न जायते म्रियते वा कदाचि
नायं भूत्वा भविता वा न भूयः।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो
न हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥20॥
Hindi translation : आत्मा का न तो कभी जन्म होता है न ही मृत्यु होती है और न ही आत्मा किसी काल में जन्म लेती है और न ही कभी मृत्यु को प्राप्त होती है। आत्मा अजन्मा, शाश्वत, अविनाशी और चिरनूतन है। शरीर का विनाश होने पर भी इसका विनाश नहीं होता।
आत्मा की शाश्वतता: सनातन दर्शन का मूल सिद्धांत
आत्मा की अमरता और शाश्वतता भारतीय दर्शन का एक केंद्रीय विषय है। यह विचार न केवल हिंदू धर्म में, बल्कि अन्य भारतीय दर्शनों में भी गहराई से जड़ा हुआ है। इस ब्लॉग में हम आत्मा की शाश्वतता के विभिन्न पहलुओं पर चर्चा करेंगे और यह समझने का प्रयास करेंगे कि यह सिद्धांत हमारे जीवन और मृत्यु के दृष्टिकोण को कैसे प्रभावित करता है।
आत्मा का स्वरूप: छः अवस्थाएँ
आत्मा के स्वरूप को समझने के लिए, इसे छः श्रेणियों में विभाजित किया गया है:
- अस्ति (अस्तित्व)
- जायते (जन्म)
- वर्धते (विकास)
- विपरिणामते (परिवर्तन)
- अपक्षीयते (क्षय)
- विनिश्यति (विनाश)
यह महत्वपूर्ण है समझना कि ये अवस्थाएँ शरीर से संबंधित हैं, न कि आत्मा से। आत्मा इन सभी परिवर्तनों से परे है।
शरीर और आत्मा का संबंध
शरीर नश्वर है और इन छः अवस्थाओं से गुजरता है, जबकि आत्मा अपरिवर्तनशील रहती है। यह एक महत्वपूर्ण अंतर है जो हमें जीवन और मृत्यु के बारे में गहराई से सोचने के लिए प्रेरित करता है।
वेदों और उपनिषदों में आत्मा की शाश्वतता
भारतीय दर्शन के प्राचीन ग्रंथों में आत्मा की शाश्वतता का विचार बार-बार दोहराया गया है। आइए कुछ प्रमुख उदाहरणों पर नज़र डालें:
कठोपनिषद् का संदेश
कठोपनिषद् में एक प्रसिद्ध श्लोक है जो आत्मा की अमरता का वर्णन करता है:
न जायते म्रियते वा विपश्चिन्नायं कुतश्चिन्न बभूव कश्चित्।
अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणो न हन्यते हन्यमाने शरीरे।।
(कठोपनिषद्-1.2.18)
इसका अर्थ है:
“आत्मा का न तो जन्म होता है और न ही यह मरती है, न ही किसी से यह प्रकट होती है, न ही इससे कोई प्रकट होता है। यह अजन्मा, अविनाशी और चिरनूतन है। शरीर का विनाश हो जाने पर भी यह अविनाशी है।”
बृहदारण्यकोपनिषद् का दृष्टिकोण
बृहदारण्यकोपनिषद् में भी आत्मा की अमरता का वर्णन मिलता है:
स वा एष महानज आत्माजरोऽमरोऽमृतोऽभयो (बृहदारण्यकोपनिषद्-4.4.25)
इसका अर्थ है:
“आत्मा आनंदमय, अजन्मा, अविनाशी, वृद्धावस्था से मुक्त, अमर और भय मुक्त है।”
आत्मा की शाश्वतता का दार्शनिक महत्व
आत्मा की शाश्वतता का सिद्धांत केवल एक धार्मिक विश्वास नहीं है, बल्कि इसका गहरा दार्शनिक महत्व भी है। यह हमें जीवन और मृत्यु के बारे में एक नया दृष्टिकोण प्रदान करता है।
जीवन का अर्थ
इस सिद्धांत के अनुसार, हमारा वर्तमान जीवन हमारी आत्मा की यात्रा का केवल एक हिस्सा है। यह हमें अपने कर्मों और विकल्पों के बारे में अधिक जागरूक होने के लिए प्रेरित करता है।
मृत्यु का भय
आत्मा की अमरता का विचार मृत्यु के भय को कम करने में मदद करता है। यह हमें सिखाता है कि मृत्यु केवल एक परिवर्तन है, न कि अंत।
नैतिक जीवन
यह सिद्धांत हमें एक नैतिक और धार्मिक जीवन जीने के लिए प्रोत्साहित करता है, क्योंकि हमारे कर्म हमारी आत्मा की यात्रा को प्रभावित करते हैं।
आधुनिक संदर्भ में आत्मा की शाश्वतता
आज के वैज्ञानिक युग में, आत्मा की शाश्वतता का विचार कई लोगों को चुनौतीपूर्ण लग सकता है। फिर भी, यह सिद्धांत अभी भी प्रासंगिक है और कई लोगों के जीवन को प्रभावित करता है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण
कुछ वैज्ञानिक अध्ययन चेतना और मस्तिष्क के संबंध पर प्रकाश डाल रहे हैं, जो आत्मा के विचार से संबंधित हो सकते हैं।
मनोवैज्ञानिक प्रभाव
आत्मा की शाश्वतता में विश्वास कई लोगों को मानसिक शांति और सुरक्षा की भावना प्रदान करता है।
सांस्कृतिक महत्व
यह सिद्धांत भारतीय संस्कृति और परंपराओं का एक अभिन्न अंग है और लोगों के दैनिक जीवन को प्रभावित करता है।
निष्कर्ष
आत्मा की शाश्वतता का सिद्धांत भारतीय दर्शन का एक मौलिक तत्व है। यह हमें जीवन और मृत्यु के बारे में गहराई से सोचने के लिए प्रेरित करता है। चाहे हम इस सिद्धांत को पूरी तरह से स्वीकार करें या नहीं, यह निश्चित रूप से हमारे जीवन दर्शन और नैतिक मूल्यों को प्रभावित कर सकता है।
इस विषय पर चिंतन करना हमें अपने अस्तित्व के गहरे अर्थ को समझने में मदद कर सकता है। यह हमें याद दिलाता है कि हम केवल भौतिक शरीर नहीं हैं, बल्कि कुछ ऐसा हैं जो समय और स्थान से परे है। इस प्रकार, आत्मा की शाश्वतता का सिद्धांत न केवल एक धार्मिक विश्वास है, बल्कि एक जीवन दर्शन भी है जो हमें अपने दैनिक जीवन में गहराई और अर्थ लाने में मदद कर सकता है।