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भगवद गीता: अध्याय 5, श्लोक 12

युक्तः कर्मफलं त्यक्त्वा शान्तिमाप्नोति नैष्ठिकीम् ।
अयुक्तः कामकारेण फले सक्तो निबध्यते ॥12॥


युक्तः-अपनी चेतना को भगवान में एकीकृत करने वाला; कर्म-फलम्-सभी कर्मों के फल; त्यक्त्वा-त्यागकर; शान्तिम्-पूर्ण शान्ति; आप्नोति-प्राप्त करता है; नैष्ठिकीम्-अनंत काल तक; अयुक्तः-वह जिसकी चेतना भगवान में एकीकृत न हो; कामकारेण–कामनाओं से प्रेरित होकर; फले–परिणाम में; सक्तः-आसक्त; निबध्यते-बंधता है।

Hindi translation: कर्मयोगी अपने समस्त कमर्फलों को भगवान को अर्पित कर चिरकालिक शांति प्राप्त कर लेते हैं जबकि वे जो कामनायुक्त होकर निजी स्वार्थों से प्रेरित होकर कर्म करते हैं, वे बंधनों में पड़ जाते हैं क्योंकि वे कमर्फलों में आसक्त होकर कर्म करते हैं।

कर्म का प्रभाव: मुक्ति या बंधन

प्रस्तावना

मानव जीवन में कर्म की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। हमारे कर्म न केवल हमारे वर्तमान जीवन को प्रभावित करते हैं, बल्कि हमारे आध्यात्मिक विकास और भविष्य को भी निर्धारित करते हैं। लेकिन एक प्रश्न जो अक्सर उठता है, वह यह है कि समान कर्म करने वाले व्यक्तियों के परिणाम अलग-अलग क्यों होते हैं? कुछ लोग माया के बंधन में फंस जाते हैं, जबकि अन्य मुक्त रहते हैं। इस लेख में हम इसी विषय पर गहन चिंतन करेंगे।

कर्म और उसके परिणाम

श्रीकृष्ण का दृष्टिकोण

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में इस विषय पर गहराई से प्रकाश डाला है। उनके अनुसार, कर्म के परिणाम व्यक्ति की मानसिकता और भावना पर निर्भर करते हैं, न कि केवल कर्म के स्वरूप पर।

युक्त और अयुक्त पुरुष

श्रीकृष्ण ने दो प्रकार के व्यक्तियों का उल्लेख किया है:

  1. युक्त पुरुष: जो भौतिक पदार्थों के प्रति अनासक्त रहते हैं।
  2. अयुक्त पुरुष: जो निजी लाभ और कामनाओं से प्रेरित होकर कर्म करते हैं।

युक्त पुरुष की विशेषताएँ

भगवद्चेतना से जुड़ाव

‘युक्त’ शब्द का अर्थ है ‘भगवद्चेतना से जुड़ना’। यह एक ऐसी मानसिकता है जहाँ व्यक्ति अपने कर्मों को ईश्वर के प्रति समर्पण भाव से करता है।

हृदय का शुद्धिकरण

युक्त पुरुष का मुख्य उद्देश्य होता है अपने हृदय का शुद्धिकरण। वे किसी भौतिक फल की इच्छा नहीं रखते, बल्कि आत्मशुद्धि के लिए कर्म करते हैं।

कर्मफल त्याग

ये व्यक्ति अपने कर्मों के फलों की इच्छा का त्याग करते हैं। उनका ध्यान केवल कर्तव्य पालन पर होता है, न कि परिणाम पर।

दिव्य चेतना की प्राप्ति

इस प्रकार के कर्म करने से, युक्त पुरुष शीघ्र ही दिव्य चेतना और आंतरिक सौंदर्य को प्राप्त कर लेते हैं।

अयुक्त पुरुष की विशेषताएँ

भगवद्चेतना का अभाव

‘अयुक्त’ का अर्थ है ‘भगवद्चेतना से युक्त न होना’। ऐसे व्यक्ति अपने कर्मों को केवल भौतिक लाभ के लिए करते हैं।

लौकिक सुखों की कामना

अयुक्त पुरुष लौकिक या सांसारिक सुखों की कामना रखते हैं, जो आत्मा के लिए हानिकारक है।

इंद्रिय तृप्ति की लालसा

ये व्यक्ति अपने कर्मों का फल पाने के लिए अपनी इंद्रियों की तृप्ति की कामनाओं को भड़काते हैं।

संसार चक्र में बंधन

इस प्रकार के कर्मों के परिणामस्वरूप, अयुक्त पुरुष ‘संसार’ या जन्म-मरण के चक्कर में फंस जाते हैं।

कर्म का प्रभाव: एक तुलनात्मक अध्ययन

पहलूयुक्त पुरुषअयुक्त पुरुष
मूल प्रेरणाआत्मशुद्धिभौतिक लाभ
कर्म का उद्देश्यकर्तव्य पालनफल प्राप्ति
मानसिकताअनासक्तकामनायुक्त
परिणाममुक्ति की ओरबंधन की ओर
आध्यात्मिक प्रगतितीव्रमंद या नगण्य

कर्म योग: मुक्ति का मार्ग

कर्म योग का सार

कर्म योग वह मार्ग है जो हमें सिखाता है कि कैसे कर्म करते हुए भी मुक्त रहा जा सकता है। यह एक ऐसी जीवन शैली है जहाँ व्यक्ति अपने कर्तव्यों का पालन करता है, लेकिन फल की चिंता नहीं करता।

निष्काम कर्म

कर्म योग का मूल सिद्धांत है निष्काम कर्म – बिना किसी स्वार्थ या फल की इच्छा के किया गया कर्म। यह वह कुंजी है जो हमें कर्म के बंधन से मुक्त करती है।

समत्व बुद्धि

गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं:

योगस्थः कुरु कर्माणि सङ्गं त्यक्त्वा धनंजय।
सिद्ध्यसिद्ध्योः समो भूत्वा समत्वं योग उच्यते॥

अर्थात, “हे धनंजय! आसक्ति को त्यागकर, सफलता और असफलता में समान भाव रखते हुए योगस्थ होकर अपने कर्मों को करो। इस समभाव को ही योग कहते हैं।”

आधुनिक जीवन में कर्म योग का अनुप्रयोग

व्यावसायिक जीवन में

  1. कार्य को सेवा समझें: अपने व्यवसाय या नौकरी को केवल धन कमाने का साधन न समझें, बल्कि समाज की सेवा का अवसर मानें।
  2. गुणवत्ता पर ध्यान: परिणाम की चिंता किए बिना, अपने काम में उत्कृष्टता लाएँ।
  3. ईमानदारी और नैतिकता: हर परिस्थिति में ईमानदार और नैतिक रहें, चाहे इससे तात्कालिक नुकसान ही क्यों न हो।

पारिवारिक जीवन में

  1. निःस्वार्थ प्रेम: परिवार के प्रति अपने कर्तव्यों को बिना किसी अपेक्षा के निभाएँ।
  2. संतुलित दृष्टिकोण: सुख-दुःख, लाभ-हानि में समभाव रखें।
  3. आध्यात्मिक वातावरण: घर में एक ऐसा माहौल बनाएँ जहाँ सभी सदस्य आध्यात्मिक मूल्यों को महत्व दें।

सामाजिक जीवन में

  1. सेवा भाव: समाज के प्रति अपने दायित्वों को सेवा भाव से निभाएँ।
  2. परोपकार: दूसरों की मदद करें, बिना किसी बदले की आशा के।
  3. सामाजिक सद्भाव: समाज में एकता और सौहार्द बढ़ाने के लिए प्रयासरत रहें।

चुनौतियाँ और समाधान

आधुनिक जीवन की चुनौतियाँ

  1. भौतिकवादी संस्कृति: आज का समाज भौतिक सुख और उपलब्धियों को अधिक महत्व देता है।
  2. तीव्र प्रतिस्पर्धा: प्रतिस्पर्धात्मक माहौल में निष्काम कर्म करना कठिन हो सकता है।
  3. तात्कालिक संतुष्टि की चाह: लोग तुरंत परिणाम चाहते हैं, जो कर्म योग के सिद्धांतों के विपरीत है।

समाधान

  1. आत्म-चिंतन: नियमित रूप से आत्म-चिंतन और ध्यान करें।
  2. शास्त्रों का अध्ययन: गीता जैसे ग्रंथों का नियमित अध्ययन करें।
  3. सत्संग: समान विचारधारा वाले लोगों के साथ समय बिताएँ।
  4. क्रमिक अभ्यास: धीरे-धीरे अपने जीवन में कर्म योग के सिद्धांतों को लागू करें।

निष्कर्ष

कर्म का प्रभाव हमारे जीवन पर गहरा होता है। यह हमें या तो मुक्ति की ओर ले जा सकता है या माया के बंधन में जकड़ सकता है। इसका निर्धारण हमारी मानसिकता और कर्म करने के तरीके से होता है। युक्त पुरुष, जो भगवद्चेतना से जुड़े रहते हैं और निष्काम भाव से कर्म करते हैं, वे मुक्ति के मार्ग पर अग्रसर होते हैं। वहीं अयुक्त पुरुष, जो स्वार्थ और कामनाओं से प्रेरित होकर कर्म करते हैं, वे संसार चक्र में फँसते जाते हैं।

आधुनिक जीवन में कर्म योग का अनुसरण करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन यह असंभव नहीं है। हमें अपने दैनिक जीवन में छोटे-छोटे कदमों से शुरुआत करनी चाहिए। अपने कार्यों को सेवा भाव से करना, परिणामों की चिंता किए बिना अपना सर्वश्रेष्ठ देना, और हर परिस्थिति में संतुलित दृष्टिकोण रखना – ये सभी कर्म योग की ओर ले जाने वाले मार्ग हैं।

अंत में, यह समझना महत्वपूर्ण है कि कर्म योग एक जीवन शैली है, एक लक्ष्य नहीं। यह एक निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है जिसमें हम धीरे-धीरे अपने आप को परिष्कृत करते जाते हैं। जैसे-जैसे हम इस मार्ग पर आगे बढ़ते हैं, हम पाते हैं कि हमारे जीवन में अधिक शांति, संतोष और आनंद आ रहा है। हम अपने कर्मों से मुक्त होते जाते हैं, न कि बंधते हैं।

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