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भगवद गीता: अध्याय 2, श्लोक 71

विहाय कामान्यः सर्वान्पुमांश्चरति निःस्पृहः
निर्ममो निरहङ्कारः स शान्तिमधिगच्छति ॥71॥

विहाय-त्याग कर; कामान्–भौतिक इच्छाएँ; यः-जो; सर्वान्–समस्त; पुमान्-पुरुष; चरति-रहता है; निःस्पृहः-कामना रहित; निर्ममाः-स्वामित्व की भावना से रहित; निरहंकारः-अहंकार रहित; सः-वह; शान्तिम्-पूर्ण शान्ति को; अधिगच्छति-प्राप्त करता है।

Hindi translation: जिस मुनष्य ने अपनी सभी भौतिक इच्छाओं का परित्याग कर दिया हो और इन्द्रिय तृप्ति की लालसा, स्वामित्व के भाव और अंहकार से रहित हो गया हो, वह पूर्ण शांति प्राप्त कर सकता है।

आंतरिक शांति का मार्ग: श्रीमद्भगवद्गीता की दृष्टि

श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने मानव जीवन के अनेक पहलुओं पर प्रकाश डाला है। उन्होंने आंतरिक शांति प्राप्त करने के मार्ग में आने वाली बाधाओं और उनसे मुक्ति पाने के उपायों पर विशेष ध्यान दिया है। आइए, इन बिंदुओं को विस्तार से समझें।

1. सांसारिक इच्छाओं का त्याग

मनुष्य की अधिकांश समस्याएँ उसकी अनंत इच्छाओं से उत्पन्न होती हैं। श्रीकृष्ण कहते हैं:

जब मनुष्य अपनी इच्छाओं को मन में स्थान देता है, तब वह लोभ और क्रोध के जाल में फँस जाता है।

1.1 इच्छाओं का प्रभाव

1.2 इच्छाओं से मुक्ति का मार्ग

  1. आत्म-चिंतन: अपनी इच्छाओं के मूल को समझें।
  2. प्राथमिकताएँ निर्धारित करें: जीवन के लिए आवश्यक और अनावश्यक इच्छाओं में भेद करें।
  3. संयम का अभ्यास: धीरे-धीरे अनावश्यक इच्छाओं को त्यागने का प्रयास करें।
  4. ध्यान और योग: मन की शांति के लिए नियमित ध्यान और योग का अभ्यास करें।

2. लोभ का त्याग

लोभ मनुष्य को सदैव असंतुष्ट रखता है। श्रीकृष्ण इसे आंतरिक शांति का एक बड़ा शत्रु मानते हैं।

2.1 लोभ के दुष्प्रभाव

2.2 लोभ से मुक्ति के उपाय

  1. संतोष का अभ्यास: जो है उसमें संतुष्ट रहने का प्रयास करें।
  2. दान की आदत: नियमित रूप से दान करने से लोभ कम होता है।
  3. आवश्यकताओं पर ध्यान: वास्तविक जरूरतों और विलासिता में अंतर समझें।
  4. आध्यात्मिक चिंतन: भौतिक संपत्ति की नश्वरता पर विचार करें।

3. अहंकार का त्याग

अहंकार व्यक्ति को दूसरों से अलग कर देता है और आंतरिक शांति में बाधक बनता है।

3.1 अहंकार के नुकसान

3.2 अहंकार से मुक्ति के उपाय

  1. आत्म-आलोचना: अपनी कमियों को स्वीकार करें और सुधारने का प्रयास करें।
  2. सेवा भाव: दूसरों की सेवा करने से अहंकार कम होता है।
  3. विनम्रता का अभ्यास: हर परिस्थिति में विनम्र रहने का प्रयास करें।
  4. ज्ञान का विस्तार: जितना अधिक सीखेंगे, उतना ही अहंकार कम होगा।

4. स्वामित्व की भावना का त्याग

स्वामित्व की भावना अज्ञान से उत्पन्न होती है और यह आंतरिक शांति में बाधक बनती है।

4.1 स्वामित्व की भावना के दुष्प्रभाव

4.2 स्वामित्व की भावना से मुक्ति के उपाय

  1. अस्थायी प्रकृति का ज्ञान: सभी वस्तुएँ अस्थायी हैं, यह समझें।
  2. त्याग का अभ्यास: नियमित रूप से कुछ न कुछ त्यागने का प्रयास करें।
  3. सादगी का जीवन: जीवन को सरल बनाएँ, अनावश्यक वस्तुओं से बचें।
  4. परोपकार: अपनी संपत्ति का उपयोग दूसरों की भलाई के लिए करें।

5. आंतरिक शांति प्राप्त करने के व्यावहारिक उपाय

आइए, कुछ व्यावहारिक उपायों पर नज़र डालें जो आंतरिक शांति प्राप्त करने में सहायक हो सकते हैं:

उपायविवरणलाभ
ध्यानदैनिक 15-20 मिनट ध्यान करेंमानसिक शांति, एकाग्रता में वृद्धि
प्राणायामनियमित श्वास व्यायाम करेंतनाव कम, ऊर्जा स्तर में वृद्धि
सत्संगअच्छे लोगों की संगति में रहेंसकारात्मक विचार, आध्यात्मिक उन्नति
स्वाध्यायरोज़ाना कुछ समय पढ़ेंज्ञान में वृद्धि, आत्म-चिंतन
सेवानि:स्वार्थ सेवा करेंआत्म-संतोष, अहंकार में कमी

निष्कर्ष

श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण द्वारा बताए गए मार्ग का अनुसरण करके हम अपने जीवन में आंतरिक शांति प्राप्त कर सकते हैं। यह एक निरंतर प्रक्रिया है जिसमें धैर्य और दृढ़ संकल्प की आवश्यकता होती है। सांसारिक इच्छाओं, लोभ, अहंकार और स्वामित्व की भावना का त्याग करके हम न केवल अपने जीवन को सुखमय बना सकते हैं, बल्कि समाज और विश्व के कल्याण में भी योगदान दे सकते हैं।

याद रखें, आंतरिक शांति एक यात्रा है, मंजिल नहीं। इस यात्रा में उतार-चढ़ाव आएंगे, लेकिन दृढ़ रहकर और श्रीकृष्ण के उपदेशों का पालन करते हुए, हम निश्चित रूप से एक संतुलित और आनंदमय जीवन जी सकते हैं। अंत में, यह समझना महत्वपूर्ण है कि वास्तविक शांति हमारे भीतर ही है, हमें बस उसे खोजना और अनुभव करना है।

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