Bhagwat Geeta

भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 18

अन्तवन्त इमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः।
अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्युध्यस्व भारत॥18॥

अन्तवन्त–नष्ट होने वाला; इमे-ये; देहाः-भौतिक शरीर; नित्यस्य-शाश्वत; उक्ताः-कहा गया है; शरीरिणः-देहधारी आत्मा का; अनाशिन:-अविनाशी; अप्रमेयस्य–अपरिमेय अर्थात जिसे मापा जा सका; तस्मात्-इसलिए; युध्यस्व युद्ध करो; भारत-भरतवंशी अर्जुन।

Hindi translation : केवल भौतिक शरीर ही नश्वर है और शरीर में व्याप्त आत्मा अविनाशी, अपरिमेय तथा शाश्वत है। अतः हे भरतवंशी! युद्ध करो।

मिट्टी से मानव: जीवन का अद्भुत चक्र

प्रस्तावना

मानव शरीर और प्रकृति के बीच एक गहरा संबंध है जो हमें जीवन के मूल तत्वों से जोड़ता है। यह ब्लॉग इस रहस्यमय संबंध की खोज करता है, जिसमें हम देखेंगे कि कैसे हमारा शरीर मिट्टी से जुड़ा है और कैसे यह जीवन चक्र में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

शरीर और मिट्टी: एक अटूट रिश्ता

मिट्टी से पोषण तक

मानव शरीर और मिट्टी के बीच का संबंध गहरा और जटिल है। यह एक ऐसा चक्र है जो निरंतर चलता रहता है:

  1. मिट्टी का रूपांतरण: पृथ्वी की उपजाऊ मिट्टी विभिन्न पोषक तत्वों से भरपूर होती है। यह मिट्टी फसलों, फलों, सब्जियों और अन्य पौधों को पोषण देती है।
  2. पौधों से पोषण: ये पौधे मिट्टी से पोषक तत्व लेकर अपना विकास करते हैं। इस प्रक्रिया में वे मिट्टी के तत्वों को अपने में समाहित करते हैं।
  3. मानव आहार: हम इन पौधों और उनके उत्पादों का सेवन करते हैं। इस तरह, मिट्टी के तत्व अप्रत्यक्ष रूप से हमारे शरीर में प्रवेश करते हैं।
  4. पशु उत्पाद: कुछ जानवर, जैसे गाय, घास और अन्य पौधों का सेवन करते हैं। जब हम उनके दूध या मांस का सेवन करते हैं, तो हम फिर से मिट्टी के तत्वों को ग्रहण करते हैं।

शरीर का निर्माण

हमारा शरीर उन पोषक तत्वों से बनता है जो हम अपने भोजन से प्राप्त करते हैं। ये पोषक तत्व मूल रूप से मिट्टी से आते हैं। इस प्रकार, यह कहना उचित होगा कि हमारा शरीर अप्रत्यक्ष रूप से मिट्टी से ही बना है।

मृत्यु और पुनर्जन्म का चक्र

अंत्येष्टि के तरीके

जब मृत्यु होती है, तो शरीर की अंत्येष्टि विभिन्न तरीकों से की जा सकती है। प्रमुख तरीके हैं:

  1. अग्नि संस्कार (भस्म): शरीर को जलाकर राख में परिवर्तित किया जाता है।
  2. दफनाना (कृमि): शरीर को मिट्टी में दफनाया जाता है, जहाँ यह धीरे-धीरे विघटित होता है।
  3. जल प्रवाह (विद्): शरीर को जल में प्रवाहित किया जाता है।

प्रकृति में वापसी

प्रत्येक अंत्येष्टि पद्धति में, शरीर अंततः प्रकृति में वापस लौट जाता है:

  • अग्नि संस्कार: राख मिट्टी में मिल जाती है और पौधों को पोषण देती है।
  • दफनाना: शरीर मिट्टी में विघटित होकर उसका हिस्सा बन जाता है।
  • जल प्रवाह: शरीर जलीय जीवों का भोजन बनता है या समुद्र के तल की मिट्टी में मिल जाता है।

आध्यात्मिक परिप्रेक्ष्य

बाइबिल का दृष्टिकोण

बाइबिल में एक प्रसिद्ध उक्ति है:

“क्योंकि तुम मिट्टी से उत्पन्न हुए हो इसलिए मिट्टी में मिल जाओगे।” (जेनेसिस 3:19)

यह वाक्य मानव शरीर की नश्वरता और प्रकृति से उसके गहरे संबंध को दर्शाता है।

भारतीय दर्शन का दृष्टिकोण

भगवद्गीता में, श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि शरीर नश्वर है, लेकिन आत्मा अमर है:

  • शरीर भौतिक है और मिट्टी से बना है।
  • आत्मा दिव्य और सनातन है, जो मिट्टी से परे है।

जीवन चक्र: एक तालिका

चरणप्रक्रियापरिणाम
1. मिट्टीपोषक तत्वों से भरपूरपौधों का पोषण
2. पौधेमिट्टी से पोषण लेनाखाद्य पदार्थों का निर्माण
3. भोजनमानव द्वारा सेवनशरीर का निर्माण और पोषण
4. मृत्युशरीर का विघटनमिट्टी में वापसी

निष्कर्ष

मानव शरीर और मिट्टी का संबंध एक अद्भुत चक्र है जो जीवन और मृत्यु को एक साथ जोड़ता है। यह चक्र हमें याद दिलाता है कि हम प्रकृति का एक अभिन्न अंग हैं। हमारा शरीर मिट्टी से आता है और अंततः मिट्टी में ही लौट जाता है, लेकिन हमारी आत्मा इस भौतिक चक्र से परे है।

यह समझ हमें प्रकृति के प्रति सम्मान और कृतज्ञता का भाव सिखाती है। यह हमें याद दिलाती है कि हम सभी एक बड़े पारिस्थितिक तंत्र का हिस्सा हैं, जहाँ प्रत्येक तत्व महत्वपूर्ण है। इस ज्ञान के साथ, हम अपने जीवन को अधिक सार्थक और संतुलित तरीके से जी सकते हैं, प्रकृति के साथ सामंजस्य में रहते हुए।

अंत में, यह चक्र हमें जीवन की क्षणभंगुरता का एहसास कराता है। यह हमें प्रेरित करता है कि हम अपने जीवन का हर क्षण मूल्यवान समझें और दूसरों के साथ-साथ प्रकृति के प्रति भी दयालु और संवेदनशील रहें। क्योंकि अंततः, हम सभी इसी महान चक्र का हिस्सा हैं – मिट्टी से मानव और फिर मिट्टी में वापस।

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