एवं प्रवर्तितं चक्रं नानुवर्तयतीह यः ।
अघायुरिन्द्रियारामो मोघं पार्थ स जीवति ॥16॥
एवम्-इस प्रकार; प्रवर्तितम्-कार्यशील होना; चक्रम-चक्र; न-नहीं; अनुवर्तयति-पालन करना; इह-इस जीवन में; यः-जो; अघ-आयुः-पापपूर्ण जीवन; इन्द्रिय-आरामः-इन्द्रियों का सुख; मोघम्-व्यर्थः पार्थ-पृथापुत्र, अर्जुनः सः-वे; जीवति-जीवित रहता है।
Hindi translation: हे पार्थ! जो मनुष्य वेदों द्वारा स्थापित यज्ञ कर्म के चक्र का पालन करने के अपने दायित्व का निर्वाहन नहीं करते, वे पाप अर्जित करते हैं, वे केवल अपनी इन्द्रियों की तृप्ति के लिए जीवित रहते हैं, वास्तव में उनका जीवन व्यर्थ ही है।
सृष्टि का चक्र: मानव जीवन का आधार
प्रस्तावना
मानव जीवन एक जटिल और रहस्यमय प्रक्रिया है, जिसे समझना कठिन लगता है। लेकिन हमारे पूर्वजों ने इसे सरल और सुंदर तरीके से समझाया है। उन्होंने बताया कि हमारा जीवन एक चक्र है, जो निरंतर घूमता रहता है। इस चक्र को समझना और उसके अनुसार जीना ही जीवन की सफलता है।
सृष्टि का चक्र: एक परिचय
सृष्टि का चक्र क्या है? यह वह क्रम है जिसमें प्रकृति के सभी तत्व एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और एक दूसरे को प्रभावित करते हैं। इस चक्र में हर घटना का एक कारण और परिणाम होता है। यह चक्र निरंतर चलता रहता है और इसी से सृष्टि का संचालन होता है।
अन्न से वर्षा तक का चक्र
भगवद्गीता के श्लोक 3.14 में इस चक्र का सुंदर वर्णन किया गया है। इसमें बताया गया है कि कैसे अन्न से लेकर वर्षा तक सभी चीजें एक दूसरे से जुड़ी हुई हैं। यह चक्र इस प्रकार है:
- अन्न से प्राणी उत्पन्न होते हैं
- प्राणियों के कर्मों से यज्ञ होता है
- यज्ञ से वर्षा होती है
- वर्षा से फिर अन्न उत्पन्न होता है
यह चक्र निरंतर चलता रहता है और इसी से सृष्टि का संतुलन बना रहता है।
मनुष्य का दायित्व
स्वतंत्र इच्छा का वरदान
मनुष्य को प्रकृति ने एक विशेष वरदान दिया है – स्वतंत्र इच्छा। हम अपने कर्मों का चुनाव कर सकते हैं। यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम इस स्वतंत्रता का सही उपयोग करें।
सृष्टि के चक्र में योगदान
हमारा कर्तव्य है कि हम सृष्टि के चक्र में सकारात्मक योगदान दें। हम या तो इस चक्र के साथ सामंजस्य बिठा सकते हैं या फिर इसमें बाधा बन सकते हैं। जब हम अपने दायित्वों का पालन करते हैं, तब हम न केवल खुद को, बल्कि पूरी सृष्टि को लाभ पहुंचाते हैं।
स्वर्ण युग और कलियुग
स्वर्ण युग: सामंजस्य का काल
जब अधिकांश लोग अपने दायित्वों का पालन करते हैं और सृष्टि के नियमों के अनुसार जीवन जीते हैं, तब वह काल स्वर्ण युग कहलाता है। इस समय में:
- समाज में शांति और समृद्धि होती है
- लोगों का आध्यात्मिक विकास होता है
- प्रकृति और मनुष्य के बीच सामंजस्य होता है
कलियुग: विसंगति का काल
जब लोग अपने दायित्वों को भूल जाते हैं और सृष्टि के नियमों का उल्लंघन करते हैं, तब वह समय कलियुग कहलाता है। इस समय में:
- समाज में अशांति और दुख बढ़ता है
- लोगों का आध्यात्मिक पतन होता है
- प्रकृति और मनुष्य के बीच संघर्ष होता है
भगवान की माया शक्ति
अनुशासन और प्रशिक्षण का माध्यम
सृष्टि का चक्र भगवान द्वारा रचा गया एक अनुशासन और प्रशिक्षण का माध्यम है। यह चक्र हमें सिखाता है कि:
- हर कर्म का एक परिणाम होता है
- हमारे कर्म न केवल हमें, बल्कि पूरी सृष्टि को प्रभावित करते हैं
- हमें अपने दायित्वों का पालन करना चाहिए
माया शक्ति का प्रभाव
जब हम अपने दायित्वों से विमुख होते हैं, तब भगवान की माया शक्ति हमें सही मार्ग पर लाने का प्रयास करती है। यह शक्ति:
- हमें हमारे कर्मों के परिणाम दिखाती है
- हमें अपने दायित्वों की याद दिलाती है
- हमें सृष्टि के नियमों का महत्व समझाती है
श्रीकृष्ण का संदेश
भगवद्गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को एक महत्वपूर्ण संदेश देते हैं:
“जो अपने लिए निर्देशित यज्ञ कर्म नहीं करते, वे अपनी इन्द्रियों के दास बन जाते हैं और पापमयी जीवन व्यतीत करते हैं। वे व्यर्थ में जीवित रहते हैं।”
इस संदेश का अर्थ है:
- हमें अपने कर्तव्यों का पालन करना चाहिए
- हमें अपनी इन्द्रियों पर नियंत्रण रखना चाहिए
- हमें सदैव सकारात्मक और धर्मानुकूल जीवन जीना चाहिए
दैवीय नियमों का पालन
अंतःकरण की शुद्धि
जो व्यक्ति दैवीय नियमों का पालन करते हैं, उनका अंतःकरण शुद्ध हो जाता है। इसका मतलब है:
- उनके विचार पवित्र होते हैं
- उनके कर्म निःस्वार्थ होते हैं
- उनका जीवन सार्थक होता है
मानसिक विकारों से मुक्ति
दैवीय नियमों का पालन करने से व्यक्ति मानसिक विकारों से मुक्त हो जाता है। इसका परिणाम होता है:
- मन की शांति
- जीवन में संतुष्टि
- आध्यात्मिक उन्नति
निष्कर्ष
सृष्टि का चक्र एक जटिल लेकिन सुंदर प्रक्रिया है। यह हमें सिखाता है कि हम सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं और हमारे हर कर्म का प्रभाव पूरी सृष्टि पर पड़ता है। हमारा कर्तव्य है कि हम इस चक्र में सकारात्मक योगदान दें और अपने दायित्वों का पालन करें। ऐसा करने से न केवल हमारा जीवन सार्थक होगा, बल्कि हम पूरी सृष्टि के कल्याण में भी योगदान देंगे।
याद रखें, हम सब इस विशाल ब्रह्मांड के छोटे से हिस्से हैं, लेकिन हमारा प्रभाव बहुत बड़ा हो सकता है। आइए, हम सब मिलकर इस सृष्टि के चक्र को सुचारू रूप से चलाने में अपना योगदान दें और एक बेहतर कल की ओर कदम बढ़ाएं।