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भगवद गीता: अध्याय 3, श्लोक 37

श्रीभगवानुवाच। काम एष क्रोध एष रजोगुणसमुद्भवः ।
महाशनो महापाप्मा विद्धयेनमिह वैरिणम् ॥37॥


श्री-भगवान् उवाच-श्रीभगवान् ने कहा; कामः-काम-वासना; एषः-यह; क्रोधः-क्रोध; एषः-यह; रजो-गुण-रजस गुण; समुद्भवः-उत्पन्न; महा-अशनः-सर्वभक्षी; महापाप्मा-महान पापी; विद्धि-समझो; एनम् इसे; इह-भौतिक संसार में; वैरिणम्-सर्वभक्षी शत्रु।

Hindi translation: परमात्मा श्रीकृष्ण कहते हैं-अकेली काम वासना जो रजोगुण के सम्पर्क में आने से उत्पन्न होती है और बाद में क्रोध का रूप धारण कर लेती है, इसे पाप के रूप में संसार का सर्वभक्षी शत्रु समझो।

वेदों में काम और वासना का अर्थ: एक गहन विश्लेषण

वेदों में प्रयुक्त ‘काम’ और ‘वासना’ शब्दों का अर्थ केवल यौन इच्छाओं तक सीमित नहीं है। इन शब्दों का व्यापक अर्थ समझने के लिए हमें आत्मा और शरीर के संबंध को समझना होगा। आइए इस विषय को विस्तार से समझें।

काम और वासना का विस्तृत अर्थ

वेदों में ‘काम’ और ‘वासना’ शब्दों का प्रयोग व्यापक संदर्भ में किया गया है। इनमें शामिल हैं:

  1. शारीरिक सुख
  2. भौतिक समृद्धि की इच्छा
  3. प्रतिष्ठा और मान-सम्मान की चाह
  4. सत्ता और अधिकार की लालसा

इस प्रकार, ये शब्द मानव की समस्त भौतिक इच्छाओं को समेटे हुए हैं।

आत्मा और शरीर का संबंध

वेदों के अनुसार, आत्मा का शरीर के साथ संबंध ही वासना का मूल कारण है। जब आत्मा शरीर के माध्यम से भौतिक जगत का अनुभव करती है, तब उसमें विभिन्न प्रकार की इच्छाएँ जन्म लेती हैं।

वासना के विभिन्न रूप

वासना केवल एक रूप में नहीं, बल्कि कई रूपों में प्रकट होती है:

  1. धन की लालसा: भौतिक समृद्धि पाने की तीव्र इच्छा
  2. शारीरिक सुख: विभिन्न इंद्रियों के माध्यम से आनंद प्राप्त करने की चाह
  3. प्रतिष्ठा की भूख: समाज में उच्च स्थान पाने की अभिलाषा
  4. सत्ता का मोह: दूसरों पर नियंत्रण रखने की इच्छा

वासना का मूल: भगवान के प्रति प्रेम

वेदों के अनुसार, वासना वास्तव में भगवान के प्रति प्रेम का ही एक विकृत रूप है। यह प्रेम प्रत्येक जीव का स्वाभाविक गुण है। लेकिन जब आत्मा माया के प्रभाव में आकर शरीर धारण करती है, तब यह प्रेम विकृत होकर वासना का रूप ले लेता है।

तीन गुणों का प्रभाव

वेदों में तीन गुणों – सत्व, रज और तम – का वर्णन मिलता है। ये गुण वासना के उत्पन्न होने और उसके स्वरूप को प्रभावित करते हैं।

  1. सत्वगुण: ज्ञान और शुद्धता की ओर ले जाता है
  2. रजोगुण: कर्म और भोग की ओर प्रेरित करता है
  3. तमोगुण: अज्ञान और आलस्य की ओर ले जाता है

रजोगुण और वासना का संबंध

रजोगुण वासना को जन्म देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह आत्मा को भ्रमित करके यह विश्वास दिलाता है कि भौतिक सुखों से ही संतुष्टि मिल सकती है।

श्रीकृष्ण का दृष्टिकोण

श्रीकृष्ण ने भगवद्गीता में वासना के विषय पर गहराई से चर्चा की है। उनके अनुसार:

  1. सांसारिक सुखों की लालसा पाप का कारण बनती है
  2. यह लालसा एक प्राणघातक प्रलोभन है जो हमारे भीतर छिपा रहता है
  3. वासना सभी बुराइयों की जड़ है

वासना से उत्पन्न होने वाले विकार

श्रीकृष्ण ने वासना से उत्पन्न होने वाले तीन प्रमुख विकारों का उल्लेख किया है:

  1. कामना: किसी वस्तु या अनुभव को पाने की तीव्र इच्छा
  2. लोभ: प्राप्त वस्तुओं को बनाए रखने और उन्हें बढ़ाने की चाह
  3. क्रोध: इच्छाओं की पूर्ति न होने पर उत्पन्न होने वाला आवेग

वासना पर नियंत्रण का महत्व

वेदों में वासना पर नियंत्रण को आध्यात्मिक उन्नति के लिए अत्यंत आवश्यक माना गया है। इसके लिए कुछ उपाय सुझाए गए हैं:

  1. आत्म-चिंतन: अपनी इच्छाओं के मूल कारण को समझना
  2. योग और ध्यान: मन पर नियंत्रण पाने के लिए
  3. सत्संग: अच्छे लोगों की संगति से सकारात्मक विचारों का विकास
  4. कर्मयोग: निष्काम भाव से कर्म करना

वासना से मुक्ति का मार्ग

वेदों के अनुसार, वासना से पूर्ण मुक्ति तभी संभव है जब जीव अपने वास्तविक स्वरूप को पहचान लेता है। यह आत्म-साक्षात्कार की स्थिति है जहाँ जीव भगवान के साथ अपने संबंध को समझ लेता है।

निष्कर्ष

वेदों में प्रयुक्त ‘काम’ और ‘वासना’ शब्द मानव मन की जटिलताओं को दर्शाते हैं। ये केवल यौन इच्छाओं तक सीमित नहीं हैं, बल्कि समस्त भौतिक इच्छाओं को समेटे हुए हैं। वेदों का मानना है कि इन इच्छाओं पर नियंत्रण पाकर ही मनुष्य अपने वास्तविक लक्ष्य – आत्म-साक्षात्कार और भगवत्-प्रेम – को प्राप्त कर सकता है।

यह समझना महत्वपूर्ण है कि वासना स्वयं में बुरी नहीं है। यह मनुष्य के विकास का एक अनिवार्य चरण है। लेकिन इस पर नियंत्रण न रखने से यह व्यक्ति के आध्यात्मिक विकास में बाधा बन सकती है। इसलिए वेद हमें सिखाते हैं कि अपनी इच्छाओं को समझें, उन पर नियंत्रण रखें और अंततः उन्हें भगवान के प्रति प्रेम में परिवर्तित करें।

वासना के प्रकारउदाहरणप्रभाव
भौतिक सुख की इच्छाधन, वस्तुएँ इकट्ठा करनालोभ, असंतोष
शारीरिक सुख की लालसाभोजन, यौन सुखइंद्रिय-लोलुपता
प्रतिष्ठा की चाहपद, सम्मान पाने की इच्छाअहंकार, ईर्ष्या
सत्ता की भूखदूसरों पर शासन करने की इच्छाक्रूरता, अन्याय

इस प्रकार, वेदों में ‘काम’ और ‘वासना’ की अवधारणा गहन और बहुआयामी है। यह हमें मानव स्वभाव की जटिलताओं को समझने और उन पर काबू पाने का मार्ग दिखाती है। यह ज्ञान न केवल व्यक्तिगत विकास के लिए, बल्कि एक स्वस्थ और सुखी समाज के निर्माण के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।

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