न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् ।
कार्यते ह्यवशः कर्म सर्वः प्रकृतिजैर्गुणैः ॥5॥
न-नहीं; हि-निश्चय ही; कश्चित्-कोई; क्षणम्-क्षण के लिए; अपि-भी; जातु-सदैव; तिष्ठति-रह सकता है; अकर्म-कृत बिना कर्म; कार्यते कर्म करने के लिए; हि निश्चय ही; अवशः बाध्य होकर; कर्म-कर्म; सर्वः-समस्त; प्रकृति-जैः-प्रकृति के गुणों से उत्पन्न; गुणैः-गुणों के द्वारा।
Hindi translation: कोई भी मनुष्य एक क्षण के लिए अकर्मा नहीं रह सकता। वास्तव में सभी प्राणी प्रकृति द्वारा उत्पन्न तीन गुणों के अनुसार कर्म करने के लिए विवश होते हैं।
कर्म का महत्व: एक सम्पूर्ण दृष्टिकोण
कर्म का विषय हमारे जीवन में अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह न केवल हमारे व्यावसायिक जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि हमारे संपूर्ण अस्तित्व को आकार देता है। आइए इस विषय पर गहराई से विचार करें और समझें कि कर्म का सही अर्थ क्या है और यह हमारे जीवन में कैसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
कर्म की व्यापक परिभाषा
कई लोग कर्म को केवल व्यावसायिक गतिविधियों तक सीमित मानते हैं। वे सोचते हैं कि जब वे अपना व्यवसाय छोड़ देते हैं, तो वे कर्म से मुक्त हो जाते हैं। लेकिन यह एक भ्रामक धारणा है। श्रीकृष्ण के अनुसार, कर्म का दायरा बहुत व्यापक है।
कर्म के विभिन्न रूप
- शारीरिक कर्म
- मानसिक कर्म
- वाचिक कर्म
श्रीकृष्ण स्पष्ट करते हैं कि हमारे शरीर, मन और वाणी द्वारा की जाने वाली सभी गतिविधियाँ कर्म के अंतर्गत आती हैं। इस प्रकार, हमारा दैनिक जीवन – खाना, पीना, सोना, जागना, सोचना – ये सभी कर्म हैं।
कर्म की अनिवार्यता
श्रीकृष्ण अर्जुन को समझाते हैं कि कोई भी व्यक्ति एक क्षण के लिए भी पूर्णतः निष्क्रिय नहीं रह सकता। यहाँ तक कि जब हम सोचते हैं कि हम कुछ नहीं कर रहे हैं, तब भी हम कर्म कर रहे होते हैं।
निरंतर कर्म के उदाहरण
- बैठना एक कर्म है
- लेटना एक कर्म है
- सोते समय स्वप्न देखना एक मानसिक कर्म है
- गहरी नींद में भी शरीर के अंग कार्यरत रहते हैं
कर्म और प्रकृति के गुण
श्रीकृष्ण बताते हैं कि हमारा शरीर, मन और बुद्धि प्रकृति के तीन गुणों – सत्व, रज और तम के अधीन हैं। ये गुण हमें निरंतर कर्म करने के लिए प्रेरित करते हैं।
प्रकृति के तीन गुण और उनका प्रभाव
गुण | विशेषताएँ | कर्म पर प्रभाव |
---|---|---|
सत्व | शुद्धता, ज्ञान, प्रकाश | सकारात्मक और उत्थानकारी कर्म |
रज | गतिशीलता, आसक्ति | कर्म में उत्साह और महत्वाकांक्षा |
तम | अज्ञान, आलस्य | निष्क्रियता या नकारात्मक कर्म |
श्रीमद्भागवतम् का दृष्टिकोण
श्रीमद्भागवतम् में भी इसी विचार को पुष्ट किया गया है। यह कहता है:
न हि कश्चित्क्षणमपि जातु तिष्ठत्यकर्मकृत् ।
कार्यते ह्यवशः कर्म गुणैः स्वाभाविकैबलात् ।।
अर्थात्, “कोई भी मनुष्य एक क्षण के लिए भी अकर्मा नहीं रह सकता। सभी जीव अपने प्राकृतिक गुणों द्वारा कर्म करने के लिए बाध्य होते हैं।”
कर्म का महत्व समझना
जब हम कर्म की इस व्यापक परिभाषा को समझ लेते हैं, तो हमारा दृष्टिकोण बदल जाता है। हम यह महसूस करते हैं कि हर क्षण, हर गतिविधि महत्वपूर्ण है।
कर्म के प्रति जागरूकता के लाभ
- आत्म-जागरूकता में वृद्धि
- जीवन के प्रति अधिक सजगता
- प्रत्येक क्षण का सदुपयोग
- आध्यात्मिक विकास में सहायता
कर्म और कर्मयोग
कर्म की इस समझ के साथ, हम कर्मयोग के सिद्धांत को भी बेहतर समझ सकते हैं। कर्मयोग का अर्थ है कर्म करते हुए योग की स्थिति में रहना।
कर्मयोग के मुख्य सिद्धांत
- निष्काम कर्म – फल की इच्छा किए बिना कर्म करना
- समर्पण भाव – कर्म को ईश्वर को समर्पित करना
- कर्तव्य पालन – अपने कर्तव्यों का निष्ठापूर्वक पालन करना
दैनिक जीवन में कर्म का महत्व
जब हम अपने दैनिक जीवन में कर्म के इस व्यापक दृष्टिकोण को अपनाते हैं, तो हमारा जीवन अधिक सार्थक और संतुलित हो जाता है।
दैनिक जीवन में कर्म के उदाहरण
- सुबह जल्दी उठना और ध्यान करना
- स्वस्थ भोजन तैयार करना और खाना
- कार्यस्थल पर ईमानदारी से काम करना
- परिवार के साथ गुणवत्तापूर्ण समय बिताना
- रात को शांत मन से सोना
निष्कर्ष
कर्म हमारे जीवन का एक अभिन्न अंग है। यह केवल हमारे व्यावसायिक जीवन तक सीमित नहीं है, बल्कि हमारे संपूर्ण अस्तित्व को प्रभावित करता है। श्रीकृष्ण और श्रीमद्भागवतम् के शिक्षाओं से हम सीखते हैं कि कर्म से बचना असंभव है। इसलिए, हमें अपने कर्मों के प्रति जागरूक रहना चाहिए और उन्हें सकारात्मक दिशा में निर्देशित करना चाहिए।
जब हम अपने प्रत्येक कर्म को महत्व देते हैं और उसे ईश्वर को समर्पित करते हैं, तो हमारा जीवन एक साधना बन जाता है। इस प्रकार, कर्म न केवल हमारे भौतिक जीवन को सुधारता है, बल्कि हमारे आध्यात्मिक विकास में भी सहायक होता है।
अंत में, यह समझना महत्वपूर्ण है कि कर्म का सही अर्थ जानने से हम अपने जीवन को अधिक सार्थक और संतुलित बना सकते हैं। हमें हर क्षण, हर गतिविधि के महत्व को पहचानना चाहिए और उसे पूरी निष्ठा और समर्पण के साथ करना चाहिए। यही कर्म का सच्चा मार्ग है, जो हमें न केवल इस जीवन में, बल्कि आध्यात्मिक यात्रा में भी आगे ले जाता है।