दूरेण ह्यवरं कर्म बुद्धियोगाद्धनञ्जय।
बुद्धौ शरणमन्विच्छ कृपणाः फलहेतवः ॥49॥
दूरेण-दूर से त्यागना; हि-निश्चय ही; अवरम्-निष्कृष्ट; कर्म-कामनायुक्त कर्म; बुद्धि योगात्-दिव्य ज्ञान में स्थित बुद्धि के साथ; धनञ्जय-अर्जुन; बुद्धौ-दिव्य ज्ञान और अंतर्दृष्टि; शरणम्-शरण ग्रहण करना; अन्विच्छ शरण ग्रहण करो; कृपणा:-कंजूस; फल-हैतवः-कर्म का फल प्राप्त करने की इच्छा वाले।
Hindi translation: हे अर्जुन! दिव्य ज्ञान और अन्तर्दृष्टि की शरण ग्रहण करो, फलों की आसक्ति युक्त कर्मों से दूर रहो जो निश्चित रूप से दिव्य ज्ञान में स्थित बुद्धि के साथ निष्पादित किए गए कार्यों से निष्कृष्ट हैं। जो अपने कर्मफलों का भोग करना चाहते हैं, वे कृपण हैं।
कर्म और मनोवृत्ति: जीवन के दो आयाम
श्रीमद्भगवद्गीता में वर्णित कर्मयोग का सिद्धांत हमें जीवन जीने की एक अनूठी दृष्टि प्रदान करता है। यह हमें सिखाता है कि केवल कार्य करना ही महत्वपूर्ण नहीं है, बल्कि उस कार्य के पीछे की मनोवृत्ति भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। आइए इस विषय को विस्तार से समझें।
कर्म के दो पहलू
किसी भी कार्य को करने के दो मुख्य पहलू होते हैं:
- बाह्य गतिविधियाँ: वे क्रियाएँ जो हम बाहरी तौर पर करते हैं।
- आंतरिक मनोवृत्ति: हमारा आंतरिक दृष्टिकोण और भावना।
वृंदावन का उदाहरण
इस अवधारणा को समझने के लिए हम वृंदावन में बन रहे एक मंदिर का उदाहरण ले सकते हैं:
श्रमिकों की दृष्टि
- कार्य: मंदिर निर्माण
- मनोवृत्ति: आर्थिक लाभ
स्वयंसेवकों की दृष्टि
- कार्य: मंदिर निर्माण
- मनोवृत्ति: भगवान की सेवा
यहाँ हम देखते हैं कि एक ही कार्य दो अलग-अलग मनोवृत्तियों से किया जा रहा है।
श्रीकृष्ण का उपदेश
श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि कर्तव्य पालन में आंतरिक प्रेरणा का महत्व क्या है:
- स्वार्थी कर्म: जो लोग केवल अपने सुख के लिए कर्म करते हैं, वे अंततः दुःखी होते हैं।
- निःस्वार्थ कर्म: जो बिना फल की आसक्ति के समाज कल्याण हेतु कर्म करते हैं, वे श्रेष्ठ हैं।
- भक्तिपूर्ण कर्म: जो अपने कर्मों के फल भगवान को अर्पित करते हैं, वे सच्चे ज्ञानी हैं।
कृपण की परिभाषा
श्रीमद्भागवतम् में कृपण की दो परिभाषाएँ दी गई हैं:
- “कृपण वे हैं जो मानते हैं कि परम सत्य केवल भौतिक पदार्थों में है।”
- “कृपण वह है, जिसका इन्द्रियों पर नियंत्रण नहीं है।”
उच्च चेतना की ओर
जब व्यक्ति आध्यात्मिक उन्नति करता है, तो वह:
- कर्मफल की इच्छा त्यागता है
- समाज सेवा की भावना से कार्य करता है
आधुनिक उदाहरण
- बिल गेट्स
- पूर्व: माइक्रोसॉफ्ट के संस्थापक
- वर्तमान: समाज सेवा और जनकल्याण में संलग्न
- बिल क्लिंटन
- पूर्व: अमेरिका के राष्ट्रपति
- वर्तमान: मानवता की सेवा का प्रचार
सेवा की पूर्णता
सेवा भाव प्रशंसनीय है, लेकिन इसे और उच्च स्तर पर ले जाया जा सकता है:
- कर्म भगवान के सुख के लिए करना
- कर्मफल को भगवान को अर्पित करना
निष्कर्ष
हमारे जीवन में कर्म और मनोवृत्ति दोनों का महत्वपूर्ण स्थान है। केवल कर्म करना पर्याप्त नहीं है, बल्कि उस कर्म के पीछे की भावना और दृष्टिकोण भी उतना ही महत्वपूर्ण है। श्रीमद्भगवद्गीता हमें सिखाती है कि हम अपने कर्मों को निःस्वार्थ भाव से, समाज कल्याण के लिए और अंततः भगवान के प्रति समर्पण भाव से करें। यह दृष्टिकोण न केवल हमारे व्यक्तिगत विकास में सहायक होगा, बल्कि समाज और विश्व के कल्याण में भी योगदान देगा।
कर्म और मनोवृत्ति की तुलना
पहलू | स्वार्थी कर्म | निःस्वार्थ कर्म | भक्तिपूर्ण कर्म |
---|---|---|---|
उद्देश्य | व्यक्तिगत लाभ | समाज कल्याण | भगवान की प्रसन्नता |
फल की आसक्ति | उच्च | न्यून | शून्य |
आंतरिक संतुष्टि | कम | अधिक | पूर्ण |
आध्यात्मिक उन्नति | न्यूनतम | मध्यम | उच्चतम |
दीर्घकालिक प्रभाव | व्यक्तिगत | सामाजिक | सार्वभौमिक |
इस तालिका से स्पष्ट होता है कि जैसे-जैसे हम स्वार्थी कर्म से निःस्वार्थ और फिर भक्तिपूर्ण कर्म की ओर बढ़ते हैं, हमारी आंतरिक संतुष्टि, आध्यात्मिक उन्नति और समाज पर सकारात्मक प्रभाव बढ़ता जाता है।
आधुनिक जीवन में कर्मयोग का अनुप्रयोग
आज के व्यस्त और तनावपूर्ण जीवन में कर्मयोग के सिद्धांतों को अपनाना चुनौतीपूर्ण लग सकता है। लेकिन कुछ व्यावहारिक उपाय हैं जिनसे हम अपने दैनिक जीवन में इन सिद्धांतों को लागू कर सकते हैं:
- कार्य को सेवा समझें: अपने व्यवसाय या नौकरी को केवल पैसा कमाने का माध्यम न समझें, बल्कि इसे समाज की सेवा का अवसर मानें।
- फल की चिंता छोड़ें: अपने कर्तव्य पर ध्यान केंद्रित करें, न कि उसके परिणाम पर। यह आपको तनाव मुक्त रहने में मदद करेगा।
- ध्यान और आत्मचिंतन: नियमित रूप से ध्यान और आत्मचिंतन करें। यह आपको अपनी मनोवृत्ति को समझने और सुधारने में मदद करेगा।
- सेवा कार्य: अपने समय का कुछ हिस्सा स्वैच्छिक सेवा कार्यों में लगाएँ। यह आपको निःस्वार्थ भाव से कार्य करने का अभ्यास देगा।
- कृतज्ञता का अभ्यास: हर दिन उन चीजों के लिए कृतज्ञता व्यक्त करें जो आपके पास हैं। यह आपको संतोष की भावना देगा।
- ज्ञान का अर्जन: नियमित रूप से आध्यात्मिक ग्रंथों का अध्ययन करें। यह आपको जीवन के गहरे अर्थ को समझने में मदद करेगा।
चुनौतियाँ और समाधान
कर्मयोग के मार्ग पर चलते हुए कई चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है। कुछ प्रमुख चुनौतियाँ और उनके संभावित समाधान इस प्रकार हैं:
- अहंकार का प्रभाव
- चुनौती: सफलता मिलने पर अहंकार का बढ़ना
- समाधान: अपनी सफलता को ईश्वर की कृपा और दूसरों के सहयोग का परिणाम मानें
- फल की आसक्ति
- चुनौती: कर्म के फल की चिंता से मुक्त होना
- समाधान: ध्यान और आत्मचिंतन द्वारा अपने मन को नियंत्रित करने का अभ्यास करें
- निरंतरता बनाए रखना
- चुनौती: दैनिक जीवन की व्यस्तता में कर्मयोग के सिद्धांतों को लगातार अपनाना
- समाधान: छोटे-छोटे लक्ष्य निर्धारित करें और धीरे-धीरे आगे बढ़ें
- समाज का दबाव
- चुनौती: भौतिकवादी समाज में आध्यात्मिक मूल्यों पर चलना
- समाधान: समान विचारधारा वाले लोगों का संगठन बनाएँ और एक-दूसरे को प्रोत्साहित करें
- परिणामों की अनिश्चितता
- चुनौती: बिना परिणाम की गारंटी के निःस्वार्थ भाव से कार्य करना
- समाधान: विश्वास रखें कि सही कर्म करने से अंततः अच्छे परिणाम ही मिलेंगे
उपसंहार
कर्म और मनोवृत्ति जीवन के दो अभिन्न अंग हैं। श्रीमद्भगवद्गीता में वर्णित कर्मयोग का सिद्धांत हमें सिखाता है कि केवल कर्म करना ही पर्याप्त नहीं है, बल्कि उस कर्म के पीछे की मनोवृत्ति भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। जब हम अपने कर्मों को निःस्वार्थ भाव से, समाज कल्याण के लिए और अंततः भगवान के प्रति समर्पण भाव से करते हैं, तो हम न केवल अपने व्यक्तिगत विकास की ओर अग्रसर होते हैं, बल्कि समाज और विश्व के कल्याण में भी योगदान देते हैं।
आधुनिक युग में, जहाँ भौतिकवाद और व्यक्तिवाद का बोलबाला है, कर्मयोग के सिद्धांतों को अपनाना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। लेकिन यदि हम धैर्य और दृढ़ता के साथ इस मार्ग पर चलते हैं, तो हम न केवल अपने जीवन में संतुलन और शांति पा सकते हैं, बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं।
अंत में, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि कर्मयोग एक जीवन शैली है, एक लक्ष्य नहीं। यह एक ऐसा मार्ग है जो हमें निरंतर विकास और आत्म-सुधार की ओर ले जाता है। जैसे-जैसे हम इस मार्ग पर आगे बढ़ते हैं, हम पाते हैं कि हमारे कर्म और हमारी मनोवृत्ति एक-दूसरे के पूरक बन जाते हैं, जो हमें एक संतुलित, सार्थक और आनंदमय जीवन जीने में मदद करते हैं।