध्य-स्थ-मध्यस्थता करना; द्वेष्य ईर्ष्यालु, बन्धुषु-संबंधियों; साधुषु-पुण्य आत्माएँ; अपि-उसी…
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भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 8
ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्थो विजितेन्द्रियः।युक्त इत्युच्यते योगी समलोष्टाश्मकाञ्चनः ॥8॥ज्ञान-ज्ञान; विज्ञान-आंतरिक ज्ञान; तृप्त-आत्मा पूर्णतया संतुष्ट मनुष्य; कूट-स्थ:-अक्षुब्ध; विजित-इन्द्रियः-इन्द्रियों को वश में करने वाला;…
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भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 7
जितात्मनः प्रशान्तस्य परमात्मा समाहितः।शीतोष्णसुखदुःखेषु तथा मानापमानयोः ॥7॥जित-आत्मन:-जिसने मन पर विजय प्राप्त कर ली हो। प्रशान्तस्य–शान्ति; परम-आत्मा-परमात्मा; समाहितः-दृढ़ संकल्प से; शीत-सर्दी;…
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भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 6
बन्धुरात्मात्मनस्तस्य येनात्मैवात्मना जितः ।अनात्मनस्तु शत्रुत्वे वर्ते तात्मैव शत्रुवत् ॥6॥बन्धुः-मित्र; आत्मा–मन; आत्मनः-उस व्यक्ति के लिए; तस्य-उसका; येन-जिसने; आत्मा-मन; एव–निश्चय ही; आत्मना-जीवात्मा…
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भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 5
उद्धरेदात्मनात्मानं नात्मानमवसादयेत् ।आत्मैव ह्यात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ॥5॥ उद्धरेत्-उत्थान; आत्मना-मन द्वारा; आत्मानम्-जीव; न-नहीं; आत्मानम्-जीव; अवसादयेत्-पतन होना; आत्मा-मन; एव–निश्चय ही; हि-वास्तव में;…
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