Bhagavad Geeta

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    भगवद गीता: अध्याय 5, श्लोक 1

    अर्जुन उवाच।संन्यासं कर्मणां कृष्ण पुनर्योगं च शंससि ।यच्छ्रेय एतयोरेकं तन्मे ब्रूहि सुनिश्चितम् ॥1॥ अर्जुन-उवाच-अर्जुन ने कहा; संन्यासम् वैराग्य; कर्मणाम् कर्मों…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 42

    तस्मादज्ञानसम्भूतं हृत्स्थं ज्ञानासिनात्मनः।छित्त्वैनं संशयं योगमातिष्ठोत्तिष्ठ भारत ॥42॥तस्मात्-इसलिए; अज्ञान-सम्भूतम्-अज्ञान से उत्पन्नहृत्स्थम् हृदय में स्थित; ज्ञान ज्ञान; असिना–खड्ग से; आत्मनः-स्व के छित्त्वा-काटकर;…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 41

    योगसंन्यस्तकर्माणं ज्ञानसञ्छिन्नसंशयम्।आत्मवन्तं न कर्माणि निबध्नन्ति धनञ्जय ॥41॥ योगसंन्यस्त-कर्माणम-वे जो कर्म काण्डों का त्याग कर देते हैं और अपने मन, शरीर…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 40

    अज्ञश्चाश्रद्दधानश्च संशयात्मा विनश्यति।नायं लोकोऽस्ति न परो न सुखं संशयात्मनः ॥40॥ अज्ञः-अज्ञानी,; च-और; अश्रद्दधानः-श्रद्धा विहीन; च-और; संशय-शंकाग्रस्त; आत्मा व्यक्ति; विनश्यति-पतन हो…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 39

    श्रद्धावान् लभते ज्ञानं तत्परः संयतेन्द्रियः।ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्तिमचिरेणाधिगच्छति ॥39॥ श्रद्धावान्–श्रद्धायुक्त व्यक्ति; लभते-प्राप्त करता है; ज्ञानम्-दिव्य ज्ञान; तत्-परः-उसमें समर्पित; संयत-नियंत्रित; इन्द्रियः-इन्द्रियाँ;…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 38

    न हि ज्ञानेन सदृशं पवित्रमिह विद्यते ।तत्स्वयं योगसंसिद्धः कालेनात्मनि विन्दति ॥38॥न-नहीं; हि-निश्चय ही; ज्ञानेन-दिव्य ज्ञान के साथ; सदृशम् समान; पवित्रम्-शुद्ध;…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 37

    यथैधांसि समिद्धोऽग्निर्भस्मसात्कुरुतेऽर्जुन ।ज्ञानाग्निः सर्वकर्माणि भस्मसात्कुरुते तथा ॥37॥ यथा-जिस प्रकार से; एधासि ईंधन को; समिः-जलती हुई; अग्नि:-अग्नि; भस्मसात् राख; कुरुते-कर देती…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 36

    अपि चेदसि पापेभ्यः सर्वेभ्यः पापकृत्तमः ।सर्वं ज्ञानप्लवेनैव वृजिनं सन्तरिष्यसि ॥36॥अपि-भी; चेत्-यदि; असि-तुम हो; पापेभ्यः-पापी; सर्वेभ्यः-समस्त; पाप-कृत-तमः-महापापी; सर्वम्-ऐसे समस्त कर्म; ज्ञान-प्लवेन…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 35

    यज्ज्ञात्वा न पुनर्मोहमेवं यास्यसि पाण्डव ।येन भूतान्यशेषेण द्रक्ष्यस्यात्मन्यथो मयि ॥35॥यत्-जिसे; ज्ञात्वा-जानकर; न कभी; पुनः-फिर; मोहम्-मोह को; एवम्-इस प्रकार; यास्यसि-तुम प्राप्त…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 34

    तद्विद्धि प्रणिपातेन परिप्रश्नेन सेवया।उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानं ज्ञानिनस्तत्त्वदर्शिनः ॥34॥ तत्-सत्य; विद्धि-जानने का प्रयास करना; प्रणिपातेन-आध्यात्मिक गुरु के पास जाकर के; परिप्रश्नेन–विनम्रता…

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