Bhagwat Geeta

भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 61

तानि सर्वाणि संयम्य युक्त आसीत मत्परः।
वशे हि यस्येन्द्रियाणि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता ॥61॥


तानि-उन्हें; सर्वाणि-समस्त; संयम्य-वश में करना; युक्तः-एक हो जाना; आसीत-स्थित होना चाहिए; मत्-परः-मुझमें (श्रीकृष्ण); वशे–वश में; हि-निश्चय ही; यस्य–जिसकी; इन्द्रियाणि-इन्द्रियाँ; तस्य-उनकी; प्रज्ञा–पूर्ण ज्ञान प्रतिष्ठिता-स्थिर।
Hindi translation: वे जो अपनी इन्द्रियों को वश में कर लेते हैं और अपने मन को मुझमें स्थिर कर देते हैं, वे दिव्य ज्ञान में स्थित होते हैं।

शीर्षक: भक्ति में तल्लीनता: मन और इंद्रियों को वश में करने का मार्ग

प्रस्तावना:

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि मनुष्य को अपने मन और इंद्रियों को नियंत्रित करना चाहिए। यह एक कठिन कार्य है, लेकिन भक्ति के माध्यम से यह संभव है। आइए इस विषय पर गहराई से चर्चा करें।

  1. भक्ति का महत्व

भक्ति क्या है?
भक्ति का शाब्दिक अर्थ है – समर्पण या प्रेमपूर्वक सेवा। यह ईश्वर के प्रति अटूट प्रेम और श्रद्धा का भाव है।

भक्ति का प्रभाव:

  • मन को शांति प्रदान करती है
  • जीवन को सार्थक बनाती है
  • आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होती है
  1. मन और इंद्रियों का नियंत्रण

मन का स्वभाव:
मन चंचल होता है। यह निरंतर विचारों और इच्छाओं से भरा रहता है।

इंद्रियों की प्रकृति:
इंद्रियाँ बाहरी विषयों की ओर आकर्षित होती हैं। इनका नियंत्रण करना कठिन होता है।

नियंत्रण का महत्व:
मन और इंद्रियों पर नियंत्रण से:

  • आत्मसंयम बढ़ता है
  • जीवन में संतुलन आता है
  • आध्यात्मिक प्रगति होती है
  1. भक्ति द्वारा नियंत्रण

भक्ति का मार्ग:

भक्ति मन और इंद्रियों को एक सकारात्मक दिशा देती है। यह उन्हें ईश्वर की ओर मोड़ती है।

भक्ति के प्रकार:

  1. श्रवण (सुनना)
  2. कीर्तन (गाना)
  3. स्मरण (याद करना)
  4. पाद-सेवन (चरण सेवा)
  5. अर्चन (पूजा)
  6. वंदन (प्रणाम)
  7. दास्य (सेवा)
  8. सख्य (मित्रता)
  9. आत्म-निवेदन (आत्म-समर्पण)
  10. राजा अम्बरीष का उदाहरण

राजा अम्बरीष की कहानी:

श्रीमद्भागवतम् में वर्णित राजा अम्बरीष का उदाहरण भक्ति द्वारा इंद्रियों के नियंत्रण का उत्कृष्ट उदाहरण है।

अम्बरीष की भक्ति:

इंद्रियभक्ति का कार्य
मनश्रीकृष्ण के चरण कमलों में लगाया
वाणीभगवान के नाम, रूप, गुण और लीला का गुणगान
कानभगवान की कथा का श्रवण
नेत्रभगवान की मूर्ति का दर्शन
त्वचाभक्तों के चरणों का स्पर्श
नासिकातुलसी की सुगंध
जिह्वाभगवान को अर्पित प्रसाद का सेवन
पैरमंदिर परिक्रमा
सिरभगवान और भक्तों को प्रणाम
  1. भक्ति में तल्लीनता के लाभ

आध्यात्मिक लाभ:

  • ईश्वर के साथ गहरा संबंध
  • आत्मज्ञान की प्राप्ति
  • मोक्ष का मार्ग

मानसिक लाभ:

  • तनाव में कमी
  • सकारात्मक दृष्टिकोण
  • आंतरिक शांति

सामाजिक लाभ:

  • करुणा और प्रेम का विकास
  • सेवा भाव का उदय
  • सामाजिक सद्भाव
  1. भक्ति में तल्लीनता के लिए व्यावहारिक सुझाव

दैनिक अभ्यास:

  • प्रातः काल ईश्वर का स्मरण
  • नियमित पूजा या ध्यान
  • भजन-कीर्तन में भाग लेना

जीवनशैली में परिवर्तन:

  • सात्विक आहार
  • सत्संग में भाग लेना
  • सेवा कार्यों में संलग्नता

मानसिक अभ्यास:

  • प्रतिदिन आत्मचिंतन
  • कृतज्ञता का भाव रखना
  • क्षमाशीलता का विकास

निष्कर्ष:

भक्ति में तल्लीनता मन और इंद्रियों को वश में करने का एक प्रभावी मार्ग है। यह न केवल आध्यात्मिक उन्नति प्रदान करती है, बल्कि जीवन को सार्थक और आनंदमय बनाती है। राजा अम्बरीष का उदाहरण हमें सिखाता है कि कैसे अपनी समस्त इंद्रियों को भगवान की सेवा में लगाकर हम अपने जीवन को धन्य बना सकते हैं। भक्ति का मार्ग सरल और सहज है, जो हर किसी के लिए सुलभ है। यह हमें अपने अंतर्मन से जोड़ती है और हमारे जीवन को एक नई दिशा और अर्थ प्रदान करती है।

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