Bhagavad Geeta

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 22

    यदृच्छालाभसंतुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः ।समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते ॥22॥ यदृच्छा-स्वयं के प्रयासों से प्राप्तः; लाभ-लाभ; सन्तुष्ट:-सन्तोष; द्वन्द्व-द्वन्द्व से; अतीत:-परे;…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 21

    निराशीर्यतचित्तात्मा त्यक्तसर्वपरिग्रहः ।शारीरं केवलं कर्म कुर्वन्नाप्नोति किल्बिषम् ॥21॥निराशी:-फल की कामना से रहित, यत-नियंत्रित; चित-आत्मा-मन और बुद्धि; त्यक्त-त्याग कर; सर्व-सबको; परिग्रहः-स्वामित्व…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 20

    त्यक्त्वा कर्मफलासर्फ नित्यतृप्तो निराश्रयः।कर्मण्यभिप्रवृत्तोऽपि नैव किञ्चित्करोति सः ॥20॥ त्यक्त्वा-त्याग कर; कर्मफल-आसड्.गम्-कमर्फल की आसक्ति; नित्य-सदा; तृप्तः-संतुष्ट; निराश्रयः-किसी पर निर्भर न होना;…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 19

    यस्य सर्वे समारम्भाः कामसङ्कल्पवर्जिताः।ज्ञानाग्निदग्धकर्माणं तमाहुः पण्डितं बुधाः ॥19॥ यस्य–जिसके; सर्वे प्रत्येक; समारम्भाः-प्रयास, काम-भौतिक सुख की इच्छा से; संकल्प-दृढनिश्चयः वर्जिताः-रहितं; ज्ञान-दिव्य…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 18

    कर्मण्यकर्म यः पश्येदकर्मणि च कर्म यः।स बुद्धिमान्मनुष्येषु स युक्तः कृत्स्नकर्मकृत् ॥18॥कर्मणि-कर्म; अकर्म-निष्क्रिय होना; यः-जो; पश्येत्-देखता है; अकर्मणि-अकर्म में; च-और; कर्म-कर्म;…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 17

    कर्मणो ह्यपि बोद्धव्यं बोद्धव्यं च विकर्मणः ।अकर्मणश्च बोद्धव्यं गहना कर्मणो गतिः ॥17॥ कर्मणः-अनुशंसित कर्म; हि-निश्चय ही; अपि भी; बोद्धव्यम्-जानना चाहिए;…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 16

    किं कर्म किमकर्मेति कवयोऽप्यत्र मोहिताः।तत्ते कर्म प्रवक्ष्यामि यज्ज्ञात्वा मोक्ष्यसेऽशुभात् ॥16॥किम्-क्या है; कर्म-कर्म किम्-क्या है; अकर्म अकर्म, इति इस प्रकार; कवयः-विद्धान…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 15

    एवं ज्ञात्वा कृतं कर्म पूर्वैरपि मुमुक्षुभिः।कुरु कर्मैव तस्मात्त्वं पूर्वैः पूर्वतरं कृतम्॥15॥एवम्-इस प्रकार; ज्ञात्वा-जानकर; कृतम्–सम्पादन करना; कर्म-कर्म; पूर्वेः प्राचीन काल का;…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 14

    न मां कर्माणि लिम्पन्ति न मे कर्मफले स्पृहा।इति मां योऽभिजानाति कर्मभिर्न स बध्यते ॥14॥ न-कभी नहीं; माम्-मुझको; कर्माणि-कर्म; लिम्पन्ति–दूषित करते…

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    भगवद गीता: अध्याय 4, श्लोक 13

    चातुर्वर्यं मया सृष्टं गुणकर्मविभागशः।तस्य कर्तारमपि मां विद्धयकर्तारमव्ययम् ॥13॥ चातुःवर्ण्यम्-वर्ण के अनुसार चार वर्ग; मया मेरे द्वारा; सृष्टम्-उत्पन्न हुए; गुण-गुण; कर्म-कर्म;…

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