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भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 57

यः सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम्।
नाभिनन्दति न द्वेष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥57॥


यः-जो; सर्वत्र सभी जगह; अनभिस्नेहः-अनासक्त; तत्-उस; प्राप्य-प्राप्त करके; शुभ-अच्छा; अशुभम्-बुरा; न न तो; अभिनन्दति हर्षित होता है; न न ही; द्वेष्टि-द्वेष करता है; तस्य-उसका; प्रज्ञा-ज्ञान, प्रतिष्ठिता-स्थिर।

Hindi translation: जो सभी परिस्थितियों में अनासक्त रहता है और न ही शुभ फल की प्राप्ति से हर्षित होता है और न ही विपत्ति से उदासीन होता है वही पूर्ण ज्ञानावस्था में स्थित मुनि है।

स्थित प्रज्ञ: भगवद्गीता से आधुनिक काव्य तक

प्रस्तावना

भारतीय दर्शन और साहित्य में स्थित प्रज्ञ की अवधारणा एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह अवधारणा न केवल हमारे प्राचीन ग्रंथों में मिलती है, बल्कि आधुनिक साहित्य में भी इसका प्रभाव देखा जा सकता है। इस ब्लॉग में हम स्थित प्रज्ञ की अवधारणा को समझेंगे और देखेंगे कि कैसे यह विचार भगवद्गीता से लेकर आधुनिक अंग्रेजी कविता तक फैला हुआ है।

स्थित प्रज्ञ: एक परिचय

स्थित प्रज्ञ का अर्थ

स्थित प्रज्ञ का शाब्दिक अर्थ है “जिसकी बुद्धि स्थिर है”। यह एक ऐसी अवस्था है जहां व्यक्ति की बुद्धि किसी भी परिस्थिति में विचलित नहीं होती। वह सुख-दुःख, लाभ-हानि, जय-पराजय में समान भाव रखता है।

भगवद्गीता में स्थित प्रज्ञ

भगवद्गीता के द्वितीय अध्याय में अर्जुन श्रीकृष्ण से पूछते हैं कि स्थित प्रज्ञ व्यक्ति के क्या लक्षण हैं। श्रीकृष्ण इसका विस्तृत वर्णन करते हैं।

स्थित प्रज्ञ के लक्षण

मानसिक स्थिरता

स्थित प्रज्ञ व्यक्ति की सबसे बड़ी विशेषता उसकी मानसिक स्थिरता है। वह किसी भी परिस्थिति में अपना संतुलन नहीं खोता।

समभाव

स्थित प्रज्ञ व्यक्ति सभी परिस्थितियों में समभाव रखता है। सुख-दुःख, लाभ-हानि उसे विचलित नहीं करते।

आत्मनियंत्रण

स्थित प्रज्ञ व्यक्ति अपनी इंद्रियों और मन पर पूर्ण नियंत्रण रखता है। वह अपनी इच्छाओं के दास नहीं बनता।

निर्लिप्तता

स्थित प्रज्ञ व्यक्ति संसार में रहते हुए भी उससे निर्लिप्त रहता है। वह कर्म करता है, लेकिन उसके फल से आसक्त नहीं होता।

स्थित प्रज्ञ और आधुनिक साहित्य

रुडयार्ड किपलिंग की ‘इफ’

रुडयार्ड किपलिंग की प्रसिद्ध कविता ‘इफ’ में स्थित प्रज्ञ के गुणों का वर्णन मिलता है। यह कविता एक पिता द्वारा अपने पुत्र को दी गई सलाह के रूप में लिखी गई है।

‘इफ’ और स्थित प्रज्ञ की समानताएं

स्थित प्रज्ञ के लक्षण‘इफ’ में समान विचार
मानसिक स्थिरता“यदि तुम स्वप्न देख सकते हो और स्वप्नों को अपने पर हावी नहीं होने देते।”
समभाव“यदि तुम सफलता या संकट का समता की भावना से सामना कर सकते हो।”
आत्मनियंत्रण“यदि तुम एक मिनट के अक्षम्य समय को 60 क्षणों की तुल्य दूरी से भर सकते हो।”
निर्लिप्तता“यदि सभी मनुष्य तुम्हारे लिए महत्त्वपूर्ण हैं लेकिन कोई बहुत अधिक नहीं।”

स्थित प्रज्ञ की प्रासंगिकता

व्यक्तिगत जीवन में

स्थित प्रज्ञ की अवधारणा व्यक्तिगत जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है। यह हमें जीवन की उतार-चढ़ाव में संतुलन बनाए रखने में मदद करती है।

व्यावसायिक जीवन में

व्यावसायिक जगत में भी स्थित प्रज्ञ के गुण बहुत उपयोगी हैं। यह नेतृत्व क्षमता को बढ़ाते हैं और तनाव को कम करने में मदद करते हैं।

समाज में

एक बड़े पैमाने पर, स्थित प्रज्ञ के गुण समाज को अधिक शांतिपूर्ण और सामंजस्यपूर्ण बनाने में मदद करते हैं।

स्थित प्रज्ञ बनने की चुनौतियां

आधुनिक जीवन की जटिलताएं

आधुनिक जीवन की तेज गति और जटिलताएं स्थित प्रज्ञ बनने में बड़ी चुनौती पेश करती हैं।

मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं

तनाव, चिंता और अवसाद जैसी मानसिक स्वास्थ्य की समस्याएं स्थित प्रज्ञ बनने के मार्ग में बाधा बन सकती हैं।

सामाजिक दबाव

समाज के बढ़ते दबाव और प्रतिस्पर्धा भी स्थित प्रज्ञ की अवस्था प्राप्त करने में बाधा डालते हैं।

स्थित प्रज्ञ बनने के उपाय

ध्यान और योग

नियमित ध्यान और योग अभ्यास मन को शांत और स्थिर करने में मदद करते हैं।

आत्मचिंतन

नियमित आत्मचिंतन और आत्मविश्लेषण स्थित प्रज्ञ बनने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है।

सकारात्मक दृष्टिकोण

जीवन की हर परिस्थिति को सकारात्मक दृष्टिकोण से देखना स्थित प्रज्ञ बनने में मदद करता है।

नियमित अध्ययन

गीता जैसे ग्रंथों का नियमित अध्ययन और उनके सिद्धांतों को जीवन में उतारने का प्रयास करना चाहिए।

निष्कर्ष

स्थित प्रज्ञ की अवधारणा भारतीय दर्शन का एक अमूल्य रत्न है। यह केवल एक दार्शनिक विचार नहीं है, बल्कि एक जीवन शैली है जो व्यक्ति को आंतरिक शांति और संतुलन प्रदान करती है। भगवद्गीता से लेकर आधुनिक अंग्रेजी कविता तक, यह विचार अपनी प्रासंगिकता बनाए हुए है।

रुडयार्ड किपलिंग की ‘इफ’ कविता स्थित प्रज्ञ के गुणों को आधुनिक संदर्भ में प्रस्तुत करती है। यह दर्शाता है कि चाहे समय कितना भी बदल जाए, मानवीय मूल्यों और आदर्शों की महत्ता कभी कम नहीं होती।

आज के तनावपूर्ण और अनिश्चित समय में, स्थित प्रज्ञ की अवधारणा पहले से कहीं अधिक प्रासंगिक है। यह हमें जीवन की चुनौतियों का सामना करने और आंतरिक शांति बनाए रखने में मदद करती है। हालांकि स्थित प्रज्ञ बनना आसान नहीं है, लेकिन यह एक ऐसा लक्ष्य है जिसकी ओर हम सभी को प्रयास करना चाहिए।

अंत में, यह कहना उचित होगा कि स्थित प्रज्ञ बनना एक यात्रा है, एक मंजिल नहीं। यह एक ऐसी यात्रा है जो हमें न केवल अपने आप से, बल्कि दूसरों और पूरे ब्रह्मांड से भी जोड़ती है। इस यात्रा पर चलते हुए, हम न केवल अपने जीवन को बेहतर बनाते हैं, बल्कि एक बेहतर समाज और विश्व के निर्माण में भी योगदान देते हैं।

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