भगवद गीता: अध्याय 1, श्लोक 14

ततः श्वेतैर्हयैर्युक्ते महति स्यन्दने स्थितौ।
माधवः पाण्डवश्चैव दिव्यौ शङ्खौ प्रदध्मतुः॥14॥
ततः-तत्पश्चात; श्वेत-श्वेत; हयैः-अश्व से; युक्ते–युक्त; महति-भव्य; स्यन्दने रथ में; स्थितौ-आसीन; माधव:-कृष्ण-भाग्य की देवी लक्ष्मी के पति; पाण्डवः-पाण्डु पुत्र, अर्जुन ने; च-और; एव-निश्चय ही; दिव्यौ-दिव्य; शङ्खौ-शंख; प्रदध्मतुः-बजाये।
Hindi translation : तत्पश्चातपाण्डवोंकीसेनाकेबीचश्वेतअश्वोंद्वाराखींचेजानेवालेभव्यरथपरआसीनमाधवऔरअर्जुननेअपने-अपनेदिव्यशंखबजाये।
भगवद्गीता का महत्व और सार
प्रस्तावना
भगवद्गीता एक ऐसा ग्रन्थ है जिसने मानव जाति को जीवन का सही मार्ग दिखाया है। यह एक अद्भुत उपदेश है जो हमें अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। इसकी शिक्षाएं सभी धर्मों, जातियों और समुदायों के लिए उपयोगी हैं। भगवद्गीता को ‘गीता’ के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ है ‘गीत’ या ‘गान’। यह महाभारत के भीष्म पर्व के अंतर्गत आती है और इसमें 700 श्लोक हैं।
महाभारत युद्ध का प्रसंग
महाभारत युद्ध के समय, कुरुक्षेत्र के मैदान में दोनों पक्षों की सेनाएं युद्ध के लिए तैयार खड़ी थीं। एक ओर थे कौरव और दूसरी ओर पाण्डव। अर्जुन को जब देखा कि उसके रिश्तेदारों और गुरुओं के साथ युद्ध करना होगा, तो वह व्याकुल हो गया और युद्ध से विमुख हो गया।
भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को उपदेश
इस समय भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन का मार्गदर्शन किया और उन्हें गीता का उपदेश दिया। उन्होंने बताया कि जीवन का उद्देश्य केवल कर्तव्य पालन करना है और फल की इच्छा न करना। हमें अपने कर्मों के प्रति निष्ठावान रहना चाहिए और उसके परिणामों की चिंता न करनी चाहिए।
श्रीकृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि आत्मा अमर और अविनाशी है। शरीर ही नश्वर है, आत्मा कभी नहीं मरती। इसलिए हमें मृत्यु से नहीं डरना चाहिए। उन्होंने कहा कि जो व्यक्ति धर्म के लिए लड़ता है, उसकी मृत्यु भी पुण्य लाती है।
सांख्य योग और कर्म योग
भगवद्गीता में दो प्रमुख योग शिक्षाएं दी गई हैं – सांख्य योग और कर्म योग। सांख्य योग ज्ञान का मार्ग है जबकि कर्म योग कर्म का मार्ग है। सांख्य योग में बताया गया है कि हमें अपने मन और इंद्रियों पर नियंत्रण रखना चाहिए और उन्हें आत्मसंयम में रखना चाहिए। हमें अपनी सभी क्रियाओं और व्यवहारों में संतुलन बनाए रखना चाहिए।
कर्म योग में बताया गया है कि हमें अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन करना चाहिए और उनके परिणामों की इच्छा न करनी चाहिए। हमें नैतिक और धार्मिक आचरण करते हुए सभी प्राणियों के प्रति समभाव रखना चाहिए।
भक्ति योग और ज्ञान योग
दो अन्य महत्वपूर्ण योग भी भगवद्गीता में बताए गए हैं – भक्ति योग और ज्ञान योग। भक्ति योग में परमात्मा के प्रति अनन्य भक्ति और समर्पण की बात कही गई है। ज्ञान योग में बताया गया है कि हमें अपनी आत्मा और परमात्मा के बारे में ज्ञान प्राप्त करना चाहिए और उनके अभिन्न स्वरूप को समझना चाहिए।
गीता में त्रिगुणात्मक प्रकृति की भी व्याख्या की गई है। ये तीन गुण हैं – सत्व, रज और तम। सभी प्राणियों में इन तीनों गुणों का समावेश होता है और उनके व्यवहार और कर्म इन्हीं गुणों से प्रभावित होते हैं। हमें सातत्विक गुण को विकसित करना चाहिए और रज और तम से दूर रहना चाहिए।
गीता में आत्मसंयम, वैराग्य, तपस्या और समता की भी शिक्षा दी गई है। इन सभी बातों का पालन करके ही हम अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं और मोक्ष या मुक्ति प्राप्त कर सकते हैं।
अध्याय | विषय |
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1-6 | कर्म योग, सांख्य योग, ज्ञान योग |
7-12 | भक्ति योग, प्रकृति पुरुष विवेक |
13-18 | क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विवेक, पुरुषोत्तम योग |
समाहार
भगवद्गीता जीवन की सम्पूर्ण शिक्षा प्रदान करती है। यह हमें धर्म के पथ पर चलने और उच्च आध्यात्मिक स्तर को प्राप्त करने का मार्गदर्शन करती है। इसकी शिक्षाओं का पालन करके ही हम सुख, शांति और आनंद प्राप्त कर सकते हैं। आइए हम सभी इस महान ग्रंथ से प्रेरणा लें और अपने जीवन को समृद्ध बनाएं।
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