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भगवद गीता: अध्याय 5, श्लोक 16

ज्ञानेन तु तदज्ञानं येषां नाशितमात्मनः।
तेषामादित्यवज्ज्ञानं प्रकाशयति तत्परम् ॥16॥

https://www.holy-bhagavad-gita.org/public/audio/005_016.mp3ज्ञानेन-दिव्य ज्ञान द्वारा; तु–लेकिन; तत्-वह; अज्ञानम्-अज्ञानता; येषाम् जिनका; नाशितम् नष्ट हो जाती है; आत्मनः-आत्मा का; तेषाम्-उनके; आदित्यवत्-सूर्य के समान; ज्ञानम्-ज्ञान; प्रकाशयति-प्रकाशित करता है; तत्-उस; परम्-परम तत्त्व।

Hindi translation: किन्तु जिनकी आत्मा का अज्ञान दिव्यज्ञान से विनष्ट हो जाता है उस ज्ञान से परमतत्त्व का प्रकाश उसी प्रकार से प्रकाशित हो जाता है जैसे दिन में सूर्य के प्रकाश से सभी वस्तुएँ प्रकाशित हो जाती हैं।

ज्ञान का प्रकाश: अज्ञान के अंधकार का विनाशक

सूर्य की शक्ति: एक उपमा

रात्रि के अंधकार को मिटाने की सूर्य की शक्ति अतुल्य है। रामचरितमानस में इस बात का सुंदर वर्णन मिलता है:

राकापति षोड़स उनहिं तारागन समुदाइ।
सकल गिरिन्ह दव लाइअ बिनु रबि राति न जाइ।।

इसका अर्थ है:
“पूर्ण चंद्रमा और स्वच्छ आकाश में दिखाई देने वाले सभी तारों के प्रकाश से रात्रि का अंत नहीं होता किन्तु जिस क्षण सूर्य उदित होता है तब रात्रि शीघ्र प्रस्थान की तैयारी करती है।”

सूर्य और ज्ञान का समानांतर

जैसे सूर्य के प्रकाश की शक्ति के सामने अंधकार ठहर नहीं सकता, वैसे ही भगवद्ज्ञान के प्रकाश के प्रभाव से अज्ञान रूपी अंधकार दूर हो जाता है।

अंधकार और भ्रम का संबंध

अंधकार ही भ्रम की उत्पत्ति का कारण होता है। इस सिद्धांत को समझने के लिए दो उदाहरण दिए गए हैं:

1. सिनेमा हॉल का उदाहरण

2. जीवन का उदाहरण

आत्मा की जागृति

जब ज्ञान का प्रकाश फैलता है, तब:

माया और विद्या का प्रभाव

शक्तिप्रभाव
माया (अविद्या)आत्मा को अंधकार से आच्छादित करती है
विद्याज्ञान के आलोक से आत्मा को प्रकाशित करती है

निष्कर्ष

जैसे सूर्य का प्रकाश रात्रि के अंधकार को दूर करता है, वैसे ही भगवद्ज्ञान का प्रकाश अज्ञान रूपी अंधकार को मिटा देता है। यह ज्ञान हमें भ्रम से मुक्त करता है और हमारी आत्मा को जागृत करता है, जिससे हम अपनी सच्ची आध्यात्मिक प्रकृति को पहचान सकते हैं।

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