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Ramkrishna Paramhans की अद्भुत कहानी: जब माँ काली ने दिया ये दिव्य उत्तर

Ramkrishna Paramhans रामकृष्ण परमहंस फोटो - दक्षिणेश्वर काली मंदिर के महान संत"

&NewLine;<p>Ramkrishna Paramhans&colon; आध्यात्मिक इतिहास में कुछ ऐसे क्षण होते हैं जो सामान्य चेतना और प्रबुद्ध जागरूकता के बीच के गहरे अंतर को उजागर करते हैं। ऐसा ही एक अविस्मरणीय प्रसंग श्री रामकृष्ण परमहंस के जीवन के अंतिम दिनों में घटित हुआ&comma; जब एक गंभीर बीमारी एक महान शिक्षा का माध्यम बन गई।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading">रामकृष्ण और गले का कैंसर<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>रामकृष्ण परमहंस को गले का कैंसर हो गया था। स्थिति इतनी विकट थी कि पानी पीना भी कठिन हो गया था&comma; भोजन निगलना तो और भी असंभव। माँ काली के इस महान उपासक को इस पीड़ा में देखकर स्वामी विवेकानंद का हृदय व्याकुल हो उठा। उन्होंने सोचा &&num;8211&semi; जब रामकृष्ण की <a href&equals;"https&colon;&sol;&sol;sanatanroots&period;com&sol;shivas-celestial-discourse-on-the-many-hues-of-love&sol;" data-type&equals;"post" data-id&equals;"1452">माँ काली<&sol;a> के साथ इतनी गहरी साधना है&comma; तो वे क्यों नहीं अपने लिए प्रार्थना करते&quest;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>दिन-प्रतिदिन विवेकानंद अपने गुरुदेव से आग्रह करते रहे। उनका तर्क सरल और स्पष्ट था &&num;8211&semi; &&num;8220&semi;आप माँ काली से अपने लिए प्रार्थना क्यों नहीं करते&quest; क्षणभर की बात है&comma; आप कह दें&comma; और गला ठीक हो जाएगा&excl;&&num;8221&semi;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>लेकिन Ramkrishna Paramhans केवल मुस्कुराते रहते&comma; मानो कोई गहरा रहस्य अपने भीतर संजोए हुए हों।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading">स्वीकार का दिव्य ज्ञान<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>अंततः शिष्य के बार-बार के आग्रह पर रामकृष्ण परमहंस ने अपनी गहरी समझ को साझा किया। उन्होंने कहा&comma; &&num;8220&semi;तू समझता नहीं है रे नरेन्द्र। जो अपना किया है&comma; उसका निपटारा कर लेना जरूरी है। नहीं तो उसके निपटारे के लिए फिर से आना पड़ेगा। तो जो हो रहा है&comma; उसे हो जाने देना उचित है।&&num;8221&semi;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>यह कर्म के सिद्धांत की गहरी समझ थी। रामकृष्ण जानते थे कि प्रकृति के नियमों में हस्तक्षेप करना उचित नहीं है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>फिर भी विवेकानंद का हृदय अपने गुरु की पीड़ा सहन नहीं कर पा रहा था। उन्होंने विनती की&comma; &&num;8220&semi;इतना ना सही&comma; कम से कम इतना तो कहें कि गला इस योग्य रहे कि पानी जा सके&comma; भोजन किया जा सके&excl; हमें बड़ा असह्य कष्ट होता है&comma; आपकी यह दशा देखकर।&&num;8221&semi;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>शिष्य की भक्ति और व्याकुलता देखकर Ramkrishna Paramhans का हृदय द्रवित हो गया। उन्होंने कहा&comma; &&num;8220&semi;आज मैं कहूंगा।&&num;8221&semi;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading">माँ काली का अद्भुत उत्तर<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>अगली सुबह एक अप्रत्याशित दृश्य देखने को मिला। रामकृष्ण जोर-जोर से हंसते हुए जागे &&num;8211&semi; ऐसी हंसी जो उनकी शारीरिक स्थिति को देखते हुए असंभव लगती थी।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>हंसी की लहरों के बीच उन्होंने विवेकानंद को बताया कि माँ काली से प्रार्थना के दौरान क्या हुआ। &&num;8220&semi;आज तो बड़ा मजा आया। तू कहता था ना&comma; माँ से कह दो। मैंने कहा माँ से&comma; तो माँ बोली&comma; &&num;8216&semi;इसी गले से क्या कोई ठेका ले रखा है&quest; दूसरों के गलों से भोजन करने में तुझे क्या तकलीफ है&quest;'&&num;8221&semi;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>रामकृष्ण हंसते रहे और कहा&comma; &&num;8220&semi;तेरी बातों में आकर मुझे भी बुद्धू बनना पड़ा&excl; यह बात तो सच है &&num;8211&semi; इसी गले का क्या ठेका है&quest; आज से जब तू भोजन करे&comma; समझना कि मैं तेरे गले से भोजन कर रहा हूं।&&num;8221&semi;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading">पीड़ा और आनंद का विरोधाभास<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>उस दिन जब चिकित्सक आए&comma; तो वे आश्चर्यचकित रह गए। एक ऐसा रोगी जिसकी शारीरिक स्थिति तेजी से बिगड़ रही थी&comma; जो असहनीय पीड़ा में होना चाहिए था &&num;8211&semi; वह पूरे दिन हंसता रहा।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>डॉक्टर ने कहा&comma; &&num;8220&semi;आप हंस रहे हैं&quest; और शरीर की अवस्था ऐसी है कि इससे ज्यादा पीड़ा की स्थिति नहीं हो सकती&excl;&&num;8221&semi;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>Ramkrishna Paramhans ने अपनी हंसी का कारण बताया&colon; &&num;8220&semi;हंस रहा हूं इससे कि मेरी बुद्धि को क्या हो गया कि मुझे खुद खयाल न आया कि सभी गले अपने ही हैं। सभी गलों से अब मैं भोजन करूंगा&excl; अब इस एक गले की क्या जिद करनी है&excl;&&num;8221&semi;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading">सच्चे संतत्व की पहचान<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>यह प्रसंग प्रामाणिक आध्यात्मिक गुरुओं के बारे में एक मौलिक सत्य प्रकट करता है &&num;8211&semi; संत कभी अपने लिए नहीं मांगते। जो साधू अपने लिए व्यक्तिगत राहत मांगने लगता है&comma; वह अपने संतत्व का सार ही खो देता है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>कितनी ही विकट परिस्थिति क्यों न हो&comma; Ramkrishna Paramhans जैसे संत कभी अपने लिए नहीं मांगते। वे रंक को राजा और राजा को रंक बना देते हैं&comma; लेकिन खुद भिक्षुक बने रहते हैं।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>संत अपने लिए प्रार्थना क्यों नहीं करते&quest; क्योंकि जब व्यक्तिगत आत्मा सार्वभौमिक चेतना के साथ पूरी तरह से विलीन हो जाती है&comma; तो &&num;8220&semi;मेरा&&num;8221&semi; और &&num;8220&semi;तेरा&&num;8221&semi; का भेद पूरी तरह से मिट जाता है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading">अद्वैत का जीवंत अनुभव<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>Ramkrishna Paramhans का यह उत्तर अद्वैत वेदांत की सबसे गहरी शिक्षा का जीवंत उदाहरण है। जब आत्मा का विश्वात्मा के साथ तादात्म्य हो जाता है&comma; तो फिर अपना-पराया कुछ नहीं रहता।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>माँ काली के इस महान भक्त को किसी वस्तु का अभाव ही नहीं था&comma; क्योंकि वे समस्त सृष्टि में व्याप्त थे। उनके लिए हर गला उनका अपना गला था&comma; हर शरीर उनका अपना शरीर था।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading">Ramkrishna Paramhans की शाश्वत शिक्षा<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>यह घटना हमें सिखाती है कि&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p><strong>आसक्ति से मुक्ति<&sol;strong>&colon; Ramkrishna Paramhans ने अपने शरीर के प्रति भी आसक्ति नहीं रखी। उन्होंने दिखाया कि सच्ची आध्यात्मिकता में शरीर के प्रति मोह नहीं होता।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p><strong>सार्वभौमिक चेतना<&sol;strong>&colon; जब कोई व्यक्ति उच्चतम चेतना को प्राप्त कर लेता है&comma; तो वह सभी में अपने को देखता है। विवेकानंद के गले से भोजन करना रामकृष्ण के लिए अपने गले से भोजन करने जैसा ही था।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p><strong>कर्म का स्वीकार<&sol;strong>&colon; Ramkrishna Paramhans ने अपने कर्मों के परिणाम को स्वीकार किया और प्रकृति के नियमों में हस्तक्षेप नहीं किया। यह समर्पण की सर्वोच्च अवस्था है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p><strong>आनंद का स्रोत<&sol;strong>&colon; सच्चा आनंद बाहरी परिस्थितियों पर निर्भर नहीं करता। Ramkrishna Paramhans गंभीर पीड़ा में भी हंस सकते थे क्योंकि उनका आनंद भीतर से आता था।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading">माँ काली की कृपा<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>रामकृष्ण परमहंस की यह कहानी माँ काली की असीम कृपा और उनकी शिक्षा का भी प्रमाण है। माँ ने अपने भक्त को एक ऐसी शिक्षा दी जो युगों तक याद रखी जाएगी।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>माँ काली का यह उत्तर &&num;8211&semi; &&num;8220&semi;इसी गले से क्या कोई ठेका ले रखा है&quest;&&num;8221&semi; &&num;8211&semi; अद्वैत का सबसे सरल और सुंदर संदेश है। यह दर्शाता है कि परमात्मा के लिए कोई भेद नहीं है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading">निष्कर्ष<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>Ramkrishna Paramhans का यह प्रसंग हमें सिखाता है कि वास्तविक आध्यात्मिकता व्यक्तिगत इच्छाओं से परे है। यह सार्वभौमिक चेतना में स्थित होना है&comma; जहां सब कुछ एक है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>जब हम रामकृष्ण परमहंस फोटो को देखते हैं या उनकी शिक्षाओं के बारे में पढ़ते हैं&comma; तो हमें याद रखना चाहिए कि संतत्व का अर्थ है &&num;8211&semi; अहंकार का पूर्ण विसर्जन और सार्वभौमिक प्रेम में स्थित होना।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>आदिशक्ति के स्मरण के साथ&comma; प्रेम से बोलिए &&num;8211&semi; <strong>माँ महाकाली की जय&excl;<&sol;strong><&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<figure class&equals;"wp-block-image size-large"><img src&equals;"https&colon;&sol;&sol;sanatanroots&period;com&sol;wp-content&sol;uploads&sol;2025&sol;12&sol;Ramkrishna-Paramhans-798x1024&period;webp" alt&equals;"" class&equals;"wp-image-3134"&sol;><&sol;figure>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p><&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>Follow us on <a href&equals;"http&colon;&sol;&sol;x&period;com&sol;sanatanroots1">x&period;com<&sol;a><&sol;p>&NewLine;

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