यद्यप्येते न पश्यन्ति लोभोपहतचेतसः।
कुलक्षयकृतं दोषं मित्रद्रोहे च पातकम् ॥38॥
कथं न ज्ञेयमस्माभिः पापादस्मानिवर्तितुम्।
कुलक्षयकृतं दोषं प्रपश्यद्भिर्जनार्दन ॥39॥
यदि-अपि यद्यपि; एते ये; न नहीं; पश्यन्ति–देखते हैं; लोभ-लालच; उपहत-अभिभूत; चेतसः-विचार वाले; कुल-क्षय कृतम्-अपने संबंधियों का वध करने में; दोषम्-दोष को मित्र-द्रोहे-मित्रों से विश्वासघात करने में; च-भी; पातकम्-पाप; कथम्-क्यों; न-नहीं; ज्ञेयम्-जानना चाहिए। अस्माभिः-हम; पापात्-पापों से; अस्मात्-इन; निवर्तितुम्-दूर रहना; कुल-क्षय-वंश का नाश; कृतम्-हो जाने पर; दोषम्-अपराध; प्रपश्यदिभः-जो देख सकता है; जनार्दन सभी जीवों के पालक, श्रीकृष्ण!
Hindi translation : यद्यपि लोभ से अभिभूत विचारधारा के कारण वे अपने स्वजनों के विनाश या प्रतिशोध के कारण और अपने मित्रों के साथ विश्वासघात करने में कोई दोष नही देखते हैं। तथापि हे जनार्दन! जब हमें स्पष्टतः अपने बंधु बान्धवों का वध करने में अपराध दिखाई देता है तब हम ऐसे पापमय कर्म से क्यों न दूर रहें?
अर्जुन: एक योद्धा का हृदय और मानवता
प्रस्तावना
महाभारत का महाकाव्य भारतीय संस्कृति और दर्शन का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। इस महाकाव्य में अनेक पात्र हैं, लेकिन अर्जुन का चरित्र विशेष रूप से प्रेरणादायक और बहुआयामी है। एक कुशल योद्धा होने के साथ-साथ, अर्जुन में गहरी मानवीय संवेदनाएँ भी थीं। आइए इस ब्लॉग में अर्जुन के चरित्र के विभिन्न पहलुओं को गहराई से समझें।
अर्जुन का परिचय
अर्जुन पांडवों में तीसरे थे और इंद्र देव के पुत्र थे। वे अपने धनुर्विद्या कौशल के लिए प्रसिद्ध थे और उन्हें ‘धनंजय’ के नाम से भी जाना जाता था। लेकिन उनकी वीरता के पीछे एक संवेदनशील हृदय था जो अनावश्यक हिंसा से परहेज करता था।
अर्जुन की विशेषताएँ
- कुशल धनुर्धर
- न्यायप्रिय
- संवेदनशील
- धर्मपरायण
- विवेकशील
महाभारत युद्ध और अर्जुन का द्वंद्व
गीता का उपदेश
महाभारत युद्ध के प्रारंभ में, अर्जुन ने अपने परिवार के सदस्यों और गुरुजनों के विरुद्ध लड़ने से इनकार कर दिया। यह क्षण भगवान कृष्ण द्वारा गीता के उपदेश का कारण बना। इस उपदेश ने न केवल अर्जुन को, बल्कि पूरी मानवता को जीवन के गहन रहस्यों से अवगत कराया।
युद्ध में अर्जुन की भूमिका
युद्ध के दौरान, अर्जुन ने अपने कर्तव्य का पालन किया, लेकिन हमेशा न्याय और धर्म के मार्ग पर चलते हुए। उन्होंने अपने प्रतिद्वंद्वियों का सम्मान किया और केवल आवश्यक होने पर ही हिंसा का सहारा लिया।
युद्ध के बाद: अश्वत्थामा प्रकरण
घटना का विवरण
महाभारत युद्ध के अंत में एक ऐसी घटना घटी जिसने अर्जुन के चरित्र के मानवीय पक्ष को उजागर किया। गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र अश्वत्थामा ने प्रतिशोध की भावना से पांडवों के शिविर में घुसकर द्रौपदी के पाँचों पुत्रों की हत्या कर दी।
अर्जुन का दुविधा
जब अर्जुन ने अश्वत्थामा को पकड़ लिया, तो वह एक कठिन परिस्थिति में फँस गए। एक ओर, उनके भतीजों की निर्मम हत्या का बदला लेने की इच्छा थी, दूसरी ओर, अश्वत्थामा उनके गुरु का पुत्र था।
द्रौपदी की क्षमाशीलता
इस घटना में द्रौपदी की भूमिका उल्लेखनीय थी। अपने पुत्रों की मृत्यु के बावजूद, उन्होंने अश्वत्थामा को क्षमा करने की अपील की, क्योंकि वह उनके गुरु का पुत्र था।
श्रीकृष्ण का मार्गदर्शन
इस जटिल परिस्थिति में, अर्जुन ने श्रीकृष्ण से मार्गदर्शन माँगा। कृष्ण ने कहा:
“यदि आदरणीय श्रेष्ठ ब्राह्मण अस्थायी रूप से धर्म पथ से च्युत हो जाता है तब भी वह क्षमा योग्य है किन्तु जो मनुष्य घातक हथियार से किसी की हत्या करता है तब उसे अवश्य दण्ड देना चाहिए।”
अर्जुन का निर्णय
कृष्ण के संकेत को समझकर, अर्जुन ने एक मध्यम मार्ग अपनाया। उन्होंने अश्वत्थामा को मारने की बजाय उसकी चोटी काट दी और उसके मस्तक से मणि निकाल ली। यह दंड था, लेकिन प्राणघातक नहीं।
अर्जुन के चरित्र का विश्लेषण
योद्धा और मानव
अर्जुन एक महान योद्धा थे, लेकिन उनमें मानवीय संवेदनाएँ भी थीं। वे हमेशा यथासंभव हिंसा से बचने का प्रयास करते थे।
न्याय और करुणा का संतुलन
अश्वत्थामा प्रकरण में अर्जुन ने न्याय और करुणा के बीच एक संतुलन बनाया। उन्होंने अपराधी को दंडित किया, लेकिन उसे जीवन का अवसर भी दिया।
धर्म का पालन
अर्जुन हमेशा धर्म के मार्ग पर चलने का प्रयास करते थे। उन्होंने अपने कर्तव्य का पालन किया, लेकिन कभी भी अधर्म का सहारा नहीं लिया।
अर्जुन से सीख
संतुलित निर्णय
अर्जुन हमें सिखाते हैं कि जीवन में कठिन परिस्थितियों में भी संतुलित निर्णय लेना महत्वपूर्ण है।
मानवता का महत्व
युद्ध जैसी विकट परिस्थितियों में भी मानवता को नहीं भूलना चाहिए। अर्जुन ने हमेशा अपनी मानवीय संवेदनाओं को जीवित रखा।
गुरु का सम्मान
अश्वत्थामा प्रकरण में अर्जुन ने अपने गुरु के प्रति सम्मान दिखाया, भले ही उनका पुत्र अपराधी था।
निष्कर्ष
अर्जुन का चरित्र हमें सिखाता है कि एक व्यक्ति महान योद्धा होने के साथ-साथ संवेदनशील और न्यायप्रिय भी हो सकता है। उनका जीवन हमें बताता है कि कठिन परिस्थितियों में भी धैर्य, विवेक और मानवता का त्याग नहीं करना चाहिए।
अर्जुन के गुणों का सारांश
गुण | विवरण | उदाहरण |
---|---|---|
वीरता | अद्वितीय योद्धा कौशल | महाभारत युद्ध में अनेक वीरों को पराजित किया |
न्यायप्रियता | हमेशा न्याय के पक्ष में खड़े रहे | अश्वत्थामा को उचित दंड दिया |
संवेदनशीलता | मानवीय भावनाओं से युक्त | युद्ध के प्रारंभ में अपने परिजनों के विरुद्ध लड़ने में संकोच |
धर्मपरायणता | हमेशा धर्म के मार्ग पर चलने का प्रयास | गीता के उपदेश को आत्मसात किया |
विवेकशीलता | परिस्थितियों के अनुसार उचित निर्णय | अश्वत्थामा प्रकरण में मध्यम मार्ग अपनाया |
अर्जुन का जीवन हमें सिखाता है कि कैसे एक व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करते हुए भी अपनी मानवीय संवेदनाओं को जीवित रख सकता है। उनका चरित्र हमें प्रेरणा देता है कि हम अपने जीवन में संतुलन, न्याय और करुणा का महत्व समझें और उसे अपनाएँ।