Bhagwat Geeta

भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 15

एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म पूर्वैरपि मुमुक्षुभिः।
कुरु कर्मैव तस्मात्त्वं पूर्वैः पूर्वतरं कृतम्॥15॥


एवम्-इस प्रकार; ज्ञात्वा-जानकर; कृतम्–सम्पादन करना; कर्म-कर्म; पूर्वेः प्राचीन काल का; अपि वास्तव में; मुमक्षुभिः-मोक्ष का इच्छुक; कुरु-करना चाहिए; कर्म-कर्त्तव्य; एव-निश्चय ही; तस्मात्-अतः; त्वम्-तुम; पूर्वेः-प्राचीनकाल की मुक्त आत्माओं का; पूर्वतरम्-प्राचीन काल में; कृतम्-सम्पन्न किए।

Hindi translation: इस सत्य को जानकर प्राचीन काल में मुक्ति की अभिलाषा करने वाली आत्माओं ने भी कर्म किए इसलिए तुम्हे भी उन मनीषियों के पदचिह्नों का अनुसरण करते हुए अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए।

निःस्वार्थ सेवा: संतों का मार्ग

प्रस्तावना

आज के युग में, जब हर कोई अपने स्वार्थ के लिए दौड़ रहा है, संतों का जीवन हमें एक अलग दृष्टिकोण देता है। वे लोग जो भगवान को पाने की अभिलाषा रखते हैं, उनका कर्म करने का उद्देश्य बिलकुल भिन्न होता है। आइए, इस विषय पर गहराई से विचार करें और समझें कि संत इस संसार में रहकर भी कैसे निःस्वार्थ भाव से कर्म करते हैं।

संतों का कर्म: एक अनोखा दृष्टिकोण

संत वे महापुरुष हैं जो भौतिक सुखों से ऊपर उठकर जीवन जीते हैं। उनका प्रत्येक कर्म भगवान की सेवा के लिए होता है। यह एक ऐसा दृष्टिकोण है जो साधारण मनुष्य के लिए समझना कठिन हो सकता है। आखिर, जब कोई व्यक्ति खुद के लिए कुछ नहीं चाहता, तो वह कर्म क्यों करेगा?

भगवान की सेवा: संतों का मुख्य उद्देश्य

संतों का मुख्य उद्देश्य भगवान की सेवा करना होता है। वे अपने हर कर्म को भगवान के प्रति समर्पण के रूप में देखते हैं। उनके लिए, प्रत्येक कार्य एक पूजा के समान है। चाहे वह किसी गरीब की मदद करना हो या फिर ज्ञान का प्रचार करना, सब कुछ भगवान के लिए किया जाता है।

श्रद्धा और भक्ति: कर्म का आधार

संतों के कर्म का आधार श्रद्धा और भक्ति होता है। वे जो भी करते हैं, पूर्ण समर्पण के साथ करते हैं। यह श्रद्धा उन्हें बंधन से मुक्त रखती है। जैसा कि भगवद्गीता में कहा गया है, श्रद्धापूर्वक किए गए कर्म कभी बंधन का कारण नहीं बनते।

संतों की करुणा: दूसरों के दुःख को समझना

संत अपने आसपास के लोगों के दुःख को देखकर विचलित हो जाते हैं। वे समझते हैं कि भौतिक जगत में फंसे लोग कैसे दुःख भोग रहे हैं। यह करुणा उन्हें दूसरों की मदद करने के लिए प्रेरित करती है।

आध्यात्मिक उत्थान: संतों का लक्ष्य

संतों का मुख्य लक्ष्य होता है लोगों का आध्यात्मिक उत्थान करना। वे चाहते हैं कि हर व्यक्ति भगवान के करीब आए और अपने जीवन का सच्चा अर्थ समझे। इसके लिए वे निरंतर प्रयास करते रहते हैं।

बुद्ध का उपदेश: ज्ञान और कर्म

महात्मा बुद्ध ने एक बार कहा था, “ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात तुम्हारे पास दो विकल्प होते हैं या तो तुम कुछ मत करो या ज्ञान प्राप्ति हेतु अन्य लोगों की सहायता करो।” यह उपदेश संतों के जीवन का सार है। वे ज्ञान प्राप्त करके चुप नहीं बैठ जाते, बल्कि उस ज्ञान को दूसरों तक पहुंचाने का प्रयास करते हैं।

निःस्वार्थ सेवा: संतों की विशेषता

संतों की सबसे बड़ी विशेषता है उनकी निःस्वार्थ सेवा। वे किसी प्रतिफल की आशा के बिना कर्म करते हैं। उनका एकमात्र उद्देश्य होता है भगवान को प्रसन्न करना और दूसरों की मदद करना।

भगवान की कृपा: श्रद्धा का फल

जब कोई व्यक्ति श्रद्धा और भक्ति के साथ कर्म करता है, तो उस पर भगवान की कृपा बरसती है। यह कृपा उसे और अधिक शक्ति देती है, जिससे वह और अधिक निःस्वार्थ भाव से सेवा कर सकता है।

अर्जुन को श्रीकृष्ण का उपदेश

भगवद्गीता में, श्रीकृष्ण अर्जुन को यही उपदेश देते हैं। वे कहते हैं कि कर्म करने से कोई बंधन में नहीं पड़ता, बशर्ते वह कर्म निष्काम भाव से किया जाए।

कर्म का तत्त्वज्ञान: श्रीकृष्ण की शिक्षा

श्रीकृष्ण कर्म के तत्त्वज्ञान की व्याख्या करते हुए कहते हैं कि हर व्यक्ति को अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए, लेकिन उसके फल की चिंता किए बिना। यह निष्काम कर्म का सिद्धांत है, जो संतों के जीवन का आधार है।

कर्म और फल: एक महत्वपूर्ण अंतर

यहाँ एक महत्वपूर्ण बात समझने की आवश्यकता है – कर्म करने का अधिकार हमारा है, लेकिन फल पर हमारा कोई अधिकार नहीं। संत इस सत्य को पूरी तरह से समझते और स्वीकार करते हैं।

संतों के कर्म: एक तुलनात्मक दृष्टि

आइए, एक तालिका के माध्यम से साधारण व्यक्ति और संत के कर्म की तुलना करें:

विषयसाधारण व्यक्तिसंत
कर्म का उद्देश्यव्यक्तिगत लाभभगवान की सेवा
प्रेरणा का स्रोतभौतिक सुखआध्यात्मिक उन्नति
फल की अपेक्षाहाँनहीं
दृष्टिकोणस्वार्थपूर्णनिःस्वार्थ
आंतरिक स्थितिअशांतशांत

निष्कर्ष: संतों का मार्ग

संतों का जीवन हमें सिखाता है कि कैसे इस संसार में रहकर भी निःस्वार्थ भाव से जीवन जिया जा सकता है। वे हमें दिखाते हैं कि सच्चा सुख दूसरों की सेवा में है, न कि अपने स्वार्थ में। उनका मार्ग कठिन हो सकता है, लेकिन यह वह मार्ग है जो हमें सच्ची शांति और आनंद की ओर ले जाता है।

संत इस संसार में रहकर भी इससे अलिप्त रहते हैं। वे अपने कर्तव्यों का पालन करते हैं, लेकिन उनका ध्यान हमेशा भगवान पर केंद्रित रहता है। उनका जीवन एक प्रेरणा है – एक ऐसी प्रेरणा जो हमें बताती है कि कैसे हम अपने दैनिक जीवन में भी थोड़ा-थोड़ा निःस्वार्थ हो सकते हैं।

अंत में, यह समझना महत्वपूर्ण है कि संत बनने के लिए संन्यास लेने की आवश्यकता नहीं है। हम अपने दैनिक जीवन में भी संतों के गुणों को अपना सकते हैं। थोड़ा-थोड़ा करके, हम भी अपने कर्मों को निःस्वार्थ बना सकते हैं और दूसरों की सेवा में आनंद पा सकते हैं।

संतों का मार्ग हमें सिखाता है कि जीवन का सच्चा उद्देश्य क्या है। यह हमें बताता है कि कैसे हम अपने कर्मों के द्वारा न केवल अपना, बल्कि पूरे समाज का कल्याण कर सकते हैं। यह एक ऐसा मार्ग है जो हमें भौतिक जगत से ऊपर उठाकर एक उच्च चेतना की ओर ले जाता है।

आज के इस भागदौड़ भरे जीवन में, जहाँ हर कोई अपने लिए कुछ पाने की होड़ में लगा है, संतों का जीवन हमें एक नया दृष्टिकोण देता है। यह हमें याद दिलाता है कि सच्चा सुख देने में है, लेने में नहीं। यह हमें सिखाता है कि कैसे हम अपने कर्मों को एक पूजा में बदल सकते हैं।

अंततः, संतों का मार्ग हमें एक महत्वपूर्ण सबक देता है – यह कि हम सभी एक हैं। जब हम दूसरों की सेवा करते हैं, तो वास्तव में हम अपनी ही सेवा कर रहे होते हैं। यह एकता का भाव ही है जो हमें सच्चे अर्थों में मानव बनाता है।

इस प्रकार, संतों का जीवन और उनका कर्म करने का तरीका हमारे लिए एक मार्गदर्शक प्रकाश स्तंभ है। यह हमें दिखाता है कि कैसे हम इस संसार में रहकर भी इससे ऊपर उठ सकते हैं। यह हमें सिखाता है कि कैसे हम अपने प्रत्येक कर्म को भगवान के प्रति समर्पण में बदल सकते हैं।

आइए, हम सब मिलकर संतों के इस मार्ग पर चलने का प्रयास करें। भले ही हम पूरी तरह से संत न बन पाएं, लेकिन उनके गुणों को अपनाकर हम अपने जीवन और समाज को बेहतर बना सकते हैं। यही सच्चे अर्थों में मानव जीवन की सफलता है।

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