Site icon Sanatan Roots

भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 30

&NewLine;<p><strong>देही नित्यमवध्योऽयं देहे सर्वस्य भारत ।<br>तस्मात्सर्वाणि भूतानि न त्वं शोचितुमर्हसि ॥30॥<&sol;strong><&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p><audio src&equals;"https&colon;&sol;&sol;www&period;holy-bhagavad-gita&period;org&sol;public&sol;audio&sol;002&lowbar;030&period;mp3"><&sol;audio>देही–शरीर में निवास करने वाली जीवात्मा&semi; नित्यम्-सदैव&semi; अवध्यः-अविनाशी&semi; अयम् यह आत्मा&semi; देहै-शरीर में&semi; सर्वस्य–प्रत्येक&semi; भारत-भरतवंशी&comma; अर्जुन&semi; तस्मात्-इसलिए&semi; सर्वाणि-समस्त&semi; भूतानि-जीवित प्राणी&semi; न-नहीं&semi; त्वम्-तुम&semi; शोचितुम्–शोक करना&semi; अर्हसि-चाहिए।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p><strong>Hindi translation&colon;<&sol;strong>&nbsp&semi;हे अर्जुन&excl; शरीर में निवास करने वाली आत्मा अविनाशी है इसलिए तुम्हें किसी प्राणी के लिए शोक नहीं करना चाहिए।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h1 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-भगव-न-श-र-क-ष-ण-क-उपद-श-आत-म-क-अमरत-और-शर-र-स-भ-न-नत">भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश&colon; आत्मा की अमरता और शरीर से भिन्नता<&sol;h1>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-प-रस-त-वन">प्रस्तावना<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>भगवान श्रीकृष्ण के उपदेश हिंदू धर्म और दर्शन के मूल में हैं। उनके विचार न केवल आध्यात्मिक जीवन के लिए मार्गदर्शक हैं&comma; बल्कि जीवन के हर पहलू में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं। इस ब्लॉग में&comma; हम श्रीकृष्ण के एक महत्वपूर्ण उपदेश पर ध्यान केंद्रित करेंगे &&num;8211&semi; आत्मा की अमरता और उसकी शरीर से भिन्नता।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-श-र-क-ष-ण-क-श-क-षण-श-ल">श्रीकृष्ण का शिक्षण शैली<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>श्रीकृष्ण के उपदेशों की एक विशिष्ट शैली है। वे अक्सर अपने विचारों को कई श्लोकों में विस्तार से समझाते हैं और फिर एक श्लोक में उन उपदेशों का सार प्रस्तुत करते हैं। यह शैली न केवल उनके शिष्यों को गहराई से समझने में मदद करती है&comma; बल्कि महत्वपूर्ण बिंदुओं को याद रखने में भी सहायक होती है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-श-र-क-ष-ण-क-उपद-श-क-महत-व">श्रीकृष्ण के उपदेशों का महत्व<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>श्रीकृष्ण के उपदेश केवल धार्मिक या आध्यात्मिक नहीं हैं। वे जीवन के हर पहलू को छूते हैं और मानव जीवन के मूलभूत प्रश्नों का समाधान प्रस्तुत करते हैं। उनके उपदेश व्यक्तिगत विकास&comma; सामाजिक सद्भाव&comma; और आध्यात्मिक उन्नति के लिए एक व्यापक मार्गदर्शिका प्रदान करते हैं।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-आत-म-क-अमरत">आत्मा की अमरता<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>श्रीकृष्ण के अनुसार&comma; आत्मा अमर है। यह जन्म और मृत्यु के चक्र से परे है। यह एक महत्वपूर्ण अवधारणा है जो हमारे अस्तित्व की प्रकृति को समझने में मदद करती है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-आत-म-क-अव-न-श-त">आत्मा की अविनाशिता<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>श्रीकृष्ण कहते हैं&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<pre class&equals;"wp-block-code"><code>नैनं छिन्दन्ति शस्त्राणि नैनं दहति पावकः।&NewLine;न चैनं क्लेदयन्त्यापो न शोषयति मारुतः॥<&sol;code><&sol;pre>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>अर्थात&comma; &&num;8220&semi;इस आत्मा को शस्त्र काट नहीं सकते&comma; आग जला नहीं सकती&comma; पानी गला नहीं सकता और वायु सुखा नहीं सकती।&&num;8221&semi;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>यह श्लोक आत्मा की अविनाशी प्रकृति को दर्शाता है। यह बताता है कि आत्मा भौतिक तत्वों से परे है और उनके प्रभाव से मुक्त है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-आत-म-क-स-थ-य-त-व">आत्मा का स्थायित्व<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>श्रीकृष्ण आगे कहते हैं&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<pre class&equals;"wp-block-code"><code>अजोऽनित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो&NewLine;न हन्यते हन्यमाने शरीरे॥<&sol;code><&sol;pre>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>इसका अर्थ है&comma; &&num;8220&semi;यह आत्मा जन्मरहित&comma; नित्य&comma; शाश्वत और पुरातन है। शरीर के नष्ट होने पर भी यह नष्ट नहीं होती।&&num;8221&semi;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>यह श्लोक आत्मा के स्थायी स्वभाव को रेखांकित करता है। यह दर्शाता है कि आत्मा समय और परिवर्तन से परे है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-शर-र-स-आत-म-क-भ-न-नत">शरीर से आत्मा की भिन्नता<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>श्रीकृष्ण के उपदेशों का एक महत्वपूर्ण पहलू यह है कि आत्मा शरीर से अलग है। यह अवधारणा हमारे अस्तित्व को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-शर-र-क-अस-थ-य-प-रक-त">शरीर की अस्थायी प्रकृति<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>श्रीकृष्ण कहते हैं&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<pre class&equals;"wp-block-code"><code>वासांसि जीर्णानि यथा विहाय&NewLine;नवानि गृह्णाति नरोऽपराणि।&NewLine;तथा शरीराणि विहाय जीर्णा-&NewLine;न्यन्यानि संयाति नवानि देही॥<&sol;code><&sol;pre>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>अर्थात&comma; &&num;8220&semi;जैसे मनुष्य पुराने वस्त्रों को त्यागकर नए वस्त्र धारण करता है&comma; वैसे ही आत्मा पुराने शरीरों को त्यागकर नए शरीर धारण करती है।&&num;8221&semi;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>यह श्लोक शरीर की अस्थायी प्रकृति और आत्मा की स्थायी प्रकृति के बीच के अंतर को स्पष्ट करता है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-आत-म-क-स-वत-त-रत">आत्मा की स्वतंत्रता<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>श्रीकृष्ण आगे कहते हैं&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<pre class&equals;"wp-block-code"><code>नैव किंचित्करोमीति&NewLine;युक्तो मन्येत तत्त्ववित्।&NewLine;पश्यञ्शृण्वन्स्पृशञ्जिघ्रन्न&NewLine;श्नन्गच्छन्स्वपञ्श्वसन्॥<&sol;code><&sol;pre>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>इसका अर्थ है&comma; &&num;8220&semi;जो तत्त्व को जानने वाला है&comma; वह समझता है कि वह कुछ भी नहीं करता है&comma; चाहे वह देख रहा हो&comma; सुन रहा हो&comma; स्पर्श कर रहा हो&comma; सूंघ रहा हो&comma; खा रहा हो&comma; चल रहा हो&comma; सो रहा हो या श्वास ले रहा हो।&&num;8221&semi;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>यह श्लोक आत्मा की स्वतंत्रता और शारीरिक क्रियाओं से उसकी अलगता को दर्शाता है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-आत-म-और-शर-र-क-स-ब-ध-क-महत-व">आत्मा और शरीर के संबंध का महत्व<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>श्रीकृष्ण के उपदेशों में आत्मा और शरीर के संबंध को समझना महत्वपूर्ण है। यह समझ हमारे दैनिक जीवन और आध्यात्मिक प्रगति दोनों को प्रभावित करती है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-द-न-क-ज-वन-पर-प-रभ-व">दैनिक जीवन पर प्रभाव<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>जब हम आत्मा की अमरता और शरीर से उसकी भिन्नता को समझते हैं&comma; तो यह हमारे दैनिक जीवन को कई तरह से प्रभावित करता है&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>भय से मुक्ति&colon; मृत्यु का भय कम हो जाता है।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>आत्मविश्वास&colon; हम अपनी आंतरिक शक्ति को पहचानते हैं।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>संतुलन&colon; भौतिक और आध्यात्मिक पहलुओं के बीच बेहतर संतुलन।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>करुणा&colon; दूसरों के प्रति अधिक समझ और करुणा।<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-आध-य-त-म-क-प-रगत">आध्यात्मिक प्रगति<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>आत्मा और शरीर के संबंध की समझ आध्यात्मिक प्रगति के लिए भी महत्वपूर्ण है&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>ध्यान&colon; गहन ध्यान की प्राप्ति।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>मोक्ष&colon; मुक्ति के मार्ग की स्पष्ट समझ।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>स्व-ज्ञान&colon; आत्म-साक्षात्कार की ओर प्रगति।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>निःस्वार्थ सेवा&colon; दूसरों की सेवा करने की प्रेरणा।<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-श-र-क-ष-ण-क-उपद-श-क-स-र">श्रीकृष्ण के उपदेशों का सार<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>श्रीकृष्ण अपने उपदेशों का सार एक श्लोक में प्रस्तुत करते हैं&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<pre class&equals;"wp-block-code"><code>अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः।&NewLine;अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत॥<&sol;code><&sol;pre>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>इसका अर्थ है&comma; &&num;8220&semi;शरीरधारी की ये देह नाशवान कही गई हैं&comma; किंतु शरीरी &lpar;आत्मा&rpar; अविनाशी और अप्रमेय है। इसलिए&comma; हे भारत&excl; तू युद्ध कर।&&num;8221&semi;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>यह श्लोक श्रीकृष्ण के उपदेशों का सार प्रस्तुत करता है। यह दर्शाता है कि&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>शरीर नाशवान है।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>आत्मा अविनाशी है।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>आत्मा अप्रमेय &lpar;मापने योग्य नहीं&rpar; है।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>इस ज्ञान के साथ&comma; हमें अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए।<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-उपद-श-क-व-य-वह-र-क-अन-प-रय-ग">उपदेशों का व्यावहारिक अनुप्रयोग<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>श्रीकृष्ण के उपदेशों को दैनिक जीवन में लागू करना महत्वपूर्ण है। यहां कुछ तरीके हैं जिनसे हम इन उपदेशों को अपने जीवन में उतार सकते हैं&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>आत्म-चिंतन&colon; नियमित रूप से आत्म-चिंतन करें।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>कर्म योग&colon; निःस्वार्थ भाव से कार्य करें।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>ध्यान&colon; नियमित ध्यान अभ्यास करें।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>अनासक्ति&colon; परिणामों से अनासक्त रहें।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>सेवा&colon; दूसरों की सेवा करें।<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-आत-म-च-तन-क-महत-व">आत्म-चिंतन का महत्व<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>आत्म-चिंतन श्रीकृष्ण के उपदेशों को समझने और उन्हें जीवन में उतारने का एक महत्वपूर्ण साधन है। यह हमें अपने विचारों&comma; भावनाओं और कार्यों पर गहराई से विचार करने का अवसर देता है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-कर-म-य-ग-क-अभ-य-स">कर्म योग का अभ्यास<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>कर्म योग &&num;8211&semi; निःस्वार्थ कर्म का मार्ग &&num;8211&semi; श्रीकृष्ण के उपदेशों का एक केंद्रीय तत्व है। यह हमें सिखाता है कि कैसे कर्म करते हुए भी आसक्ति से मुक्त रहा जा सकता है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-न-ष-कर-ष">निष्कर्ष<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>श्रीकृष्ण के उपदेश&comma; विशेष रूप से आत्मा की अमरता और शरीर से उसकी भिन्नता के संबंध में&comma; हमारे जीवन को गहराई से प्रभावित कर सकते हैं। ये उपदेश हमें जीवन और मृत्यु के बारे में एक नया दृष्टिकोण देते हैं&comma; हमारे भय और चिंताओं को कम करते हैं&comma; और हमें अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए प्रेरित करते हैं।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>इन उपदेशों को समझना और अपने जीवन में उतारना एक जीवनपर्यंत की यात्रा है। यह यात्रा चुनौतीपूर्ण हो सकती है&comma; लेकिन यह आत्म-ज्ञान&comma; शांति और आनंद की ओर ले जाती है। श्रीकृष्ण के शब्दों में&comma; यह ज्ञान हमें जीवन के संघर्षों का सामना करने और अपने कर्तव्यों का पालन करने की शक्ति देता है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<div class&equals;"wp-block-buttons is-content-justification-space-between is-layout-flex wp-container-core-buttons-is-layout-3d213aab wp-block-buttons-is-layout-flex">&NewLine;<div class&equals;"wp-block-button"><a class&equals;"wp-block-button&lowbar;&lowbar;link wp-element-button" href&equals;"https&colon;&sol;&sol;sanatanroots&period;com&sol;&percnt;e0&percnt;a4&percnt;ad&percnt;e0&percnt;a4&percnt;97&percnt;e0&percnt;a4&percnt;b5&percnt;e0&percnt;a4&percnt;a6-&percnt;e0&percnt;a4&percnt;97&percnt;e0&percnt;a5&percnt;80&percnt;e0&percnt;a4&percnt;a4&percnt;e0&percnt;a4&percnt;be-&percnt;e0&percnt;a4&percnt;85&percnt;e0&percnt;a4&percnt;a7&percnt;e0&percnt;a5&percnt;8d&percnt;e0&percnt;a4&percnt;af&percnt;e0&percnt;a4&percnt;be&percnt;e0&percnt;a4&percnt;af-2-&percnt;e0&percnt;a4&percnt;b6&percnt;e0&percnt;a5&percnt;8d&percnt;e0&percnt;a4&percnt;b2&percnt;e0&percnt;a5&percnt;8b&percnt;e0&percnt;a4&percnt;95-29&sol;">Previous <&sol;a><&sol;div>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<div class&equals;"wp-block-button"><a class&equals;"wp-block-button&lowbar;&lowbar;link wp-element-button" href&equals;"https&colon;&sol;&sol;sanatanroots&period;com&sol;&percnt;e0&percnt;a4&percnt;ad&percnt;e0&percnt;a4&percnt;97&percnt;e0&percnt;a4&percnt;b5&percnt;e0&percnt;a4&percnt;a6-&percnt;e0&percnt;a4&percnt;97&percnt;e0&percnt;a5&percnt;80&percnt;e0&percnt;a4&percnt;a4&percnt;e0&percnt;a4&percnt;be-&percnt;e0&percnt;a4&percnt;85&percnt;e0&percnt;a4&percnt;a7&percnt;e0&percnt;a5&percnt;8d&percnt;e0&percnt;a4&percnt;af&percnt;e0&percnt;a4&percnt;be&percnt;e0&percnt;a4&percnt;af-2-&percnt;e0&percnt;a4&percnt;b6&percnt;e0&percnt;a5&percnt;8d&percnt;e0&percnt;a4&percnt;b2&percnt;e0&percnt;a5&percnt;8b&percnt;e0&percnt;a4&percnt;95-31&sol;">Next<&sol;a><&sol;div>&NewLine;<&sol;div>&NewLine;

Exit mobile version