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हनुमान जी की अद्भुत वीरता: अमर राक्षसों का संहार

रामायण के महान युद्ध में जब परिस्थितियां सबसे कठिन हो गईं और विजय असंभव लगने लगी, तब पवनपुत्र हनुमान जी ने अपनी अद्भुत वीरता और बुद्धिमत्ता का परिचय देकर एक ऐसा चमत्कार किया जिसकी तुलना स्वयं देवराज इंद्र, महाराज कुबेर और भगवान विष्णु से भी नहीं की जा सकती। यह कथा हमें दिखाती है कि सच्ची भक्ति और समर्पण के आगे कोई भी बाधा टिक नहीं सकती।

रावण का अंतिम दांव

जब लंकापति रावण ने देखा कि युद्ध में उसकी पराजय निश्चित हो चुकी है, तो उसने अपना अंतिम और सबसे शक्तिशाली अस्त्र चलाने का निर्णय लिया। उसने एक हजार ऐसे अमर राक्षसों को युद्धभूमि में भेजा जो काल के चंगुल से भी मुक्त थे। ये राक्षस न केवल अजेय थे बल्कि मृत्यु की छाया भी उन तक नहीं पहुंच सकती थी।

यह समाचार जब विभीषण के गुप्तचरों के माध्यम से श्री राम तक पहुंचा, तो प्रभु को गहरी चिंता हुई। यदि ये राक्षस वास्तव में अमर हैं तो युद्ध कब तक चलेगा? माता सीता का उद्धार कैसे होगा? विभीषण का राज्याभिषेक कब संभव हो सकेगा? ये प्रश्न न केवल श्री राम को बल्कि कपिराज सुग्रीव और पूरी वानर सेना को विचलित कर रहे थे।

हनुमान जी का आगमन और समाधान

इस कठिन घड़ी में जब सभी चिंता में डूबे थे, तब अंजनी नंदन हनुमान जी का आगमन हुआ। प्रभु राम की चिंता देखकर उन्होंने पूछा कि क्या समस्या है। विभीषण जी ने पूरी स्थिति स्पष्ट करते हुए बताया कि अब विजय असंभव प्रतीत हो रही है।

पवनपुत्र ने अपने स्वाभाविक आत्मविश्वास के साथ कहा, “असंभव को संभव और संभव को असंभव कर देने का नाम ही तो हनुमान है। प्रभु आप बस मुझे आज्ञा दें, मैं अकेले ही रावण की अमर सेना को नष्ट कर दूंगा।”

जब श्री राम ने पूछा कि वे तो अमर हैं, तो हनुमान जी ने केवल इतना कहा कि प्रभु चिंता न करें और अपने सेवक पर विश्वास रखें।

युद्धभूमि में हनुमान जी का सामना

रावण ने अपनी सेना को भेजते समय विशेष रूप से चेतावनी दी थी कि हनुमान नाम के वानर से सावधान रहना। जब राक्षसों ने रणभूमि में अकेले आए हनुमान जी को देखा तो वे आश्चर्यचकित हो गए कि यह वानर उन्हें देखकर भी निर्भय कैसे खड़ा है।

हनुमान जी ने व्यंग्य के साथ कहा, “क्या रावण ने तुम लोगों को कोई संकेत नहीं दिया था?” राक्षसों को तुरंत समझ आ गया कि यही वह महाबली हनुमान है जिससे सावधान रहने को कहा गया था। फिर भी उन्होंने सोचा कि वे अमर हैं, इसलिए कोई भी उनका कुछ नहीं बिगाड़ सकता।

अद्भुत युद्ध और चमत्कारिक समाधान

भयंकर युद्ध आरंभ हुआ। पवनपुत्र के प्रहार से राक्षस युद्धभूमि में गिरने लगे, लेकिन अमर होने के कारण वे पुनः खड़े हो जाते थे। जब केवल चौथाई सेना बची तो राक्षसों ने चुनौती दी कि वे अमर हैं और उन्हें हराना असंभव है।

हनुमान जी ने कहा कि वे अवश्य लौटेंगे लेकिन अपनी इच्छा से, न कि राक्षसों के कहने से। उन्होंने सभी राक्षसों को एक साथ आक्रमण करने के लिए कहा।

जैसे ही सभी राक्षसों ने एक साथ आक्रमण किया, पवनपुत्र ने अपनी अद्भुत बुद्धिमत्ता का परिचय दिया। उन्होंने सभी राक्षसों को अपनी पूंछ में लपेटकर आकाश में इतनी ऊंचाई पर फेंक दिया कि वे पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति की सीमा से भी बाहर निकल गए।

राक्षसों की दुर्दशा

अमर होने के कारण राक्षस मर नहीं सकते थे, लेकिन निरंतर ऊपर जाते रहने से उनके शरीर सूख गए। तुलसीदास जी के शब्दों में “चले मग जात सूखि गए गात” – वे निरंतर ऊपर जाते रहे और उनके शरीर सूख गए। वे रावण को गाली देते हुए और अपनी अमरता को कोसते हुए आज भी अंतरिक्ष में भटक रहे हैं।

प्रभु राम की प्रशंसा और आशीर्वाद

जब हनुमान जी वापस आकर प्रभु के चरणों में शीश झुकाया तो श्री राम ने पूछा कि क्या हुआ। हनुमान जी ने सरलता से कहा कि उन्हें ऊपर भेजकर आ रहे हैं। जब प्रभु ने पूछा कि वे तो अमर थे, तो हनुमान जी ने कहा कि इसीलिए उन्हें जीवित ही ऊपर भेज आया है और अब वे कभी वापस नहीं आ सकते।

प्रभु राम इतने प्रसन्न हुए कि उन्होंने हनुमान जी को गले लगाया और कहा कि इस उपकार का बदला वे कभी नहीं चुका सकते क्योंकि उपकार का बदला विपत्ति के समय चुकाया जाता है, और उन्होंने आशीर्वाद दिया कि हनुमान जी पर कभी कोई विपत्ति न आए।

निष्कर्ष और संदेश

स्वयं श्री राम ने कहा था कि हनुमान जी की वीरता की तुलना काल, देवराज इंद्र, महाराज कुबेर या भगवान विष्णु से भी नहीं की जा सकती। श्लोक में कहा गया है:

न कालस्य न शक्रस्य न विष्णर्वित्तपस्य च।
कर्माणि तानि श्रूयन्ते यानि युद्धे हनूमतः॥

यह कथा हमें सिखाती है कि सच्ची भक्ति, बुद्धिमत्ता और समर्पण के समक्ष कोई भी समस्या असंभव नहीं है। हनुमान जी ने न केवल शक्ति का बल्कि बुद्धि का भी सदुपयोग करके एक ऐसी समस्या का समाधान किया जो असंभव लग रही थी।

जय श्री सीताराम जी

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