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भगवद गीता: अध्याय 3, श्लोक 12

&NewLine;<pre id&equals;"tw-target-text" class&equals;"wp-block-preformatted"><strong>इष्टान्भोगान्हि वो देवा दास्यन्ते यज्ञभाविताः ।<br>तैर्दत्तानप्रदायैभ्यो यो भुतस्तेन एव सः ॥12॥<&sol;strong><br><br>इष्टान्–वांछित&semi; भोगान्–जीवन की आवश्यकताएँ&semi; हि-निश्चय ही&semi; व&colon;-तुम्हें&semi; देवा&colon;-स्वर्ग के देवता&semi; दास्यन्ते प्रदान करेंगे&semi; यज्ञभाविता&colon;-यज्ञ कर्म से प्रसन्न होकर&semi; तैः-उनके द्वारा&semi; दत्तान्–प्रदान की गई वस्तुएँ&semi; अप्रदाय–अर्पित किए बिना&semi; एभ्यः-इन्हें&semi; यः-जो&semi; भुङ्क्ते सेवन करता है&semi; स्तेनः-चोर&semi; एव–निश्चय ही&semi; सः-वे।<br><br><strong>Hindi translation&colon;<&sol;strong> तुम्हारे द्वारा सम्पन्न यज्ञों से प्रसन्न होकर देवता जीवन निर्वाह के लिए वांछित आवश्यक वस्तुएँ प्रदान करेंगे किन्तु जो प्राप्त उपहारों को उनको अर्पित किए बिना भोगते हैं&comma; वे वास्तव में चोर हैं।<&sol;pre>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h1 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-द-वत-ओ-और-मन-ष-य-क-परस-पर-स-ब-ध-एक-आध-य-त-म-क-द-ष-ट-क-ण">देवताओं और मनुष्यों का परस्पर संबंध&colon; एक आध्यात्मिक दृष्टिकोण<&sol;h1>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-प-रस-त-वन">प्रस्तावना<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>हमारे जीवन में देवताओं की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे न केवल ब्रह्मांड की विभिन्न प्रक्रियाओं के प्रशासक हैं&comma; बल्कि हमारे दैनिक जीवन के लिए आवश्यक संसाधनों के प्रदाता भी हैं। इस ब्लॉग में हम देवताओं और मनुष्यों के बीच के संबंध&comma; हमारे कर्तव्य&comma; और आध्यात्मिक दृष्टिकोण से जीवन जीने के महत्व पर चर्चा करेंगे।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h2 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-द-वत-ओ-क-य-गद-न-और-हम-र-कर-तव-य">देवताओं का योगदान और हमारा कर्तव्य<&sol;h2>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-द-वत-ओ-द-व-र-प-रदत-त-उपह-र">देवताओं द्वारा प्रदत्त उपहार<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>देवता हमें निम्नलिखित महत्वपूर्ण संसाधन प्रदान करते हैं&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>वर्षा<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>वायु<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>अन्न<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>खनिज<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>उपजाऊ भूमि<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>इन सभी उपहारों के लिए हमें देवताओं का आभारी होना चाहिए। वे अपने कर्तव्य का पालन करते हैं और हमसे भी यही अपेक्षा रखते हैं।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-मन-ष-य-क-कर-तव-य">मनुष्य का कर्तव्य<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>हमारा कर्तव्य है कि हम&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>चेतनायुक्त रहें<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>निष्ठापूर्वक अपने दायित्वों का निर्वाहन करें<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>प्रकृति और देवताओं के प्रति कृतज्ञ रहें<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-द-वत-और-परम-त-म-क-स-ब-ध">देवता और परमात्मा का संबंध<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>यह समझना महत्वपूर्ण है कि सभी देवता परम शक्तिमान भगवान के सेवक हैं। जब वे किसी को भगवान के लिए यज्ञ कर्म करते हुए देखते हैं&comma; तो वे प्रसन्न होते हैं और उस व्यक्ति के लिए लाभदायक भौतिक सुख-सुविधाओं की व्यवस्था करते हैं।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-भगव-न-क-स-व-क-महत-व">भगवान की सेवा का महत्व<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>जब हम दृढ़संकल्प के साथ भगवान की सेवा करते हैं&comma; तब ब्रह्माण्ड की सभी शक्तियाँ हमारी सहायता करना आरम्भ कर देती हैं। यह एक महत्वपूर्ण आध्यात्मिक सिद्धांत है जो हमारे जीवन को सकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-प-रक-त-क-उपह-र-क-सह-उपय-ग">प्रकृति के उपहारों का सही उपयोग<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h4 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-च-र-क-म-नस-कत">चोरी की मानसिकता<&sol;h4>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>श्रीकृष्ण ने एक महत्वपूर्ण बात कही है। उन्होंने कहा है कि यदि हम प्रकृति द्वारा प्रदत्त उपहारों को भगवान की सेवा के निमित्त नहीं समझते&comma; बल्कि उन्हें केवल अपने सुख का साधन मानते हैं&comma; तो यह चोरी की मानसिकता है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-एक-स-म-न-य-प-रश-न-क-उत-तर">एक सामान्य प्रश्न का उत्तर<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>अक्सर लोग यह प्रश्न पूछते हैं&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<blockquote class&equals;"wp-block-quote is-layout-flow wp-block-quote-is-layout-flow">&NewLine;<p>&&num;8220&semi;मैं सदाचार जीवन व्यतीत करता हूँ&comma; मैं किसी का अहित नहीं करता और न ही मैं कोई चोरी करता हूँ। किन्तु मैं न तो भगवान की उपासना में विश्वास करता हूँ और न ही भगवान के अस्तित्व में। तब क्या मैं कुछ अनुचित कर रहा हूँ&quest;&&num;8221&semi;<&sol;p>&NewLine;<&sol;blockquote>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>इस प्रश्न का उत्तर यह है कि सामान्य मनुष्यों की दृष्टि से ऐसे व्यक्ति कुछ अनुचित नहीं करते। परंतु परमात्मा की दृष्टि में&comma; वे चोर माने जाते हैं।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-एक-उद-हरण-द-व-र-समझन">एक उदाहरण द्वारा समझना<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>इस स्थिति को समझने के लिए एक उदाहरण लेते हैं&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>मान लीजिए आप किसी अनजान व्यक्ति के घर में प्रवेश करते हैं।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>आप उसके सोफे पर बैठ जाते हैं।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>उसके रेफ्रिजरेटर से खाने-पीने के पदार्थों का सेवन करने लगते हैं।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>उसके विश्राम कक्ष का प्रयोग करते हैं।<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>फिर आप दावा करते हैं कि आप कुछ अनुचित नहीं कर रहे हैं।<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>इस स्थिति में&comma; कानून की दृष्टि में आपको चोर माना जाएगा क्योंकि उस घर से आपका कोई संबंध नहीं है।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-ब-रह-म-ड-और-मन-ष-य-क-स-ब-ध">ब्रह्मांड और मनुष्य का संबंध<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>इसी प्रकार&comma; यह संसार जिसमें हम रहते हैं&comma; वह भगवान द्वारा बनाया गया है और उसकी प्रत्येक वस्तु भगवान की ही है। यदि हम सृष्टि के इन सुख साधनों पर भगवान के आधिपत्य को स्वीकार किए बिना अपने सुख के लिए इनका उपभोग करते हैं&comma; तब दैवीय दृष्टिकोण से हम निश्चित रूप से चोरी करते हैं।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-हम-र-ज-म-म-द-र">हमारी जिम्मेदारी<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>हमारी जिम्मेदारी है कि हम&colon;<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<ol class&equals;"wp-block-list">&NewLine;<li>प्रकृति और उसके संसाधनों का सम्मान करें<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>भगवान के प्रति कृतज्ञता रखें<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>संसाधनों का उचित और न्यायसंगत उपयोग करें<&sol;li>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<li>दूसरों के अधिकारों का सम्मान करें<&sol;li>&NewLine;<&sol;ol>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<h3 class&equals;"wp-block-heading" id&equals;"h-न-ष-कर-ष">निष्कर्ष<&sol;h3>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>अंत में&comma; यह समझना महत्वपूर्ण है कि हम सभी इस ब्रह्मांड के एक हिस्से हैं। देवता&comma; प्रकृति&comma; और मनुष्य &&num;8211&semi; सभी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। हमारा कर्तव्य है कि हम इस संबंध को समझें&comma; उसका सम्मान करें&comma; और अपने जीवन में उसे प्रतिबिंबित करें।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>यह दृष्टिकोण न केवल हमारे आध्यात्मिक विकास में सहायक होगा&comma; बल्कि हमें एक बेहतर और अधिक संतुलित जीवन जीने में भी मदद करेगा। याद रखें&comma; हम जो कुछ भी हैं और जो कुछ भी हमारे पास है&comma; वह सब किसी न किसी रूप में हमें दिया गया है। इसलिए&comma; हमेशा कृतज्ञ रहें और अपने कर्मों के प्रति सचेत रहें।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<hr class&equals;"wp-block-separator has-alpha-channel-opacity" &sol;>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<figure class&equals;"wp-block-table"><table class&equals;"has-fixed-layout"><thead><tr><th>देवता प्रदत्त संसाधन<&sol;th><th>मनुष्य का कर्तव्य<&sol;th><&sol;tr><&sol;thead><tbody><tr><td>वर्षा<&sol;td><td>कृतज्ञता<&sol;td><&sol;tr><tr><td>वायु<&sol;td><td>संरक्षण<&sol;td><&sol;tr><tr><td>अन्न<&sol;td><td>समुचित उपयोग<&sol;td><&sol;tr><tr><td>खनिज<&sol;td><td>विवेकपूर्ण खनन<&sol;td><&sol;tr><tr><td>उपजाऊ भूमि<&sol;td><td>संरक्षण और पोषण<&sol;td><&sol;tr><&sol;tbody><&sol;table><&sol;figure>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<p>इस तालिका से हम देख सकते हैं कि प्रत्येक देवता प्रदत्त संसाधन के लिए हमारा एक विशिष्ट कर्तव्य है। यह हमें याद दिलाता है कि हम प्रकृति और देवताओं के प्रति अपने दायित्वों को कभी नहीं भूलें।<&sol;p>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<div class&equals;"wp-block-buttons is-content-justification-space-between is-layout-flex wp-container-core-buttons-is-layout-3d213aab wp-block-buttons-is-layout-flex">&NewLine;<div class&equals;"wp-block-button"><a class&equals;"wp-block-button&lowbar;&lowbar;link wp-element-button" href&equals;"https&colon;&sol;&sol;sanatanroots&period;com&sol;bhagavad-gita-chapter-3-verse-11&sol;">Previous<&sol;a><&sol;div>&NewLine;&NewLine;&NewLine;&NewLine;<div class&equals;"wp-block-button"><a class&equals;"wp-block-button&lowbar;&lowbar;link wp-element-button" href&equals;"https&colon;&sol;&sol;sanatanroots&period;com&sol;bhagavad-gita-chapter-3-verse-13&sol;">Next<&sol;a><&sol;div>&NewLine;<&sol;div>&NewLine;

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