Site icon Sanatan Roots

भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 60

यततो ह्यपि कौन्तेय पुरूषस्य विपश्चितः।
इन्द्रियाणि प्रमाथीनि हरन्ति प्रसभं मनः ॥60॥


यततः-आत्म नियंत्रण का अभ्यास करते हुए; हि-के लिए; अपि-तथपि; कौन्तेय-कुन्तीपुत्र, अर्जुन पुरुषस्य-मनुष्य की; विपश्चितः-विवेक से युक्त; इन्द्रियाणि-इन्द्रियाँ, प्रमाथीन-अशांत; हरन्ति–वश मे करना; प्रसभम् बलपूर्वक; मनः-मन।

Hindi translation: हे कुन्ति पुत्र! इन्द्रियाँ इतनी प्रबल और अशान्त होती है कि वे विवेकशील और आत्म नियंत्रण का अभ्यास करने वाले मनुष्य के मन को भी अपने वश में कर लेती है।

इंद्रियों का नियंत्रण: आध्यात्मिक विकास का मूल

आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वालों के लिए इंद्रियों का नियंत्रण एक महत्वपूर्ण चुनौती है। यह लेख इस विषय पर गहराई से चर्चा करता है और एक प्राचीन कथा के माध्यम से इसके महत्व को समझाता है।

इंद्रियाँ: एक अनियंत्रित घोड़े की तरह

इंद्रियाँ उस अनियंत्रित जंगली घोड़े के समान हैं जिसकी नयी-नयी कमान कसी गयी हो। ये उतावली और अचेत होती हैं, इसलिए इन्हें अनुशासित करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण है। साधक को इस चुनौती का सामना अपने भीतर करना पड़ता है।

इंद्रियों की शक्ति

  1. वासना और लालसा से रंगी होती हैं
  2. आध्यात्मिक पथ पर बाधा बन सकती हैं
  3. महान योगियों को भी विचलित कर सकती हैं

सौभरि मुनि की कथा: एक शिक्षाप्रद उदाहरण

श्रीमद्भागवतम् में वर्णित सौभरि मुनि की कथा इंद्रियों के नियंत्रण के महत्व को दर्शाती है। यह कथा स्कन्ध-9, अध्याय-6, श्लोक-38 में मिलती है।

सौभरि मुनि का परिचय

तपस्या का अद्भुत उदाहरण

सौभरि का अपने शरीर पर इतना नियंत्रण था कि वे यमुना नदी के बीच में जल में डुबकी लगाकर जल के नीचे तपस्या करते थे।

इंद्रियों के वश में: सौभरि की कहानी

विचलन का क्षण

एक दिन उन्होंने दो मछलियों को मैथुन क्रिया करते हुए देख लिया। इस दृश्य ने उनके मन और इंद्रियों को हर लिया और उनमें संभोग करने की इच्छा जागृत हो गयी।

राजा मान्धाता से मिलन

योग शक्ति का प्रयोग

सौभरि ने अपनी योग शक्ति से स्वयं को एक सुंदर नवयुवक में बदल लिया। सभी पचास राजकुमारियों ने उन्हें पति के रूप में चुन लिया।

जीवन का नया अध्याय

पचास रूप, पचास महल

सौभरि ने अपनी योग शक्ति से:

  1. पचास रूप धारण किए
  2. पचास महल बनाए
  3. सभी पत्नियों के साथ अलग-अलग रहने लगे

परिणाम

विवरणसंख्या
पत्नियाँ50
वर्ष बीतेसहस्रों
संतानेंअनेक
नए नगर1

आत्मचिंतन और पश्चाताप

सौभरि का उद्गार

“अहो इमं पश्यत मे विनाशं” (श्रीमद्भागवतम् 9.6.50)

सीख

  1. लौकिक पदार्थों से सुख की अस्थायीता
  2. इंद्रिय भोगों से तृप्ति न होना
  3. आध्यात्मिक मार्ग से भटकने के परिणाम

निष्कर्ष: इंद्रियों के नियंत्रण का महत्व

सौभरि मुनि की कथा हमें सिखाती है कि आध्यात्मिक विकास के लिए इंद्रियों का नियंत्रण अत्यंत आवश्यक है। यह कहानी दर्शाती है कि कैसे एक महान तपस्वी भी इंद्रियों के वश में होकर अपने लक्ष्य से भटक सकता है।

आत्मनिरीक्षण के लिए प्रश्न

  1. क्या हम अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण रख पा रहे हैं?
  2. क्या हमारी इच्छाएँ हमें आध्यात्मिक मार्ग से भटका रही हैं?
  3. क्या हम लौकिक सुखों की अस्थायीता को समझ रहे हैं?

इस कथा से हमें यह सीख मिलती है कि आध्यात्मिक उन्नति के लिए इंद्रियों पर नियंत्रण रखना अत्यंत आवश्यक है। हमें सदैव सतर्क रहना चाहिए और अपने लक्ष्य से नहीं भटकना चाहिए। इंद्रियों के वश में होकर हम अपने जीवन के मूल उद्देश्य से दूर हो सकते हैं। अतः हमें सौभरि मुनि के अनुभव से सीख लेकर अपने जीवन में संयम और आत्मनियंत्रण का महत्व समझना चाहिए।

Exit mobile version