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भगवद गीता: अध्याय 3, श्लोक 19

तस्मादसक्तः सततं कार्यं कर्म समाचर ।
असक्तो ह्याचरन्कर्म परमानोति पुरुषः ॥19॥


तस्मात्-अतः; असक्तः-आसक्ति रहित; सततम्-निरन्तर; कार्यम् कर्त्तव्यं; कर्म-कार्य; समाचर-निष्पादन करना; असक्तो:-आसक्तिरहित; हि-निश्चय ही; आचरन्-निष्पादन करते हुए; कर्म-कार्य; परम-सर्वोच्च भगवान; आप्नोति–प्राप्त करता है; पुरुषः-पुरुष, मनुष्य।

Hindi translation:
अतः आसक्ति का त्याग कर अपने कार्य को कर्तव्य समझ कर फल की आसक्ति के बिना निरन्तर कर्म करने से ही किसी को परमात्मा की प्राप्ति होती है।

कर्मयोग: श्रीमद्भगवद्गीता का मार्गदर्शन

श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने कर्मयोग के महत्व पर विशेष बल दिया है। आइए हम इस विषय को गहराई से समझें और देखें कि यह हमारे जीवन में कैसे लागू होता है।

श्लोक 3.8-3.16: कर्म का महत्व

श्रीकृष्ण ने इन श्लोकों में कर्म के महत्व को समझाया है। उनका कहना है कि जो लोग अभी आध्यात्मिक रूप से पूर्ण नहीं हुए हैं, उन्हें अपने नियत कर्मों का पालन करना चाहिए।

कर्म क्यों आवश्यक है?

  1. आत्म-विकास: कर्म हमारे व्यक्तित्व के विकास में सहायक होता है।
  2. समाज का कल्याण: हमारे कर्म समाज के लिए लाभदायक होते हैं।
  3. आध्यात्मिक उन्नति: कर्म के माध्यम से हम आध्यात्मिक रूप से उन्नत होते हैं।

श्रीकृष्ण का संदेश

“नियत कर्म करो, क्योंकि कर्म न करने से अकर्म श्रेष्ठ है। और कर्म न करने से तेरा शरीर-निर्वाह भी नहीं हो सकेगा।”

श्लोक 3.17-3.18: ज्ञानी पुरुषों का दृष्टिकोण

इन श्लोकों में श्रीकृष्ण बताते हैं कि जो लोग ज्ञान की उच्चतम अवस्था को प्राप्त कर चुके हैं, उनके लिए नियत कर्म करना आवश्यक नहीं है।

ज्ञानी पुरुषों की विशेषताएँ

  1. आत्म-तृप्त: वे अपने आप में संतुष्ट होते हैं।
  2. निष्काम कर्म: वे बिना किसी स्वार्थ के कर्म करते हैं।
  3. समदृष्टि: उनकी दृष्टि में सभी समान होते हैं।

अर्जुन के लिए उचित मार्ग

श्रीकृष्ण अर्जुन को कर्मयोगी बनने की सलाह देते हैं, न कि कर्म संन्यासी बनने की। आइए देखें कि वे इसके पीछे क्या कारण बताते हैं।

कर्मयोग का महत्व

  1. व्यावहारिक दृष्टिकोण: कर्मयोग जीवन की वास्तविकताओं से जुड़ा हुआ है।
  2. आत्म-शुद्धि: कर्म करते हुए भी हम अपने मन को शुद्ध कर सकते हैं।
  3. लोक कल्याण: कर्मयोग से समाज का भी कल्याण होता है।

श्लोक 3.20-3.26: कर्मयोग के लाभ

इन श्लोकों में श्रीकृष्ण कर्मयोग के विभिन्न लाभों की व्याख्या करते हैं। आइए इन्हें विस्तार से समझें।

1. नेतृत्व का उदाहरण

श्रीकृष्ण कहते हैं कि महापुरुषों के आचरण का अनुसरण साधारण लोग करते हैं। अतः नेता को कर्मयोगी होना चाहिए।

2. प्रकृति का नियम

कर्म प्रकृति का नियम है। श्रीकृष्ण कहते हैं:

“हे पार्थ! तीनों लोकों में मुझे कुछ भी कर्तव्य नहीं है, न कोई प्राप्त करने योग्य वस्तु अप्राप्त है, फिर भी मैं कर्म में प्रवृत्त रहता हूँ।”

3. समाज का संतुलन

कर्मयोग से समाज में संतुलन बना रहता है। यदि ज्ञानी पुरुष भी कर्म करें तो समाज का कल्याण होता है।

4. अज्ञानियों का मार्गदर्शन

श्रीकृष्ण कहते हैं कि ज्ञानी पुरुषों को चाहिए कि वे अज्ञानियों को कर्म से विमुख न करें, बल्कि स्वयं कर्म करके उन्हें प्रेरित करें।

कर्मयोग का व्यावहारिक पहलू

आइए अब देखें कि हम अपने दैनिक जीवन में कर्मयोग को कैसे अपना सकते हैं।

कर्मयोग के सिद्धांत

  1. निष्काम कर्म: बिना फल की इच्छा के कर्म करना।
  2. कर्तव्य पालन: अपने दायित्वों का ईमानदारी से निर्वाह करना।
  3. समर्पण भाव: अपने कर्मों को ईश्वर को समर्पित करना।

दैनिक जीवन में कर्मयोग

क्षेत्रकर्मयोग का उदाहरण
कार्यस्थलअपने काम को पूरी निष्ठा से करना, बिना पदोन्नति की चिंता किए
परिवारघर के कार्यों को प्रेम और समर्पण भाव से करना
समाजस्वयंसेवा और परोपकार के कार्य करना
व्यक्तिगत विकासनियमित अध्ययन और ध्यान का अभ्यास करना

निष्कर्ष

श्रीमद्भगवद्गीता में श्रीकृष्ण ने कर्मयोग को एक ऐसे मार्ग के रूप में प्रस्तुत किया है जो न केवल व्यक्तिगत विकास का साधन है, बल्कि समाज कल्याण का भी माध्यम है। उन्होंने अर्जुन को और उनके माध्यम से हम सभी को यह संदेश दिया है कि जीवन में सफलता और आध्यात्मिक उन्नति का मार्ग कर्म से होकर गुजरता है।

कर्मयोग का मार्ग चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन यह जीवन को अर्थपूर्ण और संतोषजनक बनाता है। यह हमें सिखाता है कि कैसे हम अपने दैनिक कर्मों को एक उच्च उद्देश्य से जोड़ सकते हैं और इस प्रकार अपने जीवन को सार्थक बना सकते हैं।

अंत में, यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि कर्मयोग केवल एक सिद्धांत नहीं है, बल्कि एक जीवन शैली है। इसे अपनाकर हम न केवल अपने जीवन को बेहतर बना सकते हैं, बल्कि दूसरों के लिए भी प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं। श्रीकृष्ण के इन वचनों को आत्मसात करके हम अपने जीवन को एक नई दिशा और अर्थ दे सकते हैं।

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