Bhagwat Geeta

भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 47

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि ॥47॥

कर्मणि-निर्धारित कर्मः एव केवल; अधिकारः-अधिकार; ते तुम्हारा; मा-नहीं; फलेषु कर्मफल मे; कदाचन-किसी भी समय; मा कभी नहीं; कर्म-फल-कर्म के परिणामस्वरूप फल; हेतुः-कारण; भू:-होना; मा-नहीं; ते तुम्हारी; सङ्गः-आसक्ति; अस्तु-हो; अकर्मणि-अकर्मा रहने में।

Hindi translation: तुम्हें अपने निश्चित कर्मों का पालन करने का अधिकार है लेकिन तुम अपने कर्मों का फल प्राप्त करने के अधिकारी नहीं हो, तुम स्वयं को अपने कर्मों के फलों का कारण मत मानो और न ही अकर्मा रहने में आसक्ति रखो।

कर्मयोग: जीवन जीने की कला

भगवद्गीता में वर्णित कर्मयोग का सिद्धांत हमारे दैनिक जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह हमें सिखाता है कि कैसे कर्म करते हुए भी निर्लिप्त रहा जा सकता है। आइए इस गहन विषय को विस्तार से समझें।

कर्मयोग का मूल मंत्र

भगवद्गीता का एक प्रसिद्ध श्लोक कर्मयोग का सार इस प्रकार बताता है:

कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।
मा कर्मफलहेतुर्भूर्मा ते सङ्गोऽस्त्वकर्मणि॥

इसका अर्थ है – तुम्हारा अधिकार केवल कर्म करने में है, फल में नहीं। कर्मफल के हेतु मत बनो और न ही अकर्म में आसक्त होओ।

कर्मयोग के चार स्तंभ

  1. कर्म करो, फल की चिंता नहीं
  2. कर्मफल तुम्हारे लिए नहीं
  3. कर्ता होने का अहंकार त्यागो
  4. निष्क्रियता में आसक्त न हो

कर्म करो, फल की चिंता नहीं

हमारा कर्तव्य है कि हम अपना कर्म पूरी निष्ठा से करें। परंतु उसके परिणाम की चिंता करना व्यर्थ है। क्यों?

  • परिणाम कई कारकों पर निर्भर करता है
  • चिंता से ध्यान भटकता है
  • वर्तमान पर फोकस करने से बेहतर परिणाम मिलते हैं

NATO सिद्धांत

Not Attached To Outcome (NATO) या परिणाम से अनासक्त रहने का सिद्धांत कर्मयोग का एक आधुनिक रूप है। इसे गोल्फ खेल के उदाहरण से समझा जा सकता है:

  • खिलाड़ी स्कोर की चिंता छोड़कर केवल शॉट पर ध्यान देता है
  • इससे खेल का आनंद बढ़ता है
  • प्रदर्शन में सुधार होता है

कर्मफल तुम्हारे लिए नहीं

हम अक्सर सोचते हैं कि हमारे कर्मों का फल हमारे लिए है। लेकिन कर्मयोग हमें सिखाता है:

  • हम ईश्वर के अंश हैं
  • हमारा कर्तव्य ईश्वर की सेवा करना है
  • कर्मफल ईश्वर के लिए है, न कि हमारे लिए

सांसारिक बोध बनाम आध्यात्मिक चेतना

सांसारिक बोधआध्यात्मिक चेतना
मैं स्वामी हूँईश्वर स्वामी है
सब कुछ मेरे सुख के लिए हैसब कुछ ईश्वर की सेवा के लिए है
मुझे अधिकार हैमैं सेवक हूँ

कर्ता होने का अहंकार त्यागो

हम अक्सर अपने को कर्ता मानकर अहंकार का शिकार हो जाते हैं। लेकिन वास्तविकता क्या है?

  • हमारी इंद्रियाँ, मन और बुद्धि जड़ हैं
  • ईश्वर से प्राप्त शक्ति से ही हम कर्म कर पाते हैं
  • हम केवल माध्यम हैं, वास्तविक कर्ता ईश्वर है

चिमटे का उदाहरण

जैसे चिमटा अपने आप कुछ नहीं कर सकता, वैसे ही हम भी ईश्वरीय शक्ति के बिना कुछ नहीं कर सकते।

यत्कृतं यत्करिष्यामि तत्सर्वं न मयाकृतम्।
त्वया कृतं तु फलभुक् त्वमेव मधुसूदन ।।

अर्थात – जो कुछ मैंने किया है या करूँगा, वह सब मेरे द्वारा नहीं किया गया है। हे मधुसूदन, आप ही वास्तविक कर्ता हैं और फल के भोक्ता भी आप ही हैं।

निष्क्रियता में आसक्त न हो

कभी-कभी कर्म करना कठिन लगता है और हम निष्क्रिय रहना चाहते हैं। लेकिन:

  • निष्क्रियता समस्या का समाधान नहीं है
  • कठिन परिस्थितियों में भी कर्म करना चाहिए
  • निष्क्रियता की आसक्ति त्याज्य है

कर्मयोग का व्यावहारिक अनुप्रयोग

  1. दैनिक कार्यों को ईश्वर की सेवा समझकर करें
  2. परिणाम की चिंता छोड़कर वर्तमान पर ध्यान दें
  3. सफलता-असफलता में समभाव रखें
  4. अहंकार त्यागकर विनम्रता से कार्य करें
  5. निरंतर सक्रिय रहें, आलस्य से बचें

निष्कर्ष

कर्मयोग जीवन जीने की एक कला है। यह हमें सिखाता है कि कैसे संसार में रहते हुए भी उससे निर्लिप्त रहा जा सकता है। कर्म करते हुए फल की चिंता न करना, अहंकार का त्याग करना और निष्क्रियता से बचना – ये सिद्धांत न केवल व्यक्तिगत जीवन में शांति लाते हैं, बल्कि समाज के लिए भी लाभदायक हैं।

भगवद्गीता का यह ज्ञान आज भी उतना ही प्रासंगिक है जितना हजारों साल पहले था। आधुनिक जीवन की भागदौड़ में कर्मयोग के सिद्धांतों को अपनाकर हम न केवल तनाव से मुक्त हो सकते हैं, बल्कि अपने कर्तव्यों का बेहतर निर्वहन भी कर सकते हैं।

अंत में, याद रखें कि कर्मयोग एक अभ्यास है। इसे धैर्य और लगन से आत्मसात करने की आवश्यकता है। जैसे-जैसे आप इन सिद्धांतों को अपने जीवन में उतारेंगे, वैसे-वैसे आपको इसके लाभ महसूस होंगे। तो आइए, आज से ही कर्मयोग के मार्ग पर चलना शुरू करें और अपने जीवन को अर्थपूर्ण बनाएँ।

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