Bhagavad Geeta

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 33

    श्रेयान्द्रव्यमयाद्यज्ञाज्ज्ञानयज्ञः परन्तप ।सर्वं कर्माखिलं पार्थ ज्ञाने परिसमाप्यते ॥33॥श्रेयान्–श्रेष्ठ; द्रव्य-मयात्-भौतिक सम्पत्ति; यज्ञात्-यज्ञ की अपेक्षा; ज्ञानयज्ञः-ज्ञान युक्त होकर यज्ञ सम्पन्न करना; परन्तप-शत्रुओं…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 32

    एवं बहुविधा यज्ञा वितता ब्रह्मणो मुखे।कर्मजान्विद्धि तान्सर्वानेवं ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे ॥32॥एवम्-इस प्रकार; बहु-विधा:-विविध प्रकार के; यज्ञाः-यज्ञ; वितताः-वर्णितं; ब्रह्मणाः-वेदों के; मुखे–मुख में;…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 31

    यज्ञशिष्टामृतभुजो यान्ति ब्रह्म सनातनम्नायं लोकोऽस्त्ययज्ञस्य कुतोऽन्यः कुरुसत्तम ॥31॥यज्ञशिष्टा अमृत भुजो-वे यज्ञों के अवशेषों के अमृत का पान करते हैं; यान्ति-जाते…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 29-30

    अपाने जुह्वति प्राणं प्राणेऽपानं तथापरे ।प्राणापानगती रुद्ध्वा प्राणायामपरायणाः ॥29॥अपरे नियताहाराः प्राणान्प्राणेषु जुह्वति।सर्वेऽप्येते यज्ञविदो यज्ञक्षपितकल्मषाः॥30॥ अपाने भीतरी श्वास; जुह्वति–अर्पित करते हैं।…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 28

    द्रव्ययज्ञास्तपोयज्ञा योगयज्ञास्तथापरे।स्वाध्यायज्ञानयज्ञाश्च यतयः संशितव्रताः ॥28॥ द्रव्ययज्ञाः-यज्ञ में के किसी द्वारा अपनी सम्पत्ति अर्पित करना; तपः-यज्ञाः-यज्ञ के रूप में कठोर तपस्या…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 27

    सर्वाणीन्द्रियकर्माणि प्राणकर्माणि चापरे ।आत्मसंयमयोगाग्नौ जुह्वति ज्ञानदीपिते ॥27॥ सर्वाणि समस्त; इन्द्रिय-इन्द्रियों के कर्माणि-कार्यः प्राण-कर्माणि प्राणों की क्रियाएँ: च-और; अपरे–अन्य; आत्म-संयम-योग-संयमित मन…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 26

    श्रोत्रादीनीन्द्रियाण्यन्ये संयमाग्निषु जुह्वति।शब्दादीन्विषयानन्य इन्द्रियाग्निषु जुह्वति ॥26॥श्रोत्र-आदीनि-श्रवणादि क्रियाएँ; इन्द्रियाणि-इन्द्रियाँ; अन्ये–अन्य; संयम-नियंत्रण रखना; अग्निषु-यज्ञ की अग्नि में; जुह्वति–अर्पित करना; शब्द-आदीन्-ध्वनि कम्पन; विषयान्–इन्द्रिय…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 25

    दैवमेवापरे यज्ञं योगिनः पर्युपासते ।ब्रह्माग्नावपरे यज्ञं यज्ञेनैवोपजुह्वति ॥25॥ देवम् स्वर्ग के देवता; एव–वास्तव में; अपरे–अन्य; यज्ञम् यज्ञ; योगिनः-अध्यात्मिक साधक; पर्युपासते-पूजा…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 24

    ब्रह्मार्पणं ब्रह्म हविर्ब्रह्माग्नौ ब्रह्मणा हुतम्।ब्रह्मैव तेन गन्तव्यं ब्रह्मकर्मसमाधिना ॥24॥ब्रहम् ब्रह्म; अर्पणम् यज्ञ में आहुति डालना; ब्रहम् ब्रह्म; हविः-आहुती; ब्रह्म-ब्रह्म; अग्नौ-यज्ञ…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 23

    गतसङ्गस्य मुक्तस्य ज्ञानावस्थितचेतसः।यज्ञायाचरतः कर्म समग्रं प्रविलीयते ॥23॥ गत-सङ्गस्य–सांसारिक पदार्थों में आसक्ति से मुक्ति; मुक्तस्य–मुक्ति; ज्ञान-अवस्थित-दिव्य ज्ञान में स्थित; चेतसः-जिसकी बुद्धि…

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