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भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 27

जातस्य हि ध्रुवो मृत्युर्बुवं जन्म मृतस्य च।
तस्मादपरिहार्येऽर्थे न त्वं शोचितुमर्हसि ॥27॥


जातस्य-वह जो जन्म लेता है; हि-के लिए; ध्रुवः-निश्चय ही; मृत्युः-मृत्युः ध्रुवम् निश्चित है; जन्म-जन्म; मृतस्य-मृत प्राणी का; च-भी; तस्मात्-इसलिए; अपरिहार्य-अर्थे-अपरिहार्य स्थिति मे; न-नहीं; त्वम्-तुम; शोचितुम्–शोक करना; अर्हसि उचित।

Hindi translation: जो जन्म लेता है उसकी मृत्यु निश्चित है और मृत्यु के पश्चात पुनर्जन्म भी अवश्यंभावी है। अतः तुम्हें अपरिहार्य के लिए शोक नहीं करना चाहिए।

मृत्यु: जीवन का अटल सत्य

जीवन और मृत्यु का संबंध अनादि काल से रहा है। मनुष्य की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि वह मृत्यु के अटल सत्य को जानते हुए भी उससे भयभीत रहता है। आइए इस विषय पर गहराई से विचार करें।

मृत्यु का दर्शन

मृत्यु की अनिवार्यता

जैसा कि अंग्रेजी में कहा जाता है – “As sure as death” (मृत्यु की तरह निश्चित), मृत्यु जीवन का एक अपरिहार्य अंग है। बेंजामिन फ्रैंकलिन के शब्दों में:

“इस दुनिया में केवल दो चीजें निश्चित हैं – मृत्यु और कर।”

यह कथन स्पष्ट करता है कि मृत्यु से कोई नहीं बच सकता। यह एक ऐसा सत्य है जिसे हर व्यक्ति को स्वीकार करना पड़ता है।

मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, मृत्यु का भय मानव मन में गहराई से जड़ें जमाए हुए है। यह भय इतना प्रबल होता है कि कई लोग इसके बारे में सोचने से भी कतराते हैं। लेकिन क्या यह उचित है?

योग दर्शन का परिप्रेक्ष्य

पतंजलि के योगदर्शन में ‘अभिनिवेश’ की अवधारणा का उल्लेख मिलता है। यह जीवित रहने की स्वाभाविक इच्छा को दर्शाता है। हालांकि, योग दर्शन यह भी सिखाता है कि इस इच्छा पर नियंत्रण पाना आवश्यक है।

महाभारत से एक प्रासंगिक कथा

महाभारत में एक रोचक प्रसंग है जो मृत्यु के सत्य को समझने में हमारी मदद करता है।

कथा का सार

युधिष्ठिर का ज्ञान

युधिष्ठिर ने यक्ष के एक महत्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर इस प्रकार दिया:

अहन्यहनि भूतानि गच्छन्तीह यमालयम्।
शेषाः स्थिरत्वम् इच्छन्ति किमाश्चर्यमतः परम् ।।

अर्थात्:
“प्रतिदिन प्राणी मृत्यु को प्राप्त होते हैं, फिर भी शेष लोग अमरत्व की कामना करते हैं। इससे बड़ा आश्चर्य और क्या हो सकता है?”

मृत्यु का सामना करने के तरीके

  1. स्वीकृति: मृत्यु को जीवन का अभिन्न अंग मानें
  2. जीवन का उत्सव: प्रत्येक क्षण को महत्व दें
  3. आध्यात्मिक दृष्टिकोण: आत्मा की अमरता पर विश्वास
  4. कर्म पर ध्यान: अच्छे कर्मों द्वारा जीवन को सार्थक बनाएं

निष्कर्ष

मृत्यु एक ऐसा सत्य है जिससे कोई इनकार नहीं कर सकता। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि हम जीवन का आनंद न लें। बल्कि, मृत्यु की अनिवार्यता को समझकर हमें और अधिक सार्थक जीवन जीने का प्रयास करना चाहिए।

जैसा कि महात्मा गांधी ने कहा था:

“ऐसे जियो जैसे कल मरना है, ऐसे सीखो जैसे हमेशा जीना है।”

यह वाक्य हमें याद दिलाता है कि मृत्यु की चिंता किए बिना, हमें अपने वर्तमान को पूरी तरह से जीना चाहिए और निरंतर सीखते रहना चाहिए।

मृत्यु और जीवन का संतुलन

मृत्यु का भयजीवन का उत्सव
निराशाआशा
अवसादउत्साह
स्थिरताप्रगति
संकोचविस्तार

इस तालिका से स्पष्ट है कि मृत्यु के भय में जीने के बजाय, जीवन का उत्सव मनाना अधिक लाभदायक है।

अंतिम विचार

मृत्यु का सत्य हमें सिखाता है कि जीवन अमूल्य है। प्रत्येक क्षण को महत्व देना, अपने प्रियजनों के साथ समय बिताना, और अपने लक्ष्यों को पूरा करने का प्रयास करना – यही जीवन का सार है। मृत्यु की अनिवार्यता हमें याद दिलाती है कि हमारे पास समय सीमित है, इसलिए इसका सदुपयोग करना चाहिए।

जीवन और मृत्यु एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। एक के बिना दूसरे का अस्तित्व संभव नहीं। इसलिए, मृत्यु से डरने के बजाय, हमें इसे जीवन का एक स्वाभाविक अंग मानकर स्वीकार करना चाहिए और अपने जीवन को अर्थपूर्ण बनाने का प्रयास करना चाहिए।

अंत में, यह समझना महत्वपूर्ण है कि मृत्यु केवल शारीरिक अंत है। हमारे कर्म, विचार और प्रेम हमेशा जीवित रहते हैं। इसलिए, ऐसा जीवन जीएं जो दूसरों के लिए प्रेरणा बने और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक सकारात्मक विरासत छोड़ जाए।

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