Bhagwat Geeta

भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 67

इन्द्रियाणां हि चरतां यन्मनोऽनुविधीयते।
तदस्य हरति प्रज्ञां वायु वमिवाम्भसि ॥67॥

इन्द्रियाणाम् इन्द्रियों के हि-वास्तव में; चरताम्-चिन्तन करते हुए; यत्-जिसके; मन:-मन; अनुविधीयते-निरन्तर रत रहता है। तत्-वह; अस्य-इसकी; हरति-वश मे करना; प्रज्ञाम्-बुद्धि के; वायुः-वायु; नावम्-नाव को; इव-जैसे; अम्भसि-जल पर।

Hindi translation: जिस प्रकार प्रचंड वायु अपने तीव्र वेग से जल पर तैरती हुई नाव को दूर तक बहा कर ले जाती है उसी प्रकार से अनियंत्रित इन्द्रियों मे से कोई एक जिसमें मन अधिक लिप्त रहता है, बुद्धि का विनाश कर देती है।

इंद्रियों का प्रभाव: आत्मविकास का मार्ग

भारतीय दर्शन में इंद्रियों के प्रभाव और उनके नियंत्रण का विषय बहुत महत्वपूर्ण रहा है। कठोपनिषद से लेकर भगवद्गीता तक, इस विषय पर गहन चिंतन मिलता है। आइए इस विषय को विस्तार से समझें।

इंद्रियों की प्रकृति

कठोपनिषद में एक महत्वपूर्ण श्लोक है:

“पराञ्चि खानि व्यतृणत्स्वयंभू” (2.1.1)

इसका अर्थ है कि भगवान ने हमारी पांच इंद्रियों को बाहर की ओर उन्मुख बनाया है। यह स्वाभाविक है कि हमारी इंद्रियां बाहरी जगत के विषयों की ओर आकर्षित होती हैं। लेकिन इसमें एक बड़ा खतरा छिपा है।

इंद्रियों का आकर्षण और उसका परिणाम

एक प्रसिद्ध श्लोक इस खतरे को बखूबी समझाता है:

कुरङ्ग मातङ्ग पतङ्ग बृङ्ग मीनाहताः पञ्चभिरेव पञ्च।
एकः प्रमादी स कथं न हन्यते यः सेवते पञ्चभिरेव पञ्च ।।
(सूक्ति सुधाकर)

इस श्लोक में पांच प्राणियों के उदाहरण देकर पांच इंद्रियों के खतरे को समझाया गया है:

  1. हिरण (श्रवण): मधुर वाणी की ओर आकर्षित होकर शिकारी के जाल में फंस जाता है।
  2. हाथी (स्पर्श): हथिनी के स्पर्श के लालच में गड्ढे में गिर जाता है।
  3. पतंगा (दृष्टि): प्रकाश की ओर आकर्षित होकर जल जाता है।
  4. भ्रमर (घ्राण): फूल की सुगंध में फंसकर रात में मर जाता है।
  5. मछली (स्वाद): चारे के स्वाद के लालच में जाल में फंस जाती है।

इंद्रियों का नियंत्रण: आत्मविकास का मार्ग

आत्मनियंत्रण का महत्व

इंद्रियों के इन खतरों को समझकर हमें आत्मनियंत्रण की आवश्यकता समझनी चाहिए। जो व्यक्ति सभी पांच इंद्रियों के विषयों का अनियंत्रित भोग करता है, उसका पतन निश्चित है।

इंद्रियनियंत्रण के उपाय

  1. ध्यान और योग: मन को एकाग्र करने से इंद्रियों पर नियंत्रण बढ़ता है।
  2. संयम: भोजन, नींद और व्यवहार में संयम रखना।
  3. स्वाध्याय: ज्ञान के द्वारा इंद्रियों के स्वभाव को समझना।
  4. सत्संग: अच्छे लोगों की संगति से सकारात्मक प्रभाव।

निष्कर्ष

इंद्रियों का नियंत्रण आत्मविकास का एक महत्वपूर्ण पहलू है। यह न केवल व्यक्तिगत जीवन में सफलता का मार्ग है, बल्कि आध्यात्मिक उन्नति का भी आधार है। हमें अपनी इंद्रियों के प्रति सजग रहना चाहिए और उन्हें नियंत्रित करने का प्रयास करना चाहिए।

इंद्रियनियंत्रण के लाभ

क्षेत्रलाभ
शारीरिकबेहतर स्वास्थ्य, दीर्घायु
मानसिकएकाग्रता, शांति
आध्यात्मिकआत्मज्ञान, मोक्ष की प्राप्ति
सामाजिकबेहतर संबंध, सम्मान

इस प्रकार, इंद्रियों के नियंत्रण से न केवल व्यक्तिगत जीवन में सुधार आता है, बल्कि समाज और विश्व के कल्याण में भी योगदान होता है। यह एक ऐसा मार्ग है जो हमें सच्चे अर्थों में मनुष्य बनाता है और हमारे जीवन को सार्थक बनाता है।

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