Bhagwat Geeta

भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 41

व्यवसायत्मिका बुद्धिरेकेह कुरुनन्दन।
बहुशाखा ह्यनन्ताश्च बुद्धयोऽव्यवसायिनाम् ॥41॥


व्यवसाय-आत्मिका-दृढ़ संकल्प; बुद्धि:-बुद्धि; एका-एकमात्र; इह-इस मार्ग पर; कुरु-नन्दन-कुरु वंशी; बहु-शाखा:-अनेक शाखा; हि-निश्चय ही; अनन्ताः-असीमित; च-भी; बुद्धयः-वुद्धि; अव्यवसायिनाम्-संकल्प रहित।

Hindi translation: हे कुरुवंशी! जो इस मार्ग का अनुसरण करते हैं, उनकी बुद्धि निश्चयात्मक होती है और उनका एकमात्र लक्ष्य होता है लेकिन जो मनुष्य संकल्पहीन होते हैं उनकी बुद्धि अनेक शाखाओं मे विभक्त रहती है।

आसक्ति और बुद्धि: मन के नियंत्रण का मार्ग

आसक्ति मानव मन की एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है, जो हमारे जीवन में अनेक रूपों में प्रकट होती है। यह एक ऐसी मानसिक क्रिया है, जो हमें किसी व्यक्ति, वस्तु या परिस्थिति से जोड़े रखती है। परंतु क्या यह आसक्ति हमारे लिए लाभदायक है? और क्या हम इस पर नियंत्रण कर सकते हैं? आइए इस विषय पर गहराई से विचार करें।

आसक्ति की प्रकृति

आसक्ति का अर्थ है मन का बार-बार किसी विषय की ओर आकर्षित होना। यह विषय कुछ भी हो सकता है:

  • कोई व्यक्ति
  • इंद्रियों के विषय (जैसे स्वादिष्ट भोजन या सुंदर दृश्य)
  • प्रतिष्ठा या सम्मान
  • शारीरिक सुख
  • विशेष परिस्थितियाँ

जब हमारा मन किसी विषय के बारे में बार-बार सोचता है, तो यह उस विषय में आसक्ति का संकेत है। यह आसक्ति कभी-कभी इतनी प्रबल हो जाती है कि हम अपने दैनिक कार्यों में भी ध्यान नहीं दे पाते।

बुद्धि की भूमिका

यहाँ एक महत्वपूर्ण प्रश्न उठता है: यदि आसक्ति मन की क्रिया है, तो बुद्धि की क्या भूमिका है? वास्तव में, बुद्धि मन के नियंत्रण में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।

अंतःकरण की संरचना

हमारे शरीर में एक सूक्ष्म अंतःकरण होता है, जिसे सामान्य भाषा में ‘हृदय’ कहा जाता है। यह तीन तत्वों से मिलकर बना है:

  1. मन
  2. बुद्धि
  3. अहंकार

इस संरचना में बुद्धि मन से श्रेष्ठ होती है। बुद्धि निर्णय लेने का कार्य करती है, जबकि मन इच्छाओं का जन्मदाता है।

बुद्धि का प्रभाव

बुद्धि के निर्णय मन की इच्छाओं को आकार देते हैं। उदाहरण के लिए:

  • यदि बुद्धि यह निर्णय लेती है कि धन ही सुख का स्रोत है, तो मन में धन प्राप्त करने की लालसा जन्म लेती है।
  • यदि बुद्धि प्रतिष्ठा को सर्वोच्च महत्व देती है, तो मन में ख्याति पाने की अभिलाषा उत्पन्न होती है।

इस प्रकार, मन में उत्पन्न होने वाली इच्छाएँ वास्तव में बुद्धि के बोध का परिणाम होती हैं।

दैनिक जीवन में बुद्धि का नियंत्रण

हम अपने दैनिक जीवन में बुद्धि के नियंत्रण को देख सकते हैं। निम्नलिखित तालिका इसे स्पष्ट करती है:

स्थानमन की प्रवृत्तिबुद्धि का निर्णयपरिणाम
घरआराम और सहजताअनौपचारिक व्यवहार उचित हैसहज व्यवहार
कार्यालयआराम की इच्छाऔपचारिक व्यवहार आवश्यक हैनियंत्रित, औपचारिक व्यवहार
अवकाशमनोरंजन की इच्छाकाम करना आवश्यक हैकार्य पर ध्यान केंद्रित

इस प्रकार, बुद्धि लगातार मन को नियंत्रित करती रहती है, भले ही मन की प्राकृतिक प्रवृत्ति कुछ और हो।

बुद्धियोग: आसक्ति से मुक्ति का मार्ग

बुद्धियोग एक ऐसा विज्ञान है जो मन को कर्म फलों से विरक्त रखने का मार्ग सिखाता है। इसके मुख्य सिद्धांत हैं:

  1. सभी कार्य ईश्वर के लिए किए जाते हैं।
  2. फल की चिंता किए बिना कर्तव्य पालन पर ध्यान केंद्रित करना।
  3. दृढ़ संकल्प और एकाग्रता का विकास।

बुद्धियोग के लाभ

  • मानसिक शांति और स्थिरता
  • कर्म में उत्कृष्टता
  • आध्यात्मिक उन्नति
  • जीवन के प्रति संतुलित दृष्टिकोण

निष्कर्ष

आसक्ति मन की एक स्वाभाविक प्रवृत्ति है, लेकिन बुद्धि के माध्यम से इसे नियंत्रित किया जा सकता है। बुद्धियोग जैसे आध्यात्मिक अभ्यास हमें इस नियंत्रण को और अधिक सशक्त बनाने में मदद करते हैं। अंततः, यह समझना महत्वपूर्ण है कि आसक्ति से मुक्ति का मार्ग बुद्धि के उचित प्रयोग और आत्मज्ञान के माध्यम से ही संभव है।

जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था, “मन की शांति के लिए यह आवश्यक है कि हम अपने विचारों पर नियंत्रण रखें।” यह नियंत्रण ही वह कुंजी है जो हमें आसक्ति के बंधन से मुक्त कर सकती है और हमें एक संतुलित, सार्थक जीवन की ओर ले जा सकती है।

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