Bhagwat Geeta

  • भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 4

    यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते ।सर्वसङ्कल्पसंन्यासी योगारूढस्तदोच्यते ॥4॥ यदा-जब; हि-निश्चय ही; न-नहीं; इन्द्रिय-अर्थेषु इन्द्रिय विषयों के लिए; न कभी नहीं;…

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  • भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 3

    आरुरुक्षोर्मुनेर्योगं कर्म कारणमुच्यते ।योगारूढस्य तस्यैव शमः कारणमुच्यते ॥3॥आरूरूक्षो:-नवप्रशिक्षुः मुने:-मुनि की; योगम्-योगः कर्म बिना आसक्ति के कार्य करना; कारणम्-कारण; उच्यते-कहा जाता…

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  • भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 2

    यं संन्यासमिति प्राहुर्योगं तं विद्धि पाण्डव ।न ह्यसंन्यस्तसङ्कल्पो योगी भवति कश्चन ॥2॥यम्-जिसे; संन्यासम्-वैराग्य; इति–इस प्रकार; प्राहुः-वे कहते हैं; योगम् योग;…

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  • भगवद गीता: अध्याय 6, श्लोक 1

    श्रीभगवानुवाच।अनाश्रितः कर्मफलं कार्यं कर्म करोति यः ।स संन्यासी च योगी च न निरग्निर्न चाक्रियः ॥1॥ श्रीभगवानुवाच–परम् भगवान ने कहा; अनाश्रितः-आश्रय…

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  • भगवद गीता: अध्याय 5, श्लोक 29

    भोक्तारं यज्ञतपसां सर्वलोकमहेश्वरम् ।सुहृदं सर्वभूतानां ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति ॥29॥ भोक्तारम्-भोक्ता; यज्ञ-यज्ञ; तपसाम्-तपस्या; सर्वलोक-सभी लोक; महाईश्वरम्-परम् प्रभुः सुहृदम्-सच्चा हितैषी; सर्व-सबका; भूतानाम्-जीव;…

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  • भगवद गीता: अध्याय 5, श्लोक 27-28

    स्पर्शान्कृत्वा बहिर्बाह्यांश्चक्षुश्चैवान्तरे भ्रुवोः।प्राणापानौ समौ कृत्वा नासाभ्यन्तरचारिणौ ॥27॥यतेन्द्रियमनोबुद्धिर्मुनिर्मोक्षपरायणः।विगतेच्छाभयक्रोधो यः सदा मुक्त एव सः ॥28॥स्पर्शान-इन्द्रिय विषयों से सम्पर्क; कृत्वा-करना; बहिः-बाहरी; बाह्यान्–बाहरी विषय;…

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  • भगवद गीता: अध्याय 5, श्लोक 26

    कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम्।अभितो ब्रह्मनिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम् ॥26॥काम-इच्छाएँ; क्रोध-क्रोध; वियुक्तानाम् वे जो मुक्त हैं; यतीनाम्-संत महापुरुष; यत-चेतसाम्-आत्मलीन और मन पर नियंत्रण…

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  • भगवद गीता: अध्याय 5, श्लोक 25

    लभन्ते ब्रह्मनिर्वाणमृषयः क्षीणकल्मषाः।छिन्नद्वैधा यतात्मानः सर्वभूतहिते रताः ॥25॥लभन्ते–प्राप्त करना; ब्रह्मनिर्वाणम्-भौतिक जीवन से मुक्ति; ऋषयः-पवित्र मनुष्य; क्षीण-कल्मषा:-जिसके पाप धुल गए हों; छिन्न-संहार;…

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  • भगवद गीता: अध्याय 5, श्लोक 24

    योऽन्तःसुखोऽन्तरारामस्तथान्तर्योतिरेव यः।स योगी ब्रह्मनिर्वाणं ब्रह्मभूतोऽधिगच्छति ॥24॥ यः-जो; अन्त:-सुखः-अपनी अन्तरात्मा में सुखी; अन्त:-आरामः-आत्मिक आनन्द में अन्तर्मुखी; तथा उसी प्रकार से; अन्तः-ज्योतिः-आंतरिक…

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  • भगवद गीता: अध्याय 5, श्लोक 23

    शक्नोतीहैव यः सोढुं प्राक्शरीरविमोक्षणात् ।कामक्रोधोद्भवं वेगं स युक्तः स सुखी नरः ॥23॥ शक्नोति-समर्थ है; इह-एव–इसी शरीर में; यः-जो; सोढुम्-सहन करना;…

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