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भगवद गीता: अध्याय 3, श्लोक 11
देवान्भावयतानेन ते देवा भावयन्तु वः ।परस्परं भावयन्तः श्रेयः परमवाप्स्यथ ॥11॥देवान्–स्वर्ग के देवताओं को; भावयता–प्रसन्न होंगे; अनेन–इन यज्ञों से; ते–वे; देवाः-स्वर्ग…
Read More » भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 68
तस्माद्यस्य महाबाहो निगृहीतानि सर्वशः ।इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥68॥तस्मात्-इसलिए; यस्य–जिसकी; महाबाहो-महाबलशाली; निगृहीतानि-विरक्त; सर्वशः-सब प्रकार से; इन्द्रियाणि-इन्द्रियाँ इन्द्रिय-अर्थेभ्यः-इन्द्रिय विषयों से; तस्य-उस व्यक्ति…
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प्राचीन काल में जानवरों और पेड़ों की पूजा: एक गहन विश्लेषण
प्रस्तावना प्राचीन समय से ही, मानव जाति ने प्रकृति के विभिन्न तत्वों को पूजनीय माना है। इनमें जानवर और पेड़-पौधे…
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क्या हनुमान जी की शादी हुई थी? एक गहन विश्लेषण
हनुमान जी हिंदू धर्म के सबसे प्रिय और पूजनीय देवताओं में से एक हैं। उनकी शक्ति, भक्ति और समर्पण की…
Read More » भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 10
तमुवाच हृषीकेशं प्रहसन्निव भारत।सेनयोरुभयोर्मध्ये विषीदन्तमिदं वचः ॥10॥ तम्-उससे; उवाच-कहा; हृषीकेश:-मन और इन्द्रियों के स्वामी, श्रीकृष्ण ने; प्रहसन-हँसते हुए; इव-मानो; भारत-भरतवंशी…
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भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 8
न हि प्रपश्यामि ममापनुद्याद्य-च्छोकमुच्छोषणमिन्द्रियाणाम्।अवाप्य भूमावसपत्नमृद्धंराज्यं सुराणामपि चाधिपत्यम् ॥8॥ न–नहीं; हि-निश्चय ही; प्रपश्यामि मैं देखता हूँ; मम–मेरा; अपनुद्यात्-दूर कर सके; यत्-जो;…
Read More » भगवद गीता: अध्याय 1, श्लोक 47
सञ्जय उवाच। एवमुक्त्वार्जुनः सङ्खये रथोपस्थ उपाविशत्। विसृज्य सशरं चापं शोकसंविग्नमानसः॥47॥ संजयः उवाच-संजय ने कहा; एवम्- उक्त्वा -इस प्रकार कहकर; अर्जुन:-अर्जुन;…
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भगवद गीता: अध्याय 1, श्लोक 42
सङ्करो नरकायैव कुलजानां कुलस्य च।पतन्ति पितरो ह्येषां लुप्तपिण्डोदकक्रियाः॥42॥ सड्करः-अवांछित बच्चे; नरकाय नारकीय; एव-निश्चय ही; कुल-धयानानं–कुल का विनाश करने वालों के…
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